Posted on 25 Apr, 2018 8:39 pm

 

सागर जिले के राहतगढ़ के किसान अतरसिंह कहते हैं कि जैविक खाद, बीज और कीटनाशक अधिक कारगर हैं। लागत कम और पैदावार ज्यादा होती है। इससे खेती की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और पर्यावरण भी अच्छा रहता है।

अतरसिंह बताते है कि उन्होंने निश्चय किया कि खेती के पारम्परिक तरीकों से अलग उन्नत तकनीकों का प्रयोग कर उन्नतशील कृषक बनेंगे। कृषि विभाग की आत्मा परियोजना से एकीकृत कीट और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन आदि की जानकारी प्राप्त की। कृषक प्रशिक्षण, किसान खेत पाठशाला में भाग लेकर आलू उत्पादन की उन्नत तकनीक सीखी एवं उसका प्रयोग अपने खेत में किया।  

अतरसिंह ने कम्पोस्ट एवं नाडेप बनाकर अपने खेत में जैविक खाद बनाई। खाद में नीम की खली मिलाने से दीमक नियंत्रण एवं अन्य कीटों की रोकथाम हुई और पौधों को पोषक तत्व भी प्राप्त हुए। बीज उपचार के लिये हैण्ड व्हील को चलाकर खरपतवार की निंदाई की। आलू की फसल सुरक्षा के लिये नीम तेल के जलीय घोल का 2 लीटर प्रति एकड़ छिड़काव किया। रसायनों के कम और जैविक साधनों के अधिक प्रयोग से खेती में लगने वाली लागत में कमी आयी।    

अतरसिंह बताते है कि खेती की उन्नत तकनीकों का प्रयोग कर कम लागत में अच्छी  गुणवत्ता की सब्जी और फसलों के उत्पादन से अच्छा-खासा मुनाफा हो रहा है। अतरसिंह ने 1.56 हेक्टयेर में लगभग 2 लाख रूपये की शुद्ध आय प्राप्त की। वे आलू के अतिरिक्त सोयाबीन, मूंगफली, बैंगन, टमाटर, मिर्ची की फसलें भी पैदा कर रहे हैं। अतरसिंह के फसल विविधता प्रयोग देखने अन्य किसान आते हैं।

 

 

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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