Posted on 06 Mar, 2018 7:18 pm

झाबुआ जिले में पेटलावद विकासखण्ड में छोटा सा गांव है दुलाखेडी। इस गांव की पहचान है स्वादिष्ट गुड़। यह गुड़ मुम्बई, पुणे और गुजरात तक बिकता है। खास बात यह है कि इस गुड़ का उत्पादन 85 साल के बुजुर्ग रामाजी परमार अपनी देखरेख में करवाते हैं।

एक समय था जब झाबुआ जिले में केवल मक्का का उत्पादन होता था। गेहूँ की खेती करने के बारे में भी कोई सोच नहीं सकता था। ऐसे वक्त में रामाजी ने गन्ने से गुड़ का उत्पादन करने का निर्णय लिया। इसके लिए इन्होंने पहले खेत के एक छोटे से हिस्से में गन्ना लगाया। जब फसल तैयार हुई तो फिर गुड़ का उत्पादन शुरू किया। शुरूआत में ही सफलता मिली, तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अब रामाजी हर साल 8 से 10 क्विंटल गुड का उत्पादन कर रहे हैं। इसे बेचने के लिए उन्हें बाजार भी नहीं जाना पड़ता, उनके ग्राहक पहले से ही बुंकिंग करवा लेते हैं। यहां तक कि मुम्बई, पुणे और सूरत तक उनका गुड़ जाता है। रामाजी की उम्र अधिक हो जाने से अब उनके बेटे पन्नालाल और बाबूलाल उनके निर्देशन में पूरा कामकाज देखते हैं।

रामाजी परमार के अनुसार पानी की कमी के चलते वे दो बीघा खेत में ही गन्ना लगाते हैं। फरवरी-मार्च में गन्ना लगाने के बाद अगले साल जनवरी-फरवरी में उसकी कटाई की जाती है। इससे सीधे गुड़ तैयार किया जाता है। लागत 20 से 30 हजार रूपए आती है और मुनाफा दो गुना होता है।

गुड़ उत्पादन की प्रक्रिया में मेहनत बहुत ज्यादा लगती है। एक बार जब भट्टी चालू की तो फिर आखिरी गन्ने के चरखी में से गुजरने तक बंद नहीं की जा सकती। यदि समय ज्यादा लगा और गन्ना कुछ घंटे ऐसे ही पड़ा रह गया, तो उसका स्वाद बिगड़ जाता है। इसलिये खेत से गन्ना काटने, उसके छिलके हटाकर रस बनाने और फिर भटटी पर पकाकर गुड बनाने तक पूरी एक चेन बनानी पड़ती है। दिन-रात काम चलता है। तब जाकर स्वादिष्ट गुड़ बन पाता है। इसी वजह से आसपास के प्रदेशों में गुड की मांग बनी हुई है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

Recent