Posted on 28 Mar, 2018 6:37 pm

प्रदेश के धार जिले की पार्वती, अनूपपुर की प्रेमवती, ग्वालियर की हेमलता, टीकमगढ़ की ममता या फिर पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड की वह 12 महिलाऐं, जिन्होंने समूह के रूप में संगठित होकर न केवल आर्थिक आत्म-निर्भरता प्राप्त की है, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा और नई पहचान भी बनाई है।

राष्ट्रीय आजीविका मिशन (ग्रामीण/शहरी) के माध्यम से पिछले 6-7 वर्ष में महिलाओं द्वारा आर्थिक आजादी और स्वावलम्बन का जो आन्दोलन प्रारंभ किया गया था, वह अब अपने चरमोत्कर्ष पर है। प्रदेश के अनेक जिलों में ऐसी अनेक महिलाएँ सामने आ रहीं हैं, जो इस आन्दोलन से जुड़कर आत्म-निर्भर बनी हैं साथ ही अन्य महिलाओं को भी आत्म-निर्भर बना रही हैं।

दूध से आई जीवन में खुशहाली :धार जिले के ग्राम उमरिया बड़ा निवासी पार्वती पत्नि रामेश्वर सोलंकी खेती-किसानी कर घर का खर्चा चलाती थी। वर्ष 2013 में महालक्ष्मी आजीविका स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद उनके दिन ही बदल गये।पार्वती देवी ने वर्ष 2014 में समूह से ऋण लेकर एक गाय खरीदी, दूध का विक्रय शुरू किया। पति को वेल्डिंग काम का प्रशिक्षण आर.से.टी. के माध्यम से करवाया, समूह से 50 हजार रूपये ऋण लेकर पति को वेल्डिंग का काम प्रारंभ कराया। खुद ने दूध की डेयरी शुरू की। दोनों पति-पत्नि अब एक माह में 15-16 हजार रूपये तक आसानी से कमाने लगे हैं।पार्वती को शासन की अन्य योजनाओं से इंदिरा आवास और पक्का शौचालय भी मिल गया है। पार्वती की गायों का दूध शासकीय डेयरी से विक्रय किया जा रहा है। वह अब अपने क्षेत्र की महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई है।

प्रेमवती का खेतीहर मजदूर से विश्वकर्मा टेलर्स तक का सफर : अनूपपुर जिले के ग्राम सालरगोदी की प्रेमवती अपने पति के साथ 2 एकड़ जमीन पर खेती कर परिवार पाल रही थी। पति बीरबल को सिलाई का काम तो आता था, लेकिन कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण सिलाई का काम प्रारंभ नहीं कर पा रहा था। पत्नि प्रेमवती जब आजीविका मिशन की सदस्य बनी, तो उसने समूह से 5 हजार रूपये का ऋण लेकर पुरानी सिलाई मशीन ली जिससे आके पति ने टेलरिंग का काम शुरू किया। धीर-धीरे काम भी अच्छा जम गया। तब उन्होंने समूह से 30 हजार रूपये का पुन: ऋण लेकर तीन सिलाई मशीन, एक इंटरलाक मशीन और कपड़े खरीद कर गाँव में टेलरिंग का काम शुरू कर दिया। तीन और महिलाओं को सिलाई के काम से जोड़ने के बाद अब विश्वकर्मा टेलर्स क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम बन गया है।  

ग्वालियर की हेमलता के पापड़, अचार की दूर-दूर तक है माँग : ग्वालियर शहर की चौबे वाली गली, लाला का बाजार निवासी श्रीमती हेमलता गोडिया गृह कार्य में तो दक्ष थीं, लेकिन घर की परेशानियां ऐसी कि दिन-रात उन्हीं में उलझी रहती थीं। कभी पैसा नहीं, तो कभी काम नहीं। संघर्ष के इस दौर में वे शीतला माता स्व-सहायता समूह से जुड़ी।

इस समूह की अन्य महिलाओं के साथ उन्होंने भी अचार, पापड़, बड़ी, मुरब्बा आदि बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया। अपनी मेहनत और लगन के दम पर वह इस कार्य में पारंगत हो गई हैं। आज उनके बनाए अचार, पापड़, बड़ी, मुरब्बा आदि उत्पाद बहुत दूर-दूर तक जा रहे हैं तथा लोगों को पसन्द भी आ रहे हैं।

हेमलता की मेहनत रंग लाई, अब लोगों की प्रशंसा भी मिल रही है। आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। अब हेमलता भी अपनी मर्जी से जितना चाहे, उतना खर्चा कर सकती हैं।

जेण्डर की जिज्ञासाओं का समाधान भी कर रही हैं महिलायें : पन्ना जिले के गुनौर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत सलेहा में 12 सदस्यीय महिलाओं के स्व-सहायता समूह ने आजीविका निवेश की 50 हजार रुपये की राशि से सेनेटरी नैपकिन पैकिंग यूनिट स्थापित की। ये महिलाएँ हेण्ड ग्लव्स, माउथ मास्क तथा निर्धारित ड्रेस पहनकर स्ट्रेरेलायीजेशन के माध्यम से सुरक्षित एवं अल्ट्रा वायलेट प्रकाश के माध्यम से पूरी तरह जीवाणु रोधी कर सेनेटरी नैपकिन की पैकिंग का कार्य कर रही हैं। 

इस यूनिट के लिए कच्चे माल की प्राप्ति विशाली हाईजीन जबलपुर से कराई जाती है। समूह की महिलाएँ सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय के साथ-साथ अन्य महिलाओं एवं किशोरियों को स्वच्छता के लिए जागरूक भी करती हैं। सेनेटरी नैपकिन पैकिंग एवं विक्रय से प्रतिदिन प्रत्येक सदस्य को 200 रुपये की आय स्थानीय स्तर पर हो जाती है। समूह की महिलाओं द्वारा जागरूक करने पर क्षेत्र की अन्य महिलाएँ एवं किशोरियाँ भी अब जेण्डर के मुद्दों पर के खुलकर बात करती हैं।

 

 

ममता ने तीन हजार महिलाओं को आजीविका से जोड़ा : निवाड़ी की ममता को वर्ष 1999 में शादी हो जाने के कारण हायर सेकेण्ड्री के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। ममता के कुछ कर दिखाने के जज्बे से न सिर्फ उसके परिवार की आय बढ़ी है, बल्कि अन्य 3 हजार महिलाओं को भी उसने स्व-सहायता समूह से जोड़ा है। ममता ने वर्ष 2011 से फिर एजुकेशन की ओर कदम बढ़ाए, जिसके बल पर आज वह 10 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन पा रही है।

टीकमगढ़ जिले की निवाड़ी तहसील के ग्राम केना की निवासी ममता प्रजापति के ससुराल में खेती के अलावा अन्य कोई आय का स्त्रोत नहीं था। ममता को जब महिला स्व-सहायता समूह के बारे में जानकारी मिली, तब वह तेजस्विनी टीम के सम्पर्क आई। वर्ष 2007 में ममता स्व-सहायता समूह की सदस्य बनी, इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तेजस्विनी प्रोग्राम से जुड़ने के बाद वह निरंतर आगे बढ़ती रही। वह सखी सहेली संगिनी समूह निवाड़ी की अध्यक्ष बनी। इस बीच संगिनी तेजस्विनी महासंघ में इंटरव्यू के बाद एलसी के तौर पर उनका चयन किया गया।

ममता क्षेत्र की अन्य महिलाओं को स्व-सहायता समूह से जुड़ने के लिये जागरूक कर रही है। कई स्थानों पर महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुकी ममता ने क्षेत्र की करीब तीन हजार महिलाओं को स्व-सहायता समूहों से जोड़ा है।

क्सेस स्टोरी (धार, अनूपपुर, ग्वालियर, टीकमगढ़, पन्ना)

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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