Posted on 13 Nov, 2016 6:21 pm

भोपाल : रविवार, नवम्बर 13, 2016, 17:43 IST
 

पिछले ढाई वर्ष में भारत की विदेश नीति में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। नई सरकार के आने के बाद इस बात को केन्द्रित करके विदेश नीति बनाई जा रही है कि किस तरह से बाह्य संबंधों के आधार पर आतंरिक विकास को बढ़ाया जा सके। यह पहली बार हो रहा है कि देश में भू-राजनैतिक, भू-रणनीतिक, भू-आर्थिक विषयों के साथ भू-संस्कृति को केन्द्र में रखकर विदेश नीति बनाई जा रही है। इसके सुपरिणाम भी सामने आये हैं। विश्व के लगभग सभी देश भारत से संबंध बनाने को इच्छुक है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राएँ इस दिशा में एक सुनियोजित प्रयास है। आने वाले 15 दिसम्बर तक विश्व में ऐसा कोई देश नहीं होगा जहाँ पिछले ढाई साल में भारत के प्रतिनिधि नहीं पहुँचे हों।

यह विचार लोक-मंथन के दूसरे दिन 'भारत की भू-राजनीति एवं वर्तमान वैश्विक परिदृश्य' विषय पर समानांतर सत्र में वक्ताओं ने व्यक्त किए।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए आर.आई.एस. के महानिदेशक श्री सचिन चतुर्वेदी ने कहा कि पिछले 70 वर्ष में हमारे देश में विदेश नीति पर इतना जोर कभी नहीं रहा, जो आज है। अब इसे भू-आर्थिकी से जोड़कर देश के लिए संसाधन पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रधानमंत्री की विदेश यात्राएँ इस दिशा में दूरगामी परिणाम देगी। भारत ने पाकिस्तान के विरोध के बाद सार्क के स्थान पर बांग्लादेश,बर्मा और नेपाल को लेकर नया संगठन बना दिया है, जिसमें चारों देश के बीच सड़क परिवहन को लेकर कानून शिथिल किये गये हैं और अब बिजली के व्यापार की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं।

इसके साथ भारत ने पश्चिम एशिया के देशों में अपने संबंधों में भी बढ़ोतरी की है और नये व्यापारिक संबंध स्थापित किये हैं। चीन अन्य देशों से हमारे संबंधों को लेकर नये तरीके से रणनीति तैयार कर रहा है। उसने कूटनीति के साथ 'चेक' नीति को भी आगे बढ़ाया है। वह छोटे देशों को भारी सहायता दे रहा है।

भारत ने भी अब इस पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। आज हम 4.5 बिलियन डालर की सहायता दे रहे हैं। उन्होंने मेक इन इंडिया अभियान को लेकर कहा कि यह विदेश नीति का भी हिस्सा है। राज्य सरकारें और उद्योग घराने सहयोग करेंगे।

आर्गेनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि भारत की विदेश नीति की सफलता इस बात से जाहिर होती है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून आयोग में श्री अनिल राजपूत की नियुक्ति को 160 देशों ने समर्थन दिया। भारत की भू-राजनीति संस्कृति को साथ लेने के कारण महत्वपूर्ण हो गई है। अंग्रेजों ने भी भारत की भौगोलिक स्थिति केन्द्र में होने के कारण ही विश्व में राज किया था। उन्होंने कहा कि नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों के जलने के बाद ही भारत और चीन के संबंध खराब हुए थे।

स्तभंकार श्री तूफैल अहमद ने कहा कि भारत ने सैन्य दृष्टिकोण से पाकिस्तान से हुए युद्धों को जीत तो लिया लेकिन उनका कोई रणनीतिक लाभ नहीं मिला। उसका कारण तत्कालीन नेताओं की बौद्धिक निर्णय क्षमता था। जिसमें वह मिलेट्री सक्सेस को कूटनीतिक सफलता में नहीं बदल पाये। यू.पी.ए.सरकार ने अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान को पीओके में 'फ्री हेन्ड' दिये जाने का भी निर्णय कर लिया था। उन्होंने कहा कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय के पहले भारत को पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करना चाहिए।

राजनीति विज्ञान के पूर्व प्राध्यापक डॉ.ज्ञानवर्धन पाठक ने कहा कि आचार्य चाणक्य पहले भू-राजनीति विज्ञान के आचार्य थे, जिन्होंने विदेश नीति और भू-राजनीति के सूत्र दिये । पं. जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति को लेकर उन्होंने कहा कि नेहरू ने जो कहा, उसे वह अमल में नहीं लाये। भारत ने पिछले 2 साल में 250 बिलियन डालर के समझौते किये, जो रक्षा सौदे से जुड़े हैं। चर्चा के दौरान प्रश्न-उत्तर भी हुए।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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