Posted on 29 Mar, 2018 7:08 pm

प्रदेश में किसान खेती-बाड़ी में अब कृषि यंत्रों का अधिक से अधिक उपयोग कर रहे हैं। किसानों को यंत्र खरीदने के लिये राज्य शासन की ओर से अनुदान राशि भी मिली है। कृषि यंत्रों के उपयोग से किसानों की आमदनी में अप्रत्याशित वृद्धि परिलक्षित होने लगी है।

दमोह जिले के ग्राम सिंग्रामपुर के किसान अयोध्या प्रसाद भूसा बनाने वाली मशीन एक्ट्रारिपर का उपयोग कर रहे हैं। इस मशीन की कीमत करीब 3 लाख रुपये है। इन्हें राज्य शासन से मशीन के लिये एक लाख रुपये का अनुदान भी मिला है। जब वे मशीन का उपयोग नहीं करते थे, तो उन्हें मवेशियों के लिये हमेशा भूसे की दिक्कत रहा करती थी। अयोध्या प्रसाद से प्रेरित होकर जिले के अन्य किसानों ने भी मशीन खरीदने के लिये किसान कल्याण विभाग के मैदानी अमले से बात की है।

जिले के ग्राम गुबरा के किसान रमेश ने गेहूँ की फसल की कटाई उन्नत मशीन से करवाई है। कटाई के बाद उन्हें पर्याप्त मात्रा में भूसा मिला है, जो मवेशियों के खाने के काम आयेगा। रमेश बताते हैं कि आज जरूरत है खेती-किसानी में आधुनिक मशीनों के उपयोग की। परम्परागत खेती करने से कृषि लागत बढ़ जाती है और किसानों को सीमित आमदनी हो पाती है।

सीहोर जिले की बुधनी तहसील के ग्राम नीनोर के किसान दिलीप कुमार अपनी 5 एकड़ सिंचित भूमि पर वर्षों से कृषि कार्य कर रहे हैं। वे अपने खेत में फसल कटाई के लिये किराये पर थ्रेशर लिया करते थे। उन्हें कई बार मशीन के लिये इंतजार करना पड़ता था। इस बात की चर्चा उन्होंने अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से की। अधिकारी ने उन्हें अनुदान पर मल्टीक्रॉप थ्रेशर की योजना की जानकारी दी। कृषक दिलीप ने मशीन खरीदने के लिये आवेदन किया, तो उन्हें थ्रेशर खरीदने के लिये 80 हजार रुपये का अनुदान भी मिला। इस वर्ष उन्होंने अपनी थ्रेशर मशीन से ही फसल की कटाई की है।

सीहोर जिले के ही नसरुल्लागंज तहसील के ग्राम बड़ोदिया के किसान जीवन सिंह के पास 12 एकड़ सिंचित भूमि है। जीवन सिंह पहले फसल की कटाई के लिये हार्वेस्टर किराये पर लेते थे। इससे उन्हें मवेशियों के लिये भूसा नहीं मिल पाता था। इसकी चर्चा उन्होंने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से की। अधिकारी ने उन्हें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अनुदान पर एक्ट्रारिपर दिलवाया। इस वर्ष उन्होंने अपनी फसल की कटाई एक्ट्रारिपर मशीन से की, तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में भूसा भी मिला है।

सक्सेस स्टोरी (दमोह, सीहोर)

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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