Posted on 07 Jul, 2017 6:51 pm

भोपाल : शुक्रवार, जुलाई 7, 2017, 17:39 IST
 

पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को) द्वारा ग्रीन गणेश अभियान-2017 का शुभारंभ 10 जुलाई को भोपाल में राज्य-स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम से होगा। यह कार्यक्रम तीन चरण में होगा।

कार्यपालन संचालक श्री अनुपम राजन ने बताया कि प्रथम चरण में प्रदेश के सभी संभागीय मुख्यालय से एनजीसी के मास्टर-ट्रेनर्स और प्रमुख मूर्तिकारों को प्रशिक्षण के लिये भोपाल आमंत्रित किया गया है। प्रतिभागियों को पीओपी तथा रासायनिक रंगों का उपयोग कर बनायी गयी मूर्तियों के नदी, तालाब, झील इत्यादि में विसर्जन से इनकी गुणवत्ता पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव से अवगत करवाया जायेगा। उन्हें सामान्य मिट्टी तथा प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर छोटे आकार की मूर्ति बनाने की जानकारी और प्रशिक्षण दिया जायेगा।

द्वितीय चरण में भोपाल, जबलपुर, इंदौर, उज्जैन, रीवा संभाग मुख्यालयों पर जुलाई के अंतिम सप्ताह में प्रशिक्षण कार्यक्रम होंगे। कार्यक्रमों में स्थानीय मूर्तिकारों को आमंत्रित कर उन्हें मिट्टी की छोटी गणेश प्रतिमाएँ बनाकर बेचने के लिये प्रेरित किया जायेगा।

संभागीय मुख्यालयों पर होगा ग्रीन गणेश अभियान आयोजन

तृतीय चरण में 16 से 23 अगस्त, 2017 तक एप्को का दल प्रशिक्षित मास्टर-ट्रेनर्स और मूर्तिकारों के साथ संभागीय मुख्यालयों पर जाकर दो-दिवसीय ग्रीन गणेश अभियान का आयोजन करेगा। इसमें विद्यार्थियों के लिये विद्यालयों और जन-सामान्य के लिये सार्वजनिक स्थलों पर शिविर लगेंगे। शिविर में मिट्टी तथा प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर छोटे आकार की गणेश प्रतिमाएँ बनाना सिखायी जायेंगी। 'आओ-बनाओ और घर ले जाओ'' की अवधारणा पर अपनी बनायी मूर्ति प्रतिभागी अपने साथ ले जा सकेंगे।

श्री राजन ने बताया कि एप्को द्वारा पिछले साल भोपाल संभाग में ईको फ्रेण्डली ग्रीन गणेश मूर्ति निर्माण पर मूर्तिकारों एवं आमजन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गये थे। इससे जलाशयों और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में काफी जागरूकता आयी थी, जिसके विसर्जन के दौरान सकारात्मक परिणाम मिले। मिट्टी की प्रतिमाओं के विसर्जन से गत वर्ष पानी में विषैले तत्वों की मात्रा अपेक्षाकृत काफी कम मिली। श्री राजन ने कहा कि प्रतिभागियों को प्रेरित किया जायेगा कि वे मूर्तियों का विसर्जन अपने घरों में या स्थानीय नगरीय निकायों द्वारा चिन्हित स्थलों पर ही करें। इससे हमारे जलाशयों का पर्यावरण संरक्षित होगा।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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