Posted on 11 Sep, 2018 4:17 pm

 

उच्च शिक्षा मंत्री श्री जयभान सिंह पवैया ने कहा कि आज के समय जनजातीय इतिहास के बीजारोपण की आवश्यकता है और मध्यवर्ती भारत की लोक परम्पराओं को सहेजने की जरूरत है। जनजाति समुदाय ने अपने संस्कृति को आज भी बचाकर रखा है। श्री पवैया मध्यवर्ती भारत : नये आयाम 'इतिहास-संस्कृति एवं जनजातीय परम्पराएं' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ समारोह को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी संस्कृति विभाग एवं दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में विज्ञान भवन में आयोजित की गई।

मंत्री श्री पवैया ने कहा कि विश्व में जो देश अपनी संस्कृति और इतिहास पर गौरव नहीं करते, उनका पतन निश्चित होता है।  जापान में जब संकट आया, तब राजा के आह्वान पर बड़ी आबादी ने अपने सोने जड़ित दांत राज्य को समर्पित कर दिए। उन्होंने कहा कि नागरिकों में राष्ट्र चेतना का प्रबल होना जरूरी है। मंत्री ने कहा कि सभ्यताएँ युग के साथ बदलती हैं, मगर संस्कृति नहीं। उन्होंने लुप्त हो रहे विभिन्न रीति-रिवाजों और परम्पराओं को सहेजने की जरूरत बतायी।

श्री पवैया ने कहा कि मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक महत्व का पता इस बात से लगता है कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण अपने गुरु संदीपनी से ज्ञान प्राप्त करने मध्य भारत आये। रामायण काल मे जब भगवान राम ने अपने भाइयों के पुत्रों में राज्य बंटवारा किया, तब शत्रुघ्न के पुत्र को विदिशा राज्य दिया गया। उन्होंने कहा कि वनवासी समुदाय ने अपने लोक गीतों, बोलियों, परम्परा, संस्कृति, जीवन शैली को आज भी सहेज कर रखा है। आज इतिहास को पश्चिमी नजरिए के बजाय वनवासी समुदाय और संस्कृति को केंद्र में रखकर लिखे जाने की जरूरत है। 

लोक एवं जनजातीय अध्येता डॉ कपिल तिवारी ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया। समारोह का संचालन प्रो. मनीषा शर्मा ने किया। संगोष्ठी में ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक श्री मुकेश मिश्रा, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, शिक्षक, देशभर से आये अध्येता, शोधकर्ता और बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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