Posted on 19 Apr, 2018 5:07 pm

 

मध्यप्रदेश का किसान खेती को लाभकारी धंधा बनाने के लिये राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं का भरपूर लाभ ले रहा है। प्रदेश में रासायनिक खाद का खेती में उपयोग धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। खेती के नये-नये आधुनिक उपकरणों का उपयोग करने में भी किसान बहुत आगे बढ़ गये हैं। कम पानी से अच्छी सिंचाई के लिए किसान अब ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाने लगे हैं। जैविक पद्धति से दलहन, तिलहन, फलों, फूलों की खेती करना किसानों की पहली पसन्द बन गई है। साथ ही पशुपालन को किसानों ने आय का अतिरिक्त जरिया बना लिया है।

उज्जैन जिले में ग्राम पालकी, तहसील नागदा के किसान प्रेमसिंह ने जैविक कृषक के रूप में अपने आस-पास के इलाके में पहचान बनाई है। छह हेक्टेयर में खेती करने वाले कृषक प्रेमसिंह बताते हैं कि उनके यहां तीन हेक्टेयर में ही सिंचाई होती है। पहले वे भी एक आम किसान की तरह गेहूँ, चना और सोयाबीन की फसल लिया करते थे। आत्मा परियोजना के अधिकारियों के सम्पर्क में आने के बाद उनका रूझान जैविक खेती की तरफ हुआ। उन्होंने सबसे पहले वर्मी कम्पोस्ट का पिट बनाया और एजोला कल्चर का उत्पादन शुरू किया। एजोला कल्चर का उपयोग पशुओं के लिये हरे चारे के उत्पादन में किया, जिससे भैंस के दूध में फेट की वृद्धि हुई। अब दूध का दाम अच्छा मिलने लगा है।

कृषक प्रेमसिंह ने विगत दो वर्षों से खेती में रासयनिक खाद का उपयोग बिलकुल बन्द कर दिया है। यही नहीं, उन्होंने वर्मी कम्पोस्ट के माध्यम से केंचुए का खाद बनाकर उसका व्यावसायिक उपयोग शुरू किया है। उन्हें जैविक खाद की बिक्री से दो लाख रूपये की अतिरिक्त आय प्राप्त हो रही है। आसपास के ग्रामों के कृषक उनसे जैविक खाद खरीद कर ले जाते हैं और अपने खेतों में उपयोग करते है। प्रेमसिंह बताते है कि सामान्य खेती से उत्पादित गेहूँ 1500- 1600 रूपये प्रति क्विंटल बिकता था। जैविक पद्धति से उत्पादित गेहूँ 2500-3000 रूपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। इससे प्रेमसिंह को रासायनिक खाद पर व्यय होने वाली लगभग सात हजार रूपये प्रति हेक्टेयर की राशि की अलग से बचत भी हो रही है। 

इंदौर जिले में तहसील साँवेर के ग्राम बसान्द्रा के सुभाषचन्द्र राठौर वर्षों से परम्परागत खेती करते आ रहे थे। उन्होंने परम्परागत खेती के स्थान पर अमरूद की खेती करना शुरू किया। सुभाष ने डेढ़ हेक्टेयर खेत में अमरूद के 15 हजार पौधे लगाये। आधुनिक तकनीक अपनाते हुये सुभाष ने ट्रैक्टर से जुताई की ड्रिप पद्धति से सिंचाई की। आज खेत में अमरूद के सभी पौधे जीवित है। हर साल लगभग 300 क्विंटल अमरूद पैदा होता है। अमरूद 5 रूपये प्रति किलो की दर से बेचने पर सारा खर्च काट कर सुभाष को लगभग एक लाख रूपये प्रति वर्ष अतिरिक्त आय हो रही है। अमरूद के बगीचों के रख-रखाव पर उन्हें केवल 50 हजार रूपये सलाना खर्च करना होता है। अमरूद के साथ मिश्रित खेती करते हुए मटर और बैगन से भी सालाना लगभग 20 हजार रूपये शुद्ध आय प्राप्त कर रहे हैं। सुभाष अब अन्य किसानों को मिश्रित खेती करने की सलाह दे रहे है।  

कटनी जिले के संजीव नैयर, अमित जैन, अंजनी कुमार छरिया, विजय निषाद और श्यामा लालवानी, ऐसे उद्यानिकी कृषक हैं, जिन्होंने उद्यानिकी योजनाओं से भरपूर लाभ लिया है। भानपुरा में कृषक संजीव नैयर ने उद्यानिकी फसल अनार की खेती शुरू की है और साथ ही, चार हेक्टेयर में पॉली हाउस अंदर के फूलों का बंपर उत्पादन भी ले रहे हैं। संजीव नैयर के फूल, कटनी ही नहीं, देश के अन्य महानगरों में भी अच्छे दामों पर बिकते हैं। संजीव दो हैक्टेयर पॉली हाउस में ही शिमला मिर्च और नींबू की खेती कर रहे हैं।

कटंगी खुर्द में उद्यानिकी कृषक अमित कुमार ने चार हैक्टेयर में सीडलैस नींबू की खेती की है और अब चार हैक्टेयर में ड्रिप तथा मल्चिंग सिस्टम से मिर्च का उत्पादन कर रहे हैं। कटंगी खुर्द में ही एक और उद्यानिकी कृषक अंजनी कुमार छरिया भी अपने 4 हैक्टेयर खेत में मिर्च और नींबू की खेती कर रहे हैं।

उच्च घनत्व पौध रोपण योजना के तहत मझगवां में उद्यानिकी कृषक सायमा लालवानी ने दो हैक्टेयर में आम के पौधों का रोपण किया है। कटनी के बसाड़ी ग्राम में उद्यानिकी कृषक प्रवीण बजाज ने उच्च घनत्व पौध रोपण योजना के तहत 3 हेक्टेयर में आम के पौधों का रोपण किया है। अब प्रदेश में किसान परम्परागत खेती से हटकर फलोद्यान, हार्ल्टीकल्चर आदि को अपना रहे हैं


सक्सेस स्टोरी (उज्जैन, इंदौर, कटनी)

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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