Posted on 10 Apr, 2018 9:36 pm

 

वन विभाग ने वन्य-प्राणी रक्षा से संबंधित कार्यों में पारधियों को जोड़ते हुए अनूठी पहल की है। पारधी समुदाय के जानवर पकड़ने के परम्परागत ज्ञान का उपयोग वन विभाग ने भटके हुए बाघ, तेंदुआ, नील गाय आदि को पकड़ने और वन्य-प्राणी संरक्षण के लिये करना शुरू किया है। पिछले माह भोपाल वृत्त में तेंदुए को पकड़ने में पारधी समुदाय की मदद ली थी। उज्जैन में 11 अप्रैल को नील गाय पकड़ने के संबंध में कार्यशाला की जा रही है, जिसमें लगभग 10 पारधी भाग लेंगे। कार्यशाला में पारधियों की मदद से नील गाय को पकड़ने के लिये एक जाल बनाया जायेगा, जो स्वयं पारधियों के लिये भी नया अनुभव होगा। पारधी नील गाय को पवित्र पशु मानते हैं। उनको आश्वासन दिया गया है कि इससे नील गाय को कोई शारीरिक क्षति नहीं पहुँचेगी।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य-प्राणी) श्री जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि वन विभाग ने परम्परागत रूप से शिकार कर आजीविका निर्वहन करने वाले पारधी समुदाय के साथ पिछले माह भोपाल में एक बैठक की। विभाग ने उन्हें वन्य-प्राणी शिकार के बदले आजीविका अर्जन के लिये 3 प्रस्ताव दिये थे। इनमें उनके ज्ञान और अनुभवों के आधार पर गाइड बनाना, उनकी ट्रेकिंग कुशलता के मद्देनजर रेस्क्यू दस्तों में शामिल करना और फसलों को नष्ट करने वाले जानवरों को पकड़ने के लिये उनकी मदद से जाल बनाना और जंगल में छोड़ना शामिल है। निरंतर वार्ता के बाद पारधी इनके लिये मान गये। श्री अग्रवाल ने बताया कि पारधी बच्चों की शिक्षा में मदद के लिये भी विभाग तैयार है।

श्री अग्रवाल ने बताया कि योजना की सफलता से पारधियों के ज्ञान का उपयोग लुप्त होती प्रजातियों के पक्षी, ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरीकेन, जंगली उल्लू आदि को बचाने में भी किया जायेगा। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के टेरीटोरियल क्षेत्र में भी लास्ट वाइल्डरनेस फाउण्डेशन नामक स्वैच्छिक संगठन की मदद से ईको टूरिज्म विकास में इनकी मदद लेने पर कार्य किया जा रहा है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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