Posted on 18 Dec, 2019 7:18 pm

कुपोषण आज के दौर की वैश्विक समस्या बन गयी है, जिससेे किसी न किसी रूप से प्रत्येक देश प्रभावित है। कुपोषण को दूर करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी स्वास्थगत चुनौतियों में से एक है। जागरूकता, जानकारी के अभाव और उपेक्षा से इसने अधिक व्यापक स्वरूप ले लिया है। कुपोषण से महिलाएं और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित पाए गए हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार वर्तमान में छत्तीसगढ़ में भी पांच वर्ष से कम आयु के 37.60 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 15 से 49 वर्ष की 41.5 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीडि़त हैं। जनजातीय आबादी वाले इलाकों में कुपोषण से प्रभावित आबादी का प्रतिशत अधिक है। ये आंकड़े न सिर्फ प्रभावित व्यक्ति के परिवारों के लिए बल्कि प्रदेश के आर्थिक, समाजिक विकास के लिए भी चिंताजनक हैं। 

    कुपोषण वास्तविक अर्थों में शरीर में आवश्यक पोषक पदार्थों का असंतुलन है। इससे प्रभावित व्यक्ति गंभीर बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। इससे शारीरिक और बौद्धिक विकास भी रूक सकता है। कहा गया है स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क का निर्माण होता है। शरीर ही स्वस्थ न हो तो यह हमारी भावी पीढ़ी के विकास के रास्ते में एक बड़ी रूकावट बन सकता है। कुपोषण के इस दुष्प्रभाव की व्यापकता को गंभीरता से लेते हुए छत्तीसगढ़ के मुखिया श्री भूपेश बघेल ने कुपोषण मुक्ति को एक महाअभियान के रूप में शुरू करने का निर्णय लिया। इसके परिणाम स्वरूप 2 अक्टूबर 2019 को विधानसभा परिसर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कीे 150वीं जयंती के अवसर पर प्रदेशव्यापी ‘मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान‘ का शुभारंभ किया गया। अभियान के शुरू होने के कुछ दिनों में हीे सुखद परिणाम सामने आने लगे हैं। यह हमारी वर्तमान और आने वाली पीढि़यों के लिए मुख्यमंत्री का संवेदनशील और सार्थक कदम है। 

      बस्तर सहित वनांचल के कुछ ग्राम पंचायतों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में सुपोषण अभियान की शुरूआत की गई थी। धमतरी जिले में लइका जतन ठउर और दंतेवाड़ा में कुछ पंचायतों के माध्यम से गर्म पौष्टिक भोजन देने जैसे नवाचार कार्यक्रमों के जरिए इसे आगे बढ़ाया गया। इसकी सफलता को देखते हुए इस अभियान को पूरे प्रदेश में लागू किया गया है। प्रदेश को आगामी 3 वर्षों में कुपोषण से मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। अब प्रदेश के 5 वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं सहित 15 से 49 आयु वर्ग की महिलाओं को कुपोषण और एनीमिया से मुक्ति कराने के लिए समन्वित प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए अभियान का क्रियान्वयन, अनुश्रवण, मूल्यांकन और अभिलेख संधारण जिला प्रशासन स्तर पर किया जा रहा है। जिला स्तर पर कलेक्टर, विकासखण्ड स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) और ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच की अध्यक्षता में अनुश्रवण एवं मूल्यांकन समिति का गठन करने का निर्णय लिया गया है। कुपोषण को दूर करने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य विभागों का सहयोग लिया जा रहा है। 
    कुपोषण की तह में जायें तो इसके लिए गरीबी, अशिक्षा, पौष्टिक भोजन की कमी, अज्ञानता, स्वच्छता की कमी, कम उम्र में विवाह और गर्भधारण, लिंग भेद जैसे कई कारण जिम्मेदार हैं। विभिन्न विश्लेषणों में पाया गया है कि माताओं और शिशुओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण समुचित पोषण आहार का न मिल पाना है। पौष्टिकता की कमी को दूर करने के लिए वजन त्यौहार में लिये गये आंकड़ों के आधार पर 5 वर्ष तक के बच्चों का चिन्हांकन कर लिया गया है, इनकी संख्या लगभग 4 लाख 93 हजार है। चिन्हांकित बच्चों को आंगनवाड़ी केन्द्र में दिए जाने वाले पूरक पोषण आहार के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर उपलब्ध और आवश्यकतानुसार पौष्टिक आहार निःशुल्क प्रदान किया जा रहा है। कुपोषित महिलाओं और बच्चों को गर्म पौष्टिक भोजन भी दिया जा रहा है। प्रभावितों को आयरन पोलिक एसिड, कृमिनाशक गोली दी जा रही है। अभियान के तहत कुपोषण प्रभावित बच्चों और महिलाओं को निःशुल्क काउंसलिंग और परामर्श सेंवाएं देने के साथ नियमित मॉनिटरिंग भी की जा रही है। सुपोषण रथ, शिविरों और परिचर्चा के माध्यम से जनजागरूकता के प्रयास भी हो रहे हैं। 
    
    इसके अतिरिक्त प्रदेश में कुपोषण दूर करने के लिए पूरक पोषण आहार, महतारी जतन योजना, मुख्यमंत्री अमृत योजना, किशोरी बालिका योजना, पोषण अभियान, मुख्यमंत्री बाल संदर्भ योजना और प्रधानमंत्री मातृ वन्दना योजना जैसी कई अन्य योजनाएं भी संचालित की जा रही हैं। इन योजनाओं के तहत प्रदेश के 50 हजार से अधिक आंगनबाडि़यो और मिनी आंगनबाडि़यों में शिशुओं, बच्चों को और गर्भवती महिलाओं और शिशुवती माताओं के लिए पूरक पोषण आहार और रेडी टू ईट की व्यवस्था की गई है। 
    मुख्यमंत्री वार्ड क्लीनिक योजना और स्वास्थ शिविरों के माध्यम से भी एनीमिया ग्रस्त महिलाओं और बच्चों का चिन्हांकन किया जा रहा है। एनीमिया पीडि़त बच्चों और महिलाओं की वास्तविक संख्या की जानकारी के लिए गांवों में ग्राम पंचायतों और शहरों के वार्डों में शिविर भी लगाने की योजना है। ग्रामवार और नामवार चिन्हांकन की प्रक्रिया जैसे-जैसे पूरी होती जाएगी, चिन्हांकित हितग्राहियों को चरणबद्ध रूप से अभियान में शामिल कर लाभान्वित किया जाएगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित महिला एवं बाल विकस मंत्री ने जनप्रतिनिधियों, नागरिकों सहित विभिन्न संस्थानों और संगठनों से भी कुपोषण मुक्ति के अभियान से जुड़ने की अपील की है। सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद प्रदेश को कुपोषण के दुश्चक्र से बाहर लाने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को सक्रिय भागीदारी निभानी होगी तभी हम स्वस्थ्य छत्तीसगढ़ के लक्ष्य को पाने में सफल होंगे। 

साभार – जनसम्पर्क विभाग छत्तीसगढ़