Posted on 19 Dec, 2016 6:39 pm

भोपाल : सोमवार, दिसम्बर 19, 2016, 18:04 IST
 

एसटीएफ द्वारा कान्हा-पेंच कॉरिडोर में बाघ और अन्य वन्य-प्राणी शिकार और उनके अवयवों का व्यापार करने के अपराध में 7 प्रकरण दर्ज कर 39 आरोपी के विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है। आरोपी में 4 तांत्रिक, 14 बिचौलिये और 21 शिकारी हैं। अभी तक की जाँच में 3 बाघ, 4 तेंदुए और 200 जंगली सुअर के शिकार के तथ्य सामने आये हैं। साथ ही 11 जिंदा सुअर बम (विस्फोटक पदार्थ) जब्त किये गये हैं। यह जानकारी आज वन्य-प्राणी सुरक्षा के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री आर.पी. सिंह ने नवम्बर-2016 में सिवनी-बालाघाट जिले में वन्य-प्राणी शिकार के संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य-प्राणी श्री जितेन्द्र अग्रवाल को सौंपे गये अपने अन्वेषण संबंधी अंतरिम प्रतिवेदन में दी।

प्रतिवेदन में बताया गया कि 21 नवम्बर को बालाघाट जिले के ग्राम सीतापठौर में शिकारियों ने बाघ का शिकार कर गड्डे में दफन किया था। डाग स्क्वाड और स्थानीय कर्मचारियों की मदद से बाघ के शव को निकालकर वैधानिक कार्यवाही की गयी। प्राथमिक जाँच में शंका के आधार पर दो व्यक्ति से पूछताछ करने पर उन्होंने बाघ को करंट से मारकर गड्डे में दफनाने की वारदात के साथ ही अन्य अपराधियों के नाम भी कबूले।

एसटीएफ टीम ने 25 नवम्बर को सिवनी-बालाघाट की सीमा पर गड्डा खोदकर एक अन्य बाघ के कंकाल को बरामद किया। वन विकास निगम और वन विभाग की संयुक्त कार्यवाही में पाये गये अपराधियों के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध किये गये। न्यायालय से रिमाण्ड मिलने पर अपराधियों ने गहन पूछताछ में सिवनी जिले के ग्राम धपारा, तुमड़ीपार, चिखली, रमपुरी, कुरई, चमरवाही, बरघाट, बीसापुर, कोसमी, भीमपाठा, डूंडा सिवनी, सीतासावंगी (महाराष्ट्र) एवं बालाघाट के सीतापठौर, टेकाड़ी, बोटेझेर्री, पोटरूटोला के अपराधी भी गिरफ्तार किये गये। आरोपियों ने सिवनी और बालाघाट जिले के विभिन्न स्थल पर बाघ और तेंदुआ का शिकार करने और उन्हें तांत्रिकों को देने की पुष्टि की।

तांत्रिकों ने इन प्राणियों के अवयवों संबंधित अनेक भ्राँतियाँ फैला रखी थीं। वे कहते थे बाघ एवं तेंदुए के मूँछ के बाल, पंजे, नाखून, दाँत एवं उनकी हड्डियों के तांत्रिक प्रयोग से व्यक्ति को अथाह पैसा, गड़ा हुआ धन, सट्टे में आमदनी आदि करवायेंगे। गिरोह ने अवयवों को विभिन्न कोडवर्ड दे रखे थे। मसलन बाघ के मूँछ के बाल को धागा, वायर, पंजे को मोटे टायर के नाम से जाना जाता था।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश