Posted on 13 Aug, 2018 4:17 pm

 

मध्यप्रदेश सरकार किसानों की भूमि और राजस्व संबंधी समस्याओं के त्वरित निराकरण के लिये प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ दशक में सरकार ने राजस्व प्रशासन में कसावट के साथ राजस्व सुधार और पारदर्शी कार्य-प्रणाली को बढ़ावा देने की सार्थक कोशिशें की है। सूचना-प्रौद्योगिकी का भी इस बड़े काम में प्रभावी उपयोग सरकार ने किया है। इस अवधि में राजस्व विभाग द्वारा भूमि-स्वामी और कृषकों की सुविधा के लिए अनेक नवाचार किए गए हैं। किसानों को तहसील के चक्कर से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से अधिकांश कार्य ऑनलाइन कर दिये गये हैं। सरकार की मंशा है कि किसान को घर बैठे उसके मोबाइल के माध्यम से सभी सुविधाएँ मिलें। इसे पूरा करने के लिए विभाग द्वारा विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर बनाये गये हैं।    

राजस्व और पंजीयन विभाग के सॉफ्टवेयर का इंटीग्रेशन  

भू-अभिलेख सॉफ्टवेयर और पंजीयन विभाग के सॉफ्टवेयर का इंटीग्रेशन किया गया है। इससे पंजीयन के समय जमीन से संबंधित जानकारी सीधे भू-अभिलेख साफ्टवेयर से उप पंजीयक को इंटरनेट के माध्यम से प्राप्‍त होती है। भू-अभिलेख अनुसार जमीन के भूमि-स्वामी, रकबा, डायवर्सन आदि की जानकारी उप पंजीयक को उपलब्‍ध होगी। इससे फर्जी अभिलेख के आधार पर शासकीय भूमि का विक्रय, गलत भूमि स्‍वामी द्वारा भूमि विक्रय और स्‍टॉम्‍प चोरी के प्रकरणों पर प्रभावी रोक लगेगी।

RCMS एवं सम्पदा एप्लीकेशन का इंटीग्रेशन

राजस्व न्यायालय के सॉफ्टवेयर आरसीएमएस (रेवेन्यू कोर्ट मेनेजमेन्ट सिस्टम) को पंजीयन विभाग के सॉफ्टवेयर- सम्पदा एप्लीकेशन के साथ इंटीग्रेट किया गया है। नागरिक द्वारा जैसे ही सम्पदा एप्लीकेशन में रजिस्ट्री कराई जायेगी, उसका प्रकरण राजस्व न्यायालय में अविवादित नामान्तरण/बँटवारा के लिए स्वत: ही दर्ज हो जाएगा। रजिस्ट्री कराते ही नागरिक को एसएमएस से नामान्तरण के लिये दस्तावेज जमा करने के लिए राजस्व न्यायालय का नाम, सुनवाई की तारीख आदि की जानकारी मिलेगी। तदनुसार राजस्व न्यायालय द्वारा प्रकरण दर्ज कर, दावा आपत्ति आमंत्रित करते हुए विधिवत प्रकरण का निराकरण समय-सीमा में किया जायेगा। रजिस्ट्री के बाद नागरिक को नामान्तरण का आवेदन देने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

किसान एप

कृषकों को मोबाइल से फ़सल गिरदावरी की सुविधा मिलेगी। कृषकों को खरीफ वर्ष 2018-19 से स्व-घोषणा, लोक सेवा केंद्र, एम.पी. ऑनलाइन और किसान एप द्वारा फसल की जानकारी दर्ज करने की सुविधा दी गई है। खाते में दर्ज फसल की जानकारी विभिन्न लाभ प्राप्‍त करने के लिए महत्‍वपूर्ण है। किसान एप के माध्‍यम से कृषक बोई-गयी फसल की स्व-घोषणा कर सकेगा। कृषक द्वारा स्व-घोषित फसल की जानकारी भू-अभिलेख में अस्‍थायी रूप से दर्ज हो जायेगी जो पटवारी के सत्‍यापन पर स्‍थायी हो जायेगी। यदि कृषक, पटवारी द्वारा दर्ज की गई फसल जानकारी से संतुष्ट नहीं है, तो वह तहसीलदार को सीधे आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। इसका निराकरण वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जाँच कर किया जायेगा। ई-उपार्जन, भावांतर, प्राकृतिक आपदा फसल हानि आदि में यह जानकारी सीधे उपयोग की जा सकेगी। बार-बार सत्‍यापन करने की जरूरत नहीं होगी। 

भूमि की जानकारी

स्वयं की भूमि की पूरी जानकारी मोबाइल पर उपलब्ध होगी।खसरा/ खतौनी/ नक़्शा की नकल का अवलोकन एप से किया जा सकता है। खसरा/ खतौनी/ नक़्शा की सत्यापित नकल एप के माध्यम से शासन द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करने पर प्राप्त की जा सकती है। किसान भू-अधिकार ऋण पुस्तिका की प्रति एप से प्राप्त कर सकता है।

एम.आर.सी.एम.एस. एप

राजस्व प्रकरणों के संबंध में जानकारी एम.आर.सी.एम.एस. एप से भी प्राप्त की जा सकेगी। यह एप प्ले-स्टोर पर डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध है। प्रदेश के समस्त राजस्व न्यायालय द्वारा अब आर.सी.एम.एस. सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है। नागरिक आरसीएमएस वेबसाइट से राजस्व प्रकरण की जानकारी ले सकते हैं। नागरिक, अभिभाषक और राजस्व अधिकारियों को राजस्व प्रकरणों की जानकारी और कार्यवाही के लिए मोबाइल पर ही सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एम.आर.सी.एम.एस. एप का निर्माण भी किया गया है। नागरिक राजस्व प्रकरणों की वाद सूची / कॉज लिस्ट देख सकते हैं। प्रकरणों के अंतिम आदेश की प्रतिलिपि और प्रकरण से सम्बंधित जानकारी प्राप्‍त कर सकते हैं।

अधिवक्ता सुविधा

वकीलों के लिए केस डायरी एप पर उपलब्ध होगी। वे मुवक्किलों के प्रकरणों को स्‍वयं से लिंक कर लिंक किए गए प्रकरणों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।राजस्व प्रकरणों की वाद सूची / कॉज लिस्ट देखने के साथ ही प्रकरणों की अंतिम आदेश की प्रतिलिपि और प्रकरण से सम्बंधित नोटिफिकेशन भी प्राप्‍त किये जा सकते हैं।

भविष्य में उपलब्ध होने वाली सुविधाएँ

समर्थन मूल्य योजना के लिए पंजीयन, भावांतर योजना के लिए पंजीयन, अन्य शासकीय योजना (भूमि या कृषक संबंधित) के लिए पंजीयन या आवेदन, भूमि बंधक के लिए आवेदन, नामान्तरण, बँटवारा एवं सीमांकन के लिए आवेदन, भू-राजस्व की जानकारी और जमा करने की सुविध भी भविष्य में उपलबध करायी जायेंगी। राजस्व विभाग द्वारा भूमि-स्वामियों और किसानों के हित में नीतिगत निर्णय भी लिये गये हैं। वर्षों से चल रहे अनुपयोगी नियमों/निर्देशों को समाप्त कर उनके स्थान पर वर्तमान में उपयोगी कानून और नियम बनाये गये हैं।

मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 में संशोधन

इस संशोधन से नामांतरण होने के बाद भू-अभिलेख दुरूस्ती के बाद आदेश प्रति और संशोधित भू- अभिलेख जैसे खसरा आदि की प्रति नि:शुल्क दी जायेगी। बँटवारे के प्रकरणों में अब भूमिस्वामी जीवन-काल में स्वयं के लिए भूमि बचाकर वारिसों के मध्य भूमि का बँटवारा कर सकेगा। इससे पहले स्वयं के लिए भूमि बचाने का स्पष्ट प्रावधान नहीं था। सीमांकन के प्रकरणों में अब सीमांकन कराने के लिए निजी अधिकृत एजेंसियों की मदद ली जा सकेगी। इससे सीमांकन सरलता और शीघ्रता से होंगे। सीमांकन के विवादों के निराकरण के लिये स्थानीय प्रशासन को सशक्त कर प्रक्रिया को आसान किया गया है। सीमांकन की कार्यवाही तहसीलदार द्वारा कराई जायेगी जिससे असंतुष्ट होने पर अनुविभागीय अधिकारी को आवेदन किया जा सकेगा। अनुविभागीय अधिकारी सुनवाई कर पुन: सीमांकन कराने का आदेश दे सकेंगे। अब भू-धारक को सीमांकन के प्रकरणों में पुन: सीमांकन कराने के लिए राजस्व मंडल ग्वालियर नहीं जाना पड़ेगा।

राजस्व प्रकरण में अनावेदक/साक्षियों को सूचना जारी करने के लिए तलवाना जमा नहीं करने जैसे मामूली करणों पर अब राजस्व प्रकरण खारिज नही होंगे। अब आवेदक स्वयं विधि सम्मत डायवर्सन कर सकेगा। इसके लिये किसी अनुज्ञा की आवश्यकता नहीं होगी। डायवर्सन के लिए जमा करने वाली राशि की गणना आवेदक स्वयं कर सकेगा और राशि जमा कर अनुविभागीय अधिकारी को रसीद के साथ सूचना मात्र देगा। डायवर्सन की राशि जमा करने की सूचना और रसीद ही डायवर्सन के आदेश के रूप में मान्य होगी।

बंदोबस्त की परेशानियों को देखकर यह व्यवस्था समाप्त की गई है। अब लगातार भू-सर्वेक्षण की सरल व्यवस्था लागू की जा रही है। यह सर्वेक्षण तहसील या उसके छोटे हिस्से में अधिसूचना द्वारा किया जा सकेगा। शहरी क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन की सुव्यवस्थित प्रणाली प्रारंभ की जा रही है। शहरी क्षेत्रों में अब सेक्टर एवं ब्लॉक होंगे, जिनके नक्शे बडे़ पैमाने के होंगे। इस कारण अब खसरे में छोटे-छोटे मकानों के प्लॉट का इंद्राज किया जा सकेगा। आबादी भूमि में विधिपूर्वक निवास बनाकर धारित की गई भूमि पर व्यक्ति को भूमि-स्वामी अधिकार दिया गया है। अब आबादी भूमि के धारक को भू-अभिलेख प्राप्त होंगे, जिसके आधार पर धारक बैंक ऋण आदि प्राप्त कर सकेंगे। मौरूसी काश्तकार प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। अब भूमिस्वामी निश्चिंत होकर बँटाई पर भूमि दे सकेगा।

मध्यप्रदेश भूमि-स्वामी एवं बटाईदार के हितों का संरक्षण अधिनियम 2016

देश में मध्यप्रदेश भूमिस्वामी और बटाईदार के हितों का संरक्षण करने के लिए कानून बनाने वाला पहला राज्य बना है। अधिनियम को बनाने और लागू करने पर नीति आयोग ने प्रदेश की प्रशंसा की है। अधिनियम के प्रावधान अनुसार अब भूमि-स्वामी अपनी कृषि भूमि को बँटाई या पट्टे पर दे सकता है।

अब भूमि-स्वामी अपनी कृषि भूमि को 5 वर्ष तक के लिए किसी अन्य व्यक्ति को निश्चिंत होकर बटाई या पट्टे पर दे सकेगा। भूमिस्वामी एवं बँटाईदार के मध्य विवादों का निराकरण तहसीलदार द्वारा अर्थात् स्थानीय स्तर पर ही निराकरण हो जायेगा। पट्टा समाप्ति पर पट्टादार द्वारा भूमि-स्वामी को कब्जा नहीं दिये जाने की स्थिति में तहसीलदार भूमि-स्वामी को कब्जा दिला सकेंगे।

मध्यप्रदेश ग्रामों की दखल रहित भूमि अधिनियम 1970 में संशोधन

मध्यप्रदेश ग्रामों की दखल रहित भूमि अधिनियम में यह प्रावधान है कि ग्राम की समस्त दखल रहित भूमि पर नियत तिथि, जो 31 दिसम्बर 2014 है, को जो व्यक्ति भूमि पर काबिज है, को निवास हेतु पट्टा दिया जाये। इस अधिनियम में संशोधन किया गया है। पहले प्रावधान था कि नगर निगम की सीमा से 16 कि.मी, नगर पालिका की सीमा से 8 कि.मी. एवं नगर पंचायत की सीमा से 3 कि.मी. की परिधि में पट्टे नहीं दिये जा सकते थे। अब इसे संशोधित कर निवेश सीमा अथवा पट्टाधिकृति अधिनियम 1984 की सीमा एवं निकाय की बाहरी परिधि पर स्थित ग्राम तक सीमित किया गया है अर्थात् अब ज्यादा क्षेत्र में पट्टे दिये जा सकेंगे।

इसी प्रकार पहले प्रावधान था कि राष्ट्रीय राजमार्ग या मध्यप्रदेश हाईवे के मार्गो के दोनो तरफ एक कि.मी. तक पट्टे नहीं दिये जा सकते हैं । अब इसे घटाकर आधा कि.मी. कर दिया गया है अर्थात् अब ज्यादा क्षेत्र में पट्टे दिये जा सकेंगे।

स्थाई नजूल पट्टों का नवीनीकरण

नजूल के स्थाई पट्टों के नवीनीकरण किये जाने के संबंध में एक मई 2018 को जारी नये परिपत्र में नवीनीकरण की प्रक्रिया को सरल और सस्ता बनाया गया है। पट्टे की शर्तो के उल्लंघन के संबंध में लगाये जाने वाले अर्थदण्ड के प्रावधानों को युक्तियुक्त किया गया है। जैसे- विलंब से आवेदन प्रस्तुत करने पर भूमि के बाजार मूल्य का 0.01 प्रतिशत अर्थदण्ड निर्धारित किया गया है। पट्टा अवधि में निर्माण कार्य न करने पर प्रति चूक वर्ष के लिए बाजार मूल्य के 0.05 प्रतिशत को अब मात्र 01 वर्ष के लिए देना होगा। इसी प्रकार बिना अनुमति विक्रय करने पर पूर्व की बाजार मूल्य की एक प्रतिशत राशि को घटाकर आधा प्रतिशत कर दिया गया है।

भूमि का प्रयोजन परिवर्तन करने, जैसे कि आवासीय से व्यावसायिक, पर पूर्व में भूमि के बाजार मूल्य का 50 प्रतिशत राशि प्रब्याजि के रूप में देनी होती थी। अब इसे 10 गुना कम किया जाकर मात्र 5 प्रतिशत कर दिया गया है। वार्षिक भू-भाटक भी इस 5 प्रतिशत राशि के आधार पर ही निर्धारित होगा।

पदों की पूर्ति

राजस्व अमले की कमी को पूरा करने के लिये 270 नायब तहसीलदारों की पदस्थापना की गयी है। वर्ष 2012 के बाद एक साथ 9325 पटवारी के पदों पर भर्ती की गयी। कलेक्ट्रेट की राजस्व शाखा में सहायक ग्रेड-3 के 561 पदों पर भर्ती की कार्यवाही की जा रही है।

 

प्राकृतिक आपदा में दी जाने वाली अनुदान सहायता राशि में उल्लेखनीय वृद्धि की गयी है। तुलनात्मक विवरण इस प्रकार है-

 

क्र.

कुल खाते की धारित कृषि भूमि के आधार पर खातेदार/कृषक की श्रेणी

फसल क्षति का प्रतिशत

फसल प्रकार

वर्ष 2003 की दरें

वर्ष 2018 की दरें

1

0 से 2 हेक्टेयर

(अ) 25 से 33 प्रतिशत क्षति

असिंचित

वर्ष 2003 में असिंचित फसलों हेतु 4 हे0 से 10 हे0 तक कृषि भूमि धारित करने वाले कृषकों हेतु ही राहत राशि का प्रावधान था उससे कम भूमि हेतु फसल क्षति का प्रावधान नहीं था तथा सिंचित फसलों पर किसी भी प्रकार की राहत राशि नहीं दी जाती थी।

रू.5,000 प्रति हे0

सिंचित

रू.9,000 प्रति हे0

(ब) 33 से 50 प्रतिशत क्षति

असिंचित

रू.8,000 प्रति हे0

सिंचित

रू.15,000 प्रति हे0

(स) 50 प्रतिशत से अधिक क्षति

असिंचित

रू.16,000 प्रति हे0

सिंचित

रू.30,000 प्रति हे0

2

2 हे0 से अधिक

(अ) 25 से 33 प्रतिशत क्षति

असिंचित

प्रावधान नहीं

रू.4,500 प्रति हे0

सिंचित

प्रावधान नहीं

रू.6,500 प्रति हे0

(ब) 33 से 50 प्रतिशत क्षति

असिंचित

प्रावधान नहीं

रू.6,800 प्रति हे0

सिंचित

प्रावधान नहीं

रू.13,500 प्रति हे0

(स) 50 प्रतिशत से अधिक क्षति

असिंचित

प्रावधान नहीं

रू.13,600 प्रति हे0

सिंचित

प्रावधान नहीं

रू.27,000 प्रति हे0

3

बारामाही फसलें (पेरीनियल)

(6 माह से कम)

प्रावधान नहीं

रू.30,000 प्रति हे0

(50 प्रतिशत से अधिक क्षति)

(6 माह से अधिक)

प्रावधान नहीं

रू.30,000 प्रति हे0
(50 प्रतिशत से अधिक क्षति)

4

सब्जी, मसाले तथा ईसबगोल की खेती के लिये

प्रावधान नहीं

रू.30,000 प्रति हे0
(50 प्रतिशत से अधिक क्षति)

5

सेरीकल्चर (ऐरी,शहतूत और टसर तथा मूंगा) फसल के लिये

प्रावधान नहीं

रू.12,000 प्रति हे0
(50 प्रतिशत से अधिक क्षति)

रू.15,000 प्रति हे0
(50 प्रतिशत से अधिक क्षति)

6

पान बरेजे

4000 प्रति हे0

रू. 20,000 प्रति हे0 या रू. 500 प्रति पारी (25 से 33 प्रतिशत तक)

रू. 30,000 प्रति हे0 या रू. 750 प्रति पारी ( 33 प्रतिशत से अधिक)

7

फलदार पेड़

रू 200 प्रति पेड़

रू 500 प्रति पेड़

(33 प्रतिशत से अधिक)

8

संतरा एवं अनार की फसले

रू 200 प्रति पेड़

रू 500 प्रति पेड़

(33 प्रतिशत से अधिक)

9

नीबू के बगीचे, पपीता, अंगूर

रू 4000/- प्रति हे0

रू 13,500 प्रति हे0

(33 प्रतिशत से अधिक)

10

केला फसल क्षति हेतु

रू 4000 प्रति हे0

रू 1,00,000 प्रति हे0

(50प्रतिशत से अधिक)

 

 

राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में 0 से 2 हेक्‍टेयर तक के लघु और सीमान्त कृषकों को फसल क्षति के लिये राशि दिये जाने का प्रावधान वर्ष 2006 में जोड़ा गया। बारहमाही (पेरीनियल) फसल क्षति के लिये वर्ष 2013 से अनुदान राहत राशि देने का प्रावधान किया गया। एक जनवरी, 2011 में नवीन प्रावधान जोड़ते हुए सब्जी की फसल को और 3 फरवरी, 2013 से ईसबगोल की फसल को भी राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में शामिल किया गया है। सेरीकल्चर (ऐरी, शहतूत और टसर तथा मूंगा) फसल के लिये 7 मार्च 2013 को राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 में शामिल किया गया। फसल क्षति के लिए अधिकतम सहायता 60 हजार के स्थान पर अधिकतम एक लाख 20 हजार रुपये का प्रावधान वर्ष 2018 में किया गया है। फसल क्षति के लिए न्यूनतम सहायता राशि 2 हजार के स्थान पर 5 हजार का प्रावधान भी वर्ष 2018 में किया गया है। वर्ष 2018 से राजस्व पुस्तक 6-4 में 50 प्रतिशत से अधिक फसल क्षति पर दी जाने वाली राशि को दोगुना करते हुए 30 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर किया गया है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

Recent