Posted on 26 Sep, 2020 6:03 pm

मध्यप्रदेश भारत का सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाला राज्य है। प्रदेश की कुल आबादी में से करीब 21 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। इस प्रकार देखा जाये, तो प्रदेश में हर पाँचवा व्यक्ति आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। आदिवासी समुदाय लम्बे समय से वन भूमि में निवास कर खेती एवं उससे जुड़े रोजगार के व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। राज्य के आदिवासी समुदाय को समाज एवं विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये राज्य सरकार द्वारा संवेदनशील रूख अपना कर उनके उत्थान के लिये ऐसे कदम उठाये गये है, जिससे उनके आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास का मार्ग प्रशस्त हो रहा है।

प्रदेश के 89 आदिवासी बाहुल्य विकासखंडों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये यूं तो राज्य सरकार ने अनेक जन-कल्याणकारी योजनाएँ संचालित की हुई हैं, जिनका सफल क्रियान्वयन कर आदिवासी भाइयों को लाभान्वित किया जा रहा है। वनों में लम्बे समय से रहने वाले वनवासियों की सबसे बड़ी समस्या उनके आवास स्थल और खेती-बाड़ी की जमीन की रही है। प्रदेश में रहने वाले वनवासियों में एक बड़ा हिस्सा आदिवासी समाज का वन क्षेत्रों में पारम्परिक रूप से रहता आया है। आदिवासी परिवारों को हमेशा से यह डर सताता रहा है कि जिस भूमि पर वे वर्षों से काबिज रहे है, उस भूमि पर उनका मालिकाना हक न होने से वे कभी भी बेदखल किये जा सकते हैं। वन क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे आदिवासी समाज के लोगों के लिये प्रदेश सरकार ने नई पहल करते हुए उनके जीवन में रोशनी की उम्मीद जगाई है, जो उनकी आगे आने वाली पीढ़ी को भी प्रकाशमान करती रहेगी।

मध्यप्रदेश में चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही श्री शिवराज सिंह चौहान ने गरीब एवं बेसहारा लोगों की प्राथमिकता के साथ सुध ली। चाहे मजदूर हो, काम-काज करने वाला वर्ग, पिछड़ी जन-जाति की महिलाएँ प्रवासी मजदूर, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र की महिलाओं और गरीब तबके को हर संभव मदद उपलब्ध करवाई गई है। इसी कड़ी में मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के 23 हजार लोगों को वनाधिकार पट्टा देकर उनके जीवन को एक नई दिशा दी है। मध्यप्रदेश में वनाधिकार उत्सव आयोजित कर ऐसे आदिवासी भाई-बहनों की चिंताओं का स्थाई समाधान किया गया है, जो वर्षों से उनको सता रही थीं। प्रदेश में तय समय-सीमा में अभियान चलाकर किये गये सर्वे में पात्र ऐसे वनवासियों को उनके कब्जे वाली भूमि का मालिकाना हक सौंपा गया, जहाँ वे वर्षों से रह रहे थे।

प्रदेश में 19 सितम्बर का दिन वन अधिकार उत्सव के रूप में मनाया गया। इस दिन वन क्षेत्रों में रहने वाले हर आदिवासी परिवार के लिये मानों आजादी का दिन था। जिस भूमि पर वे पीढ़ी दर पीढ़ी निवास करते आये हों, आज उस काबिज भूमि का मालिकाना हक उन्हें प्रदान किया गया। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि उन्होंने बचपन से ही आदिवासी भाई-बहनों की पीड़ा और उनके संघर्ष को देखा है। उनकी स्थिति में सुधार और उनका मान-सम्मान कायम रखने का संकल्प मन में रहा है। साथ ही यह भी कोशिश की गई है कि आदिवासी भाई-बहनों को जीवन जीने का बराबर से अधिकार हो। वन अधिकार उत्सव में प्रदेश के 23 हजार वनवासियों को वनाधिकार पट्‌टों का वितरण किया गया।

वन अधिकार अधिनियम के प्रावधान के अनुसार अनुसूचित-जनजाति वर्ग के 13 दिसम्बर, 2005 की स्थिति में वन भूमि पर काबिज दावेदार को व्यक्तिगत वन अधिकार-पत्र दिये जा रहे हैं। अन्य परम्परागत वर्ग (अनुसूचित-जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं सामान्य वर्ग) को भी व्यक्तिगत वन अधिकार-पत्र दिये जा रहे हैं। यह वन अधिकार-पत्र उन वनवासियों को दिये जा रहे हैं, जो तीन पीढ़ी अर्थात 75 वर्ष से वन क्षेत्र में निवासरत हैं। अधिनियम के प्रावधानों के तहत वन भूमि के परम्परागत रूप से सामुदायिक उपयोग के अधिकार-पत्र ग्राम-सभाओं को दिये जा रहे हैं। यह अधिकार-पत्र परम्परागत रूप से सामुदायिक उपयोग में चरनोई, रास्ते, मछली-पालन, शमशान भूमि, धार्मिक पूजा-स्थल, जलाशयों में पानी के उपयोग आदि के हैं। प्रदेश में 31 मार्च, 2020 तक 2 लाख 68 हजार 367 दावे मान्य किये जा चुके हैं। इनमें से 2 लाख 57 हजार 864 वन अधिकार-पत्रों का वितरण भी विभाग द्वारा किया जा चुका है। इनमें 2 लाख 29 हजार 893 व्यक्तिगत और 27 हजार 971 सामुदायिक अधिकार-पत्र हैं।

राज्य सरकार ने वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी परिवारों के हित में यह भी फैसला लिया कि साक्ष्य के अभाव में निरस्त दावों का पुन: परीक्षण किया जाये। इसके लिये आदिम-जाति कल्याण विभाग द्वारा एम.पी. वन मित्र पोर्टल तैयार किया गया। वन मित्र पोर्टल के माध्यम से तीनों स्तर ग्राम, उपखण्ड एवं जिला-स्तर पर गठित समितियों के काम को ऑनलाइन किया गया है। ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से प्रत्येक स्तर पर दावों के निराकरण में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की गई है। एम.पी. वन मित्र पोर्टल के माध्यम से 3 लाख 60 हजार निरस्त दावों और 20 हजार 830 ग्राम पंचायतों की प्रोफाइल अपडेट की जा चुकी है। इसके साथ ही 36 हजार 722 ग्राम वन अधिकार समितियों को पोर्टल में दर्ज किया जा चुका है।

प्रदेश में वनवासियों को व्यक्तिगत अधिकार-पत्र दिये गये हैं। उन्हें राज्य सरकार की विभिन्न जन-कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया जा रहा है। प्रदेश में 54 हजार 965 कपिलधारा कूप, 57 हजार 721 भूमि-सुधार, 24 हजार 366 डीजल-विद्युत सिंचाई पम्प और करीब 61 हजार आवास पट्टाधारी वनवासियों को मंजूर किये गये हैं।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश