Posted on 13 Nov, 2016 6:15 pm

भोपाल : रविवार, नवम्बर 13, 2016, 17:48 IST
 

लोकमंथन में राष्ट्र सर्वोपरि थीम पर चल रहे वैचारिक सत्रों की श्रृंखला में 'राष्ट्रीयता- आधुनिकता का विरोध नहीं विषय पर चर्चा आरंभ करते हुए श्री हिन्दोल सोन गुप्ता ने कहा कि भारत में जन्में व्यक्ति को पुरातन से ही संस्कार और संस्कृति मिलती है और वह जीवन पर्यन्त उसी संस्कृति का निर्वहन करता है। हमारा संस्कार आधुनिक है और उसे हम निरंतर अपने जीवन में आत्मसात् कर रहे हैं। हमारा भारत अखंड है जिसमें अलग-अलग जाति, धर्म, रंग, वेश-भूषा, बोली, संगीत दिखाई देते हैं। फिर भी वह एक अखंड मंडलाकार आकृति में समाहित है। यह सच है कि पश्चिमी संस्कृति में विविधता न होकर एक मत, एक चमड़ी, एक वेश-भूषा, एक बोली को बढ़ावा मिलता है। यह हम पर भी थोपने के प्रयास हुए हैं जो अभी तक असफल ही कहे जा सकते हैं।

चर्चा में भाग लेते हुए श्री बलदेवभाई शर्मा ने आधुनिकता को लेकर ग्वालियर का कंघा प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि हम छोटी-छोटी बातों से हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं। जबकि आधुनिकता रहन-सहन का विचार नहीं हो सकती। पहनावा और अन्य रहन-सहन के तरीके बदलते रहते हैं जबकि आधुनिकता एक विचार दृष्टि है। वह जीवन का मूल तत्व है, जो जीवन का निर्धारण करती है। भारत का राष्ट्रवाद गौरवशाली रहा है। हमें राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद में से राष्ट्रीयता का चयन करना चाहिए और आधुनिकता को लेकर किसी भी तरह की ग्रंथी (हीन भावना) से बाहर निकलना होगा तभी हमारा समाज सुदृढ़ हो सकेगा।

सत्र में डॉ. श्यामसुन्दर दुबे ने गांव की वैभवशाली परंपराओं, संस्कृतियों, गीत-संगीत को सार्वभौमिक बताते हुए कहा कि पहले गाँव के आँगन में बैठकर लोकगीत गाए जाते थे जिन्हें नई पीढ़ी भी सुनती थी। आज रेडियो, टेलीविजन और नए मीडिया ने लोगों की दूरियाँ बड़ा दी हैं। इस कारण हमारी जो मूल संस्कृति थी वह पीछे छूट गई है। खेती को हम सबसे श्रेष्ठ मानते थे आज कोई खेती करना नहीं चाहता। किसानों के बच्चों में भी हीन भावना बैठ गई है। वह भी किसी अधिकारी, उद्योगपति और राजनेता की तरह बाजार में रहना पसंद कर रहे हैं, गाँव से पलायन हो रहा है, जबकि हमारी संस्कृति और आधुनिकता गाँव में बसती है।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि हमें पश्चिम की नकल को छोड़ना होगा। भारत की मिट्टी लोक की मिट्टी है। हमारे यहाँ गीत-संगीत, खेती-किसानी और अनेक उद्यम वर्षों से आधुनिकता को बढ़ावा दे रहे हैं। हमारे यहाँ राष्ट्रीयता में संकीर्णता को कोई स्थान नहीं है। हमारा राष्ट्रवाद आधुनिकता का विरोधी नहीं है। परंतु हमे नकल और हीन भावना से बचना होगा। पश्चिमी दृष्टि ने हमें आधुनिकता का जो मॉडल दिया है, वह हमारे किसी काम का नहीं है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

Recent