Posted on 04 Jan, 2019 6:45 pm

 

समाज के कमजोर वर्गों के प्रति संवेदनशीलता विषयक दो-दिवसीय राज्य-स्तरीय कार्यशाला का शुभारंभ आज उप लोकायुक्त जस्टिस श्री सुशील पालो ने किया। पीटीआरआई में आयोजित कार्यशाला में निरीक्षक से लेकर पुलिस अधीक्षक स्तर के लगभग 100 प्रतिभागी शामिल हुए।

जस्टिस श्री सुशील पालो ने प्रतिभागियों को अपराध कायमी से लेकर विवेचना, अभियोग-पत्र दाखिल करने एवं न्यायालयीन कार्यवाही में होने वाली त्रुटियों के कारण अभियुक्तों को मिलने वाले लाभ के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रकरण की विवेचना निरीक्षक से नीचे स्तर के अधिकारियों को बिल्कुल नहीं करना चाहिये। जाति प्रमाण-पत्र सक्षम अधिकारी (एसडीएम) द्वारा ही जारी किया जाकर अभियोग-पत्र में लगाना चाहिये। जप्ती साक्षी विश्वस्त हो तथा उनका न्यायालय में समय पर साक्ष्य होना आवश्यक है। फरियादियों के अधिकारों का भी हनन न हो तथा उसका ट्रायल के दौरान संरक्षण होना चाहिये। उन्हें विधिक सहायता एवं नियमानुसार आर्थिक सहायता प्रदाय करनी चाहिये।

पुलिस महानिदेशक श्री ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को एस.सी.एस.टी. वर्ग के प्रति संवेदनशील होकर अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिये। शुरूआत में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, अजाक श्रीमती प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने कार्यशाला की आवश्यकता और रूपरेखा बतायी।

पीटीआरआई के एडीजी श्री विजय कटारिया सहित कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौजूद थे। अंत में उप महानिरीक्षक, अजाक श्री आई.पी. अरजरिया ने आभार माना।

नुक्कड़ नाटक

वरिष्ठ रंगकर्मी श्री फरीद बजमी के निर्देशन में कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों में जागरूकता लाने के लिये सामाजिक कुरीतियों, प्रथाओं को दूर करने के लिये नुक्कड़ नाटक प्रदर्शित किया गया।

द्वितीय सत्र

द्वितीय सत्र में अजाक शाखा में पदस्थ विधि अधिकारी श्री विजय बंसल ने एससीएसटी एक्ट के आपराधिक प्रकरणों की विवेचना के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा पारित विभिन्न महत्वपूर्ण न्याय दृष्टांतों की जानकारी प्रतिभागियों को दी। श्री अमृत मीना, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, जबलपुर द्वारा एससीएसटी एक्ट के प्रकरणों में साक्षी पक्ष विरोधी क्यों हो जाते हैं? पर सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश​