Posted on 17 Jun, 2016 6:14 pm

माँसाहारी हो या शाकाहारी, सभी पशु-पक्षियों के लिये भरपूर चारा-पानी की उपलब्धता है श्योपुर के कूनो अभयारण्य में। यहाँ चीतल का घनत्व बहुत अधिक है। तकरीबन 345 वर्ग किलोमीटर में फैले अभयारण्य में करीब 20 हजार चीतल हैं, जो तेन्दुए और बाघ का सहज आहार हैं। कूनो में चीतल के अलावा सांभर, नीलगाय, चौसिंहा, चिंकारा, जंगली सुअर, मोर, खरगोश भी काफी हैं।

बड़े पैमाने पर चारागाह विकास-प्रोटीन का भी ध्यान

वन्य-प्राणियों को सालभर पर्याप्त घास उपलब्ध करवाने के लिये अभयारण्य से विस्थापित गाँव दुर्रेडी में 2 हेक्टेयर क्षेत्र में नर्सरी बनाकर खाने योग्य घास प्रजातियों के स्लिप तैयार किये गये हैं। पिछले 3 साल में अभयारण्य में विभिन्न स्थान पर बड़े-बड़े चारागाह विकसित किये गये हैं। अभयारण्य में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध दलहन जैसे जंगली मूंग, अरहर, बरबटी, मूठ आदि के बीज इकट्ठा कर चारागाह रोपण क्षेत्र में बोए गये हैं, ताकि शाकाहारी वन्य-प्राणियों को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिलता रहे।

हर साल बन रहे हैं नये चारागाह

वर्तमान में अभयारण्य में विभिन्न वर्षों में विस्थापित गाँवों में चारागाह विकास के लिये कूपों का उपचारण किया जा रहा है, जिससे हर साल चारागाह को नये-नये केन्द्र मिल रहे हैं। निरीक्षण में इनमें शाकाहारी प्राणियों की भरपूर उपस्थिति भी देखी गयी है। साथ ही बहु-वार्षिक घास प्रजातियाँ जैसे छोटी मारबल, दूब, लम्पा, जरगा, गुनेर आदि को पास के क्षेत्र से लाकर चारागाह क्षेत्र में लगाया गया है।

जल-स्रोतों का विकास

कूनो वन मण्डल में कूनो, क्वारी, पारम, छोटी पारम नदी, बासीकुण्ड नाला, सिकरोनिया नाला आदि मुख्य जल-स्रोत हैं। ये सभी नदी-नाले दिसम्बर के बाद कुण्ड में तब्दील हो जाते हैं। इसलिये वन विभाग ने कृत्रिम जल-स्रोत भी बनाये हैं। यहाँ कुल 240 बारहमासी (212 प्राकृतिक और 28 कृत्रिम) और 133 अस्थाई (प्राकृतिक 45 एवं 88 कृत्रिम) जल-स्रोत हैं। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में कैर खो नाले से पाइप-लाइन डालकर 3 बड़े तालाब- केम तलाई, मरी तलाई और खैर तलाई को जोड़कर 14 किलोमीटर ग्रेविटी पाइप-लाइन का निर्माण किया गया। तालाबों को गहरा कर अधिक जल-संग्रहण किया गया। जिन क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के बाद पानी नहीं रहता था, वहाँ 2-3 मीटर गहरी खुदाई की गयी। अब इन स्थानों पर वर्षभर पानी रहता है। वन्य-प्राणी आसानी से जल-स्रोतों पर पहुँच सकें, इसके लिये रैम्प भी बनाये गये हैं। जरूरत पड़ने पर टैंकर से बनायी गयी सॉसर को भी पानी से भरा जाता है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश 

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