Posted on 23 Mar, 2018 11:38 am

'मध्यप्रदेश की पुरातत्विक धरोहर'' विषयक 8 दिवसीय छायाचित्र प्रदर्शनी राज्य संग्रहालय, श्यामला हिल्स, भोपाल में आयोजित की गई है। पुरातत्व आयुक्त श्री अनुपम राजन 24 मार्च को दोपहर में प्रदर्शनी का शुभारंभ करेंगे। यह छायाचित्र प्रदर्शनी 31 मार्च तक सुबह 10.30 से शाम 5.30 बजे तक दर्शकों के लिये नि:शुल्क खुली रहेगी। प्रदर्शनी में पाषाण काल से लेकर 20वीं शताब्दी तक के महत्वपूर्ण स्मारकों के चयनित 60 छायाचित्र प्रदर्शित किये जायेंगे।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश के राष्ट्रीय स्तर के 230 स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भारत सरकार और 488 स्मारक प्रदेश के पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। इनमें भीमबैटिका शैलाश्रय, खजुराहो के मंदिर और साँची के स्तूप विश्व धरोहर में शामिल हैं। पन्द्रहवीं से 17वी शताब्दी तक कई स्थल विससित हुए हैं। इनमें ग्वालियर किले के स्मारक, ओरछा के स्मारक महत्वपूर्ण हैं।

प्रदर्शनी में उपलब्ध होंगे यह महत्वपूर्ण धरोहर भीमबैटिका के शैलाश्रय पाषाण युगीन मानव सभ्यताओ के विभिन्न चरणों का महत्वपूर्ण केन्द्र हैं। इसी क्षेत्र में नर्मदा नदी के तट पर स्थित रायसेन जिले के हथनोरा ग्राम से प्राचीनतम मानव मस्तिक का जीवाष्म प्रकाश में आया है। आदि मानव, जो प्रारंभ में नदियों के किनारे वृक्षों के नीचे या खुले में जीवन-यापन करते थे। उन्हीं लोगों ने मौसमी परिवर्तन के कारण प्राकृतिक शैलाश्रयों एवं कन्दराओं में शरण ली। यहीं प्राकृतिक शैलाश्रय आदि मानव की कलाभिरूचि को अभिव्यक्त करने वाले केन्द्र बने, जो मानव मस्तिष्क के विकास के द्योतक है। पुरातत्वीय उत्खननों में शैलाश्रय के निचले स्तरों से पुरापाषाण युगीन उपकरण (हथियार) प्राप्त हुए हैं। यह तकरीबन चार लाख से दस हजार वर्ष पहले तक के माने जाते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि तद्समय आदि मानव ने इन शैलाश्रयों को अपना निवास बनाया था।

मानव के सांस्कृतिक विकास का अगला चरण धातु युग रहा है। इसमें मानव की आजीविका कृषि कार्य पर निर्भर हो गयी थी। पाषाण काल के मानव की आजीविका पशुओं के आखेट पर निर्भर थी। इसी काल में पशुपालन और कृषि मानव आजीविका का आधार बने। इस काल के मानव ने नदियों के किनारे अपने आवास बनाये। मध्यप्रदेश की ताम्राश्म युगीन संस्कृति के लोग झोपड़ियों में निवास करते थे। इस काल की अधिकांश बस्तियां नदियों के किनारे, पहाड़ी उपत्यकाओं में जलस्त्रोत के समीप बसी थीं। मध्यप्रदेश की नर्मदा, चम्बल, क्षिप्रा, वेतबा, कालीसिंध धसान, पार्वती, सिन्ध एवं अन्य सहायक नदियों के किनारे इस काल की बस्तियों के अवशेष पुरातत्वीय सर्वेक्षण में प्रकाश में आये हैं। प्रदेश में ताम्राश्म युगीन स्थलों यथा कायथा, आवरा, दंगवाड़ा, नावड़टोली, मन्दसौर, आजाद नगर इन्दौर, नागदा, अटूटखास, ककरहेटा, त्रिपुरी, ऐरण, पिपलिया, लोरका, बेसनगर, आदि स्थलों पर पुरातत्वीय उत्खनन् कार्य हो चुके हैं। पुरातत्वविदों ने इन स्थलों को पौराणिक संस्कृति से समीकृत किया है। इसके अतिरिक्त कई पूर्व ऐतिहासिक स्थलों पर उत्खनन् कार्य कराया जा चुका है।

महाजनपद काल (ई.पू. 600) में प्रदेश के कई स्थल चरमोत्कर्ष पर थे। इनमें अवन्ती जनपद का मुख्यालय उज्जयिनी, चेदि जनपद का मुख्यालय सूक्तिमति (ऐरण), दशार्ण जनपद का मुख्यालय विदिशा, अनूप जनपद का मुख्यालय माहिष्मति एवं कारूष जनपद (अरण्य क्षेत्र), आधुनिक मनौरा एवं उचेहरा प्रमुख थे, जो ई. के पश्चात् भी क्षेत्रीय शक्तियों के उद्भव के केन्द बने।

प्रदेश का अधिकांश भू-भाग मौर्यकाल से पूर्व ही मगध साम्राज्य का अंग बन चुका था। मौर्यकाल के अभिलेख रूपनाथ (जबलपुर), सांची (रायसेन), गुजर्रा (दतिया), पानगुराडिया (सीहोर) से प्रकाश में आये हैं। मौर्यकाल के स्तूप प्रदेश के कई स्थलों से प्रकाश में आये हैं। इनमें सांची, सतधारा, सोनारी, उज्जैन, गुढ़ (रीवा), कसरावद (खरगौन) आदि शामिल हैं। इनमें सांची के स्तूप विश्व धरोहर में शामिल है।

मध्यप्रदेश के क्षेत्र पर कलचुरि, प्रतिहार, राष्ट्रकूट, परमार, कच्छपघात, चन्देल वंश के शासकों ने पूर्व मध्यकाल में (ई.800 से 1300 वर्ष) शासन किया। इन राजवंशों के संरक्षण में अनेक मंदिरो का निर्माण करवाया गया। इसी काल में अधिक युद्धों के कारण दुर्गों के निर्माण हुए। इनमें माण्डव, ग्वालियर, असीरगढ़, अजयगढ़, ओंकार मानधाता, बांधवगढ़, हिंगलाजगढ़, धार दुर्ग, नरवर, गढ़ कुण्डार आदि अस्तित्व में आये। 14वी शताब्दी से 19वी शताब्दी तक प्रदेश में कई किले, गढ़ी, महल, कोठी, छत्री, मकबरा, मस्जिद, बावड़ी आदि निर्मित किये गये।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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