Posted on 17 Feb, 2018 3:52 pm

कभी सिर पर देशी बेर की टोकरी रखकर जगह-जगह देशी बेर बेचने वाली राजगढ़ जिले के खिलचीपुर ग्राम दरियापुर की भूलीबाई दांगी के कलमी बेर के पेड़ों के फलते ही अब व्यापारी घर पहुँच जाते हैं। व्यापारी पेड़ पर लगे कलमी बेर का पकने तक का सौदा कर लेते हैं। भूलीबाई को अब बेर बेचने के लिये बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।

भूलीबाई के पास साढ़े तीन बीघा कृषि भूमि है। उद्यानिकी विभाग की बेर टॉप वर्किंग उद्यानिकी योजना में भूलीबाई ने 25 देशी बेर के पौधों में कलमीकरण करवाया था। देशी बेर के पौधे कलमीकरण के 3 साल बाद फल देने लगते हैं। भूलीबाई अपनी कृषि भूमि से इतनी आमदनी नहीं ले पाती थीं, जिससे उनके परिवार का गुजर-बसर अच्छी तरह से हो सके। इसकी चर्चा उन्होंने उद्यानिकी विभाग के मैदानी अधिकारियों से भी की थी।

उद्यानिकी विभाग की सलाह मानते हुए गर्मी में देशी बेर के पौधों की कटाई की और जून महीने के आखिरी दिनों में कलमें लगाईं। अच्छी देखभाल से सभी कलमी बेर के पौधे बड़े साइज के बेर के फल देने लगे। अब उन्हें प्रति वर्ष 30 से 32 हजार रुपये की वार्षिक आमदनी होने लगी है।

गेहूँ, चना और सोयाबीन की परम्परागत फसलों पर निर्भर रहने वाली भूलीबाई ने अब संतरे का बगीचा भी तैयार किया है, जो अब फल देने की स्थिति में है। भूलीबाई के खेत में उद्यानिकी फसल को देखकर आसपास के किसानों ने भी उद्यानिकी फसल लेने का मन बनाया है और विभाग के मैदानी अधिकारियों से सम्पर्क साधा है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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