Posted on 26 Sep, 2018 4:43 pm

 

प्रदेश में शहरी आजीविका मिशन जरूरतमंदों को स्व-रोजगार से जोड़कर आत्म-निर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस मिशन से जुड़कर उमारिया जिले के शेख बदरूद्दीन और अमित कुमार प्रजापति तथा बालाघाट जिले के मधुकर बांते न सिर्फ अपने परिवार को आर्थिक संबंल प्रदान कर रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल कायम कर रहे हैं।

उमारिया जिले के शेख बदरूद्दीन का जीवन राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन में आरसेटी से प्राप्त प्रशिक्षण से पूरी तरह बदल गया है। दिव्यांग शेख बदरूद्दीन पहले अपने परिवार का भरण-पोषण बिरयानी का ठेला लगा कर करते थे। इससे परिवार का पालन-पोषण करना बदरूद्दीन के लिए मुश्किल हो रहा था।

एक दिन नगर पलिका से बदरूद्दीन को शहरी आजीविका मिशन में प्रशिक्षण और ऋण सुविधा की जानकारी मिली, तो उसने बिना समय गवाँये आवेदन किया। आरसेटी के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त कर बदरूद्दीन ने बैंक से 50 हजार का ऋण लेकर चिकन स्टोर तथा किराना दुकान शुरू की। अब शेख बदरूद्दीन हर महीने लगभग 12 से 15 हजार रूपये तक कमा रहा है।

उमारिया जिले के अमित कुमार प्रजापति मिट्टी के बर्तन बनाकर गाँव-गाँव बेचा करते थे। इससे बमुश्किल 2 से 3 हजार रूपये मासिक आय ही होती थी। अमित ने आजीविका मिशन के स्व-रोजगार कार्यक्रम से जुड़कर भारतीय स्टेट बैंक से प्रशिक्षण कार्यक्रम (आरसेटी) में भाग लेकर सीमेंट के गमले बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। बैंक से 20 हजार रूपये ऋण लेकर अमित ने सीमेंट के गमलों का व्यवसाय शुरू किया। उसकी लगन और मेहनत से गमलों के आर्डर मिलने लगे। अब उसे असानी से 10 से 12 हजार रूपये मासिक आय होने लगी है।

बालाघाट जिले के मधुकर बांते आजीविका मिशन की सहायता से साइकिल रिक्शे से अब बैटरी से चलने वाले ई-रिक्शा के मालिक बन गए हैं। साइकिल रिक्शा चलाकर बड़ी मुश्किल से दो-तीन सौ रूपये कमाने वाले मधुकर ई-रिक्शा की मदद से अब हर दिन लगभग 400 से 500 रूपये तक कमाने लगे हैं। वह कहते हैं कि ई-रिक्शा से कोई शारीरिक श्रम नहीं करना पड़ता, ना ही पेट्रोल डीजल की जरूरत पड़ती है। एक बार बैटरी चार्ज करने पर ई-रिक्शा 80 किलोमीटर तक सफर तय कर लेता है।

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश​

Recent