Posted on 17 Feb, 2018 3:42 pm

स्कूलों में गुड़-मूंगफली चिक्की देने की राज्य शासन की योजना एक पंथ दो काज साबित हो रही है। गुड़ और मूंगफली से जहाँ बच्चों का हीमोग्लोबिन बढ़ने से कुपोषण खत्म होता है, वहीं आजीविका मिशन के जरिये स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा चिक्की तैयार किये जाने से उन्हें रोजगार भी मिल रहा है। धार जिले में तीन स्व-सहायता समूह चिक्की तैयार कर रहे हैं। तिरला में जय गुरुदेव स्व-सहायता समूह, गंधवानी में धारेश्वर और डही विकास खंड में आजाद आजीविका स्व-समूह को प्रशिक्षण दिलवाकर इनसे गुड़ चिक्की का निर्माण करवाया जा रहा है।

प्रदेशों में प्राथमिक शालाओं के बच्चों को सप्ताह में तीन दिन मंगलवार,गुरुवार और शनिवार को 25 ग्राम चिक्की देने का निर्णय लिया गया है। इन तीनों विकास खण्ड के 853 स्कूलों के लगभग 29 हजार छात्र-छात्राओं को प्रति सप्ताह तीन दिन के मान से लगभग 87 क्विंटल चिक्की वितरित करने के लिए तीनों यूनिट द्वारा निरंतर काम किया जा रहा है। स्व-सहायता समूह द्वारा तैयार करने से चिक्की की लागत ब्राण्डेड उत्पाद से आधी आ रही है। बाजार में चिक्की सामान्यत: 140 प्रति किलो ग्राम में मिलती है। जबकि स्व-सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार चिक्की की लागत 70 रूपये प्रति किलो ग्राम में आ रही है जिसकी स्कूलों में 80 रूपये प्रति किलो ग्राम की दर से आपूर्ति की जा रही है। समूह को 10 रुपये प्रति किलो ग्राम की बचत हो रही है।

स्कूल ड्रेस सिलाई से जुड़ीं स्व-सहायता समूह की 2000 महिलाएँ : राजगढ़ जिले में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने स्कूल ड्रेस सिलाई कार्य से महिलाओं को जोड़ा है। जिले में प्रत्येक वर्ष शासकीय एवं निजी स्कूलों में छात्र-छात्राओं द्वारा गणवेश क्रय में लगभग 5 करोड़ रुपये का वार्षिक टर्न ओवर का व्यवसाय उपलब्ध है। मिशन ने महिलाओं को सिलाई का प्रशिक्षण दिया। वर्ष 2015-16 के सत्र में हुए पहले प्रयास में 200 स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने 12 हजार 500 स्कूल ड्रेस के आर्डर प्राप्त किये। कुल टर्न ओवर 25 लाख के साथ महिलाओं को 40 हजार रुपये वार्षिक की औसत आमदनी हुई। अगले सत्र 2016-17 में 25 हजार ड्रेस के आर्डर मिले और टर्न ओवर 50 लाख रुपये रहा। वर्ष 2017-18 में अब तक स्व-सहायता समूह की महिलाओं को 50 हजार स्कूल ड्रेस निर्माण का आर्डर मिल चुका है। ये महिलाएँ अपने गाँव में कपड़े सिल कर रेडीमेड वस्त्रों के रूप में बेच रही हैं। समूह की प्रशिक्षित महिलाएँ अन्य जिलों में जाकर मास्टर ट्रेनर के रूप में महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण भी देती है।

स्वच्छ भारत मिशन से मिला 30,000 टी-शर्ट सप्लाई आर्डर : समूह की महिलाओं को स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत 6000 टी-शर्ट सप्लाई के भी आर्डर मिल चुके है जिसका टर्नओवर 18 लाख रुपये था। वर्ष 2017-18 में भी स्वच्छ भारत मिशन द्वारा महिलाओं को 30 हजार टी-शर्ट सिलकर अन्य आठ जिलों में सप्लाई का आर्डर प्राप्त हुआ है जिसका वार्षिक टर्नओवर 90 लाख रुपये है।

आजीविका मिशन बना पदमा के लिए आय का जरिया : शाजापुर जिले के ग्राम खेड़ावत की पदमा लावरिया हमेशा इसी उधेड़बुन में रहतीं कि कैसे परिवार का जीवन स्तर ऊँचा करें पर जल्दी शादी होने से ना पढ़ाई-लिखाई कर पाई और न ही कुछ अलग करने का मौका मिला। ऐसे में एक दिन उन्हें राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की जानकारी मिली तो उन्होंने गाँव की महिलाओं के साथ स्व-सहायता समूह का गठन किया। तुलसी स्व-सहायता नाम से गठित इस समूह ने आपसी लेन-देन के साथ गतिविधियाँ शुरू कीं। इसके बाद मिशन से प्रशिक्षण ले कर उसने आस-पास के गाँव की महिलाओं को समूह से जोड़ने काम शुरू किया। इससे उसे 324 रुपये प्रति-दिवस का मानदेय माह में कम से कम 10 दिन के लिए मिलने लगा। पदमा ने कृत्रिम आभूषण निर्माण प्रशिक्षण लिया और बैंक से 50 हजार रुपये का ऋण लिया। उसने अपने घर के पास ही किराने के दुकान भी खोली जिससे उसे 3000 रुपये से अधिक की मासिक आमदनी हो जाती है। आज पदमा खुश भी है और आत्मविश्वास से भरपूर भी।

अपने आप में सिमटे गाँव बैहार में आज है 16 स्व-सहायता समूह : अनूपपुर जिले के जैतहरी विकास खण्ड में एक गाँव है बैहार। पहाड़ों और जंगलों से घिरे इस गाँव में अधिकारियों और कर्मचारियों का आवागमन भी कम हो पाता था। जब अधिकारी गाँव में पहुँचते हैं तो गाँव वाले घर के दरवाजे बंद कर अंदर चले जाते थे। आवागमन की सुविधा भी कम होने से गाँव के लोगों का सम्पर्क बाहर के लोगों से कम ही था। आजीविका मिशन ने इस गाँव की उन्नति करने की ठानी। मिशन के सदस्य बार-बार गाँव पहुँचे, समूह के बारे में समझाइश दी। आखिर सबसे पहला महिला स्व-सहायता समूह बन ही गया। धीरे-धीरे समूह ने गति पकड़ी और सभी सदस्य 10 रुपये की प्रति सप्ताह बचत करने लगे तथा छोटी-मोटी जरूरतों के लिए बचत राशि से आपसी लेन-देन भी करने लगे। छ: माह बाद समूह को चक्रीय राशि के रूप में 15 हजार रुपये मिले।

समूह की सचिव राधा ने पाँच हजार रुपये का ऋण लेकर किराने की दुकान खोली। समूह को 6 माह बाद 3 लाख 50 हजार रुपये आजीविका मिशन द्वारा सामुदायिक निवेश निधि के रूप में दिये गये। राधा ने इससे पुन: ऋण के रूप में 25 हजार रुपये की राशि ली और अपनी किराने की दुकान को बढ़ाया। राधा ने ऋण राशि वापिस कर पुन: 35 हजार रुपये का ऋण लेकर आटा चक्की लगाई। आज राधा की किराना दुकान और आटा चक्की से गाँव वालों को काफी सहूलियत हो गई है और राधा को 15 हजार रुपये की मासिक आय भी हो रही है। मिशन के प्रयासों से यहाँ 16 समूहो का गठन किया जा चुका है। राधा नर्मदा ग्राम संगठन में पुस्तक संचालक का काम भी कर रही है और अपने बच्चों को अमरकंटक के अच्छे स्कूल में शिक्षा दिला रही है।

गौ-पालन और ब्यूटीपार्लर से 12,000 रूपये कमा रही है भावना : धार जिले के ग्राम उमरिया निवासी भावना के पति सुरेन्द्र सिंह बिजली सुधारने और कृषि मजदूरी का काम करते हैं। इससे उन्हें हर महिने मात्र 2 से 3 हजार रुपये की ही आमदनी हो पाती है। इससे भावना को घर चलाना बहुत मुश्किल हो जाता था। एक दिन भावना को जय महालक्ष्मी आजीविका स्व-सहायता समूह की जानकारी मिली। भावना समूह से जुड़ी और अपनी छोटी-मोटी आवश्यकताओं के लिए छोटा-छोटा ऋण लिया। मिशन की सहायता से भावना ने ब्यूटीपार्लर और पति ने डेयरी का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने वर्ष 2014 में एक गाय खरीदी और प्रतिदिन 7-8 लीटर दूध बेचना शुरू किया। एक वर्ष में ही भावना ने तीन गाय और खरीद ली आज वह प्रतिदिन 20 लीटर दूध बेच रही है। भावना ने वर्ष 2015 में गाँव में ही ब्यूटीपार्लर शुरू किया।

आजीविका मिशन के सहयोग से भावना ने साँची दुग्ध संघ डेयरी भी गाँव मे शुरू की। जिससे दूध आसानी से बिक जाता है। भावना समूह से लिये गये 60 हजार रूपये और बैंक के 20 हजार रुपये के ऋण को भी आसानी से चुका रही है। समूह की मदद से भावना ने पक्का मकान बनवा लिया है। भावना कहती है पैसा बढ़ने से समाज में भी इज्जत बढ़ी है और समूह से जुड़ने के कारण सरकारी योजना का भी लाभ लेना भी आसान लगने लगा है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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