Posted on 13 Nov, 2016 9:07 pm

भोपाल : रविवार, नवम्बर 13, 2016, 19:12 IST
 

लोक-मंथन के दूसरे दिन समानांतर सत्र के दौरान 'आधुनिकता की आवधारणा एवं जीवन-शैली'' विषय पर डॉ. अनिर्बान गांगुली, अद्वैत काला तथा केन्द्रीय कपड़ा मंत्री श्रीमती स्मृति जुबीन ईरानी ने अपने विचार रखें।

समझना ही आधुनिकता है

केन्द्रीय कपड़ा मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने कहा कि आधुनिकता और अधुनिकीकरण में फर्क करना सीखना होगा। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य विचारों में शक्ति,सफलता एवं धन संग्रह पर जोर है। वहाँ उपभोग और प्रतिस्पर्धा पर बल दिया जाता है। भारतीय परम्परा के केन्द्र-बिंदु में परिवार, सम्मान और सहयोग है। आधुनिकता का मतलब सभी के विचार-बिंदुओं को समझना है। हमारी भारतीय परम्परा जीवन जीने का तरीका सिखाती है। दूसरी ओर पाश्चात्य विचार जीवन-शैली पर ध्यान देते हैं। आधुनिकता तो हमेशा परम्परा से ही आती है, क्योंकि उसमें समस्याओं का उत्तर देने की क्षमता होती है। हिन्दुस्तान अपनी जीवन-शैली कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने कहा कि परम्परा और आधुनिकता जल की धारा की तरह है। इसमें अंतर करना मुश्किल है। यह तो केवल प्रतीकात्मक है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संस्कार मजबूत होने से संस्कृति भी मजबूत होती है।

सुश्री अद्वैता काला ने कहा कि आधुनिकता की विडंबना है कि आज इसे जीवन-शैली से मिला दिया गया है। आज इसे आप हर आयु में देख सकते हैं। यह छोटा- बड़ा हर प्रकार का है। हर कोई इसे अपने तरीके से परिभाषित करता है और इस पर अपना निर्णय देता है। आधुनिकता को जीवन-शैली से मिला देने पर गंभीर और चिंताजनक परिणाम आए हैं। कोई इस आधुनिकता को बोल-चाल और पहनावे से परिभाषित करता है तो कोई इसमें मूल्य और दर्शन को महत्व देता है। आधुनिकता दर-असल एक पैराडाइम शिफ्ट है जो हमारे दिमाग की प्रगति से जुड़ा है और युग के अनुसार बदलता रहता है। आधुनिकता का क्षेत्र व्यापक है यह तकनीक, कला और शिक्षा हर चीज़ से जुड़ा है। इसने हमें अमानवीय भी बनाया है कुछ-कुछ मशीन की तरह। मैं इसकी आलोचना नहीं कर रही पर हम में से हर किसी को, परम्परा को अस्वीकार करने से पहले यह पूछना चाहिए कि हम इसे क्यों अस्वीकार कर रहे हैं ? परम्परा और अधुनिकता एक सतत् प्रक्रिया है। आधुनिकता और जीवन-शैली के प्रति हमें सही समझ विकसित करनी होगी। इससे हमारे संबंधों की समझ भी विकसित होगी। ऐसा विवेक और प्रेरणा हम कालातीत वेदों से ही प्राप्त कर सकते हैं। यह हमारे स्वास्थ्य और समृद्धि को भी बढ़ाने वाला है। आधुनिकता के छलावे से लड़ना आज एक चुनौती है। इसे आपसी मतभेदों से नहीं वरन् अपनी संस्कृति, मूल्यों और आर्दशों की सही समझ से विकसित करना होगा। हमारे मूल्य तब से लेकर आज तक विकसित ही हो रहे हैं।

 हमारी सभ्यता आधुनिकता से भी संवाद करती है

डॉ. अनिर्बान गांगुली ने कहा कि परम्परा और जीवन-शैली हमारी चितंन प्रक्रिया को प्रभावित करती है। ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने हमारे भीतर इच्छा और महत्वाकांक्षा को जगाया। इससे एक पौलिटिकल हैजीमनी बनता है, जिससे परम्परा क्षतिग्रस्त होती है और हमारी विश्व दृष्टि जड़विहीन हो जाती है। आधुनिकता मतलब पाश्चात्यकरण नहीं है। यह बात वर्ष 1965 में ही पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कही थी। मैकाले का एक ही मकसद था भारतीयों को उनकी जड़ों से काट देना। अरबिंदो ने भी इस बात पर जोर दिया है कि हम किसी भी बाहरी विचार को अपनी शर्तों पर स्वीकार करें। हमारी आधुनिकता ऐसी होनी चाहिए, जो जीवन-शैली से मेल खाती हो। हमें हर हाल में भारतीयता को सुरक्षित रखना है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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