Posted on 09 Jun, 2017 4:20 pm

भोपाल : शुक्रवार, जून 9, 2017, 16:06 IST
 

प्रमुख सचिव पर्यावरण श्री मलय श्रीवास्तव ने कहा है कि वेटलेण्ड संरक्षण की नीतियाँ आम लोगों को ध्यान में रखते हुए बनाएं। लोगों को जागरूक करें कि वेटलेण्ड क्षेत्र में निर्माण एवं अन्य गतिविधियों के होने से बाढ़ एवं प्राकृतिक आपदा का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। वेटलेण्ड संरक्षण केवल पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा नहीं है। इसके लिए एकीकृत योजना बनाने की जरूरत है। वेटलेण्ड चिन्हांकित करते समय आस-पास के लोगों, उचित सीवेज-ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, भू-जल रिचार्जिंग आदि को शामिल करते हुए योजना बनाएं। उन्होंने यह बात आज एप्को परिसर में केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा एप्को द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कही। कार्यशाला में छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और मध्यप्रदेश के विषय-विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

मध्यप्रदेश जैवविविधता बोर्ड के सदस्य सचिव श्री श्रीनिवास मूर्ति ने कहा कि चेन्नई में विनाशकारी बाढ़ आने का मुख्य कारण वेटलेण्ड क्षेत्र में एयरपोर्ट और अन्य निर्माण कार्य रहे। उन्होंने कहा कि पृथ्वीवासियों को रहने लायक वातावरण उपलब्ध कराने वाली ओजोन लेयर बनने में करोड़ों वर्ष लगे। परन्तु पिछले 200 वर्षों के विकास ने क्षति पहुँचाते हुए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं को सामने लाकर खड़ा किया है। प्रकृति को हमारी नहीं हमें प्रकृति की जरूरत है।

एनपीसीए के श्री चंदन सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश में 13 वेटलेण्ड चिन्हांकित किए गए हैं जिनके लिए केन्द्र ने 2 करोड़ 4 लाख रुपये की राशि जारी कर दी है। डॉ. एम. रमेश ने वेटलेण्ड संरक्षण और प्रबंधन के लिए कार्यशाला और दस्तावेज तैयार करना, डॉ. रितेश कुमार ने वेटलेण्ड नोटिफिकेशन तैयारी की गाइडलाइन, डॉ. बी.सी. चौधरी ने जैवविविधता के परिप्रेक्ष्य में वेटलेण्ड, प्रो. जे.के. गर्ग ने वेटलेण्ड का नक्शा निर्धारण के बारे में जानकारी दी।

देश में 26 वेटलेण्ड साइट्स हैं जिनमें मध्यप्रदेश का भोपाल ताल (भोज वेटलेण्ड) भी शामिल है। यहाँ 20 हजार पक्षी (हर साल), 100-120 सारस, 43 प्रजाति की मछली, 10 प्रजाति के सरीसर्प और उभयचर 106 प्रजाति के जलीय पादप, 208 प्रजाति के प्लवक और 115 प्रजाति जूप्लान्कटोंस पाए जाते हैं।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश