Posted on 02 Aug, 2018 5:27 pm

 

प्रदेश के किसान अब खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाने में जुट गये हैं। राज्य सरकार की ओर से निचले स्तर तक आर्थिक और तकनीकी सहायता से किसानों को इस काम में भरपूर मदद मिल रही है। परम्परागत फसलों के साथ-साथ उद्यानिकी फसल, पशुपालन जैसी गतिविधियाँ अपनाने के लिये भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रयासों के सार्थक परिणाम अब दिखाई देने लगे हैं।

दमोह जिले में बटियागढ़ के आदिवासी बहुल ग्राम सिंगपुर के किसान रेंजर सिंह लम्बे अरसे से अपने एक एकड़ सिंचित खेत में परम्परागत रूप से मक्का, चना, गेहूँ आदि की खेती करते आ रहे थे। इन फसलों से सालाना 25 से 30 हजार रुपये ही कमा पाते थे। परिवार में बढ़ती जिम्मेदारी और किसानी में सीमित आमदनी उनकी चिंता का कारण बन गई थी। उन्होंने क्षेत्रीय उद्यानिकी अधिकारियों से चर्चा की, तो उद्यानिकी फसलें लगाने की सलाह मिली।

कृषक रेंजर सिंह को उद्यानिकी विभाग से ऋण के साथ अनुदान भी मिला, तो उसने अपने खेत में मिर्च, टमाटर और बैंगन की फसल लेने का निर्णय लिया। खेत में ड्रिप एरीगेशन सिस्टम भी लगाया। इन प्रयासों के फलस्वरूप रेंजर सिंह की आमदनी उद्यानिकी फसलों के कारण बढ़कर से 70 से 75 हजार रुपये वार्षिक हो गई है। अब वह अपनी सफलता का बखान क्षेत्र के अन्य किसानों के बीच भी निरंतर करते रहते हैं। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में आदिवासी किसानों को केन्द्रीय लघु परियोजना अंतर्गत फल, मसाला बीज, गेंती-फावड़ा-तगाड़ी, स्प्रे-पम्प, साइकिल और प्लास्टिक क्रेट्स नि:शुल्क उपलब्ध करवाये जा रहे हैं।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश