Posted on 03 Oct, 2024 8:15 pm

प्रदेश में 97 हजार से अधिक आँगनवाड़ी, 73 लाख से अधिक हितग्राहियों को पोषण से संबंधित कई योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ लगातार दे रही हैं। ये सेवाएँ राष्ट्रीय खाद्य एवं सुरक्षा अधिनियम-2013 के तहत सतत बिना किसी व्यवधान के दी जा रही हैं। आँगनवाड़ी केन्द्रों में 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों को निर्धारित मात्रा में 12 से 15 ग्राम प्रोटीन और 500 कैलोरी, गंभीर कुपोषित बच्चों को 20 से 25 ग्राम प्रोटीन, 800 कैलोरी, गर्भवती धात्री माता को 18 से 20 ग्राम प्रोटीन और 600 कैलोरी तथा 14 से 18 आयु वर्ग की किशोरी बालिकाओं को 18 से 20 ग्राम प्रोटीन और 600 कैलोरी प्रदाय किया जाता है।

पोषण ट्रेकर एप

बेहतर पोषण को जाँचने के लिये हर माह 6 वर्ष तक के बच्चों के पोषण स्तर की जाँच की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया के सुचारु क्रियान्वयन के लिये भारत सरकार ने पोषण ट्रेकर एप तैयार किया है। मध्यप्रदेश की 97 हजार से अधिक आँगनवाड़ी कार्यकर्ता केन्द्र में दर्ज हितग्राही और प्रतिदिन पोषण सेवाएँ लेने वाले हितग्राहियों की रियल टाइम मॉनीटरिंग पोषण ट्रेकर एप से कर रही हैं। पोषण ट्रेकर एप आँगनवाड़ी केन्द्रों में बच्चों/हितग्राहियों की उपस्थिति को रियल टाइम मॉनीटरिंग से दर्ज कराता है, जिससे पूरक पोषण आहार की माँग भी सुनिश्चित रहती है। माँग के आधार पर खाद्यान्न की मात्रा की उपलब्धता भी अंकित हो जाती है। पोषण ट्रेकर एप बहुत बड़े रोबस्ट आँकड़ों को सटीक और प्रभावी तरीके से आंकलित कर उपयोगी बना देता है।

ग्रामीण क्षेत्र की बाल परियोजनाओं में 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को सांझा चूल्हा के माध्यम से सुबह का नाश्ता तथा दोपहर का भोजन पृथक-पृथक मेनू के अनुसार पूरक पोषण आहार के रूप में दिया जाता है। शहरी क्षेत्रों में संचालित सभी आँगनवाड़ी केन्द्रों/उप आँगनवाड़ी केन्द्रों के 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को ताजे पके हुए पूरक पोषण आहार की व्यवस्था राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन, राज्य शहरी आजीविका मिशन में पंजीकृत महिला स्व-सहायता समूह एवं तेजस्विनी महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से की जाती है।

1000 दिन-गोल्डन डेज़

जीवन के प्रथम एक हजार दिनों को गोल्डन डेज़/विण्डो ऑफ आपर्चुनिटीज़ कहा जाता है। यह 9 माह की गर्भावस्था और 2 वर्ष तक के शिशु की अवस्था को कहा जाता है। गर्भावस्था में शिशु अपना विकास शुरू कर लेता है, जो प्रथम 2 वर्षों में तेजी से होता है। इस दौरान विकास सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक भी होता है। यही कारण है कि इस दौरान पोषण का महत्व बहुत बढ़ जाता है। सही पोषण इस विकास में तेजी लाता है, लेकिन पोषण में कमी न सिर्फ विकास में कमी ला सकती है, बल्कि बच्चे के विकसित हो रहे अंगों, बुद्धिमत्ता, शक्ति आदि को भी बाधित कर सकती है। इसमें महिला-बाल विकास विभाग द्वारा अहम भूमिका निभाते हुए पोषण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। प्रदेश में चलाया जा रहा पोषण कार्यक्रम वैज्ञानिक तरीके से क्रियान्वित है। शोध अनुसार भारतीय परिवेश में सुपोषण के लिये प्रोटीन और कैलोरी को भोजन के पूरक के रूप में दिये जाने की आवश्यकता को महत्वपूर्ण माना गया है। इसके लिये मध्यप्रदेश के स्थानीय खाद्य पदार्थों से निर्मित टेक होम राशन और ताजा पका भोजन आँगनवाड़ी केन्द्रों में प्रदाय किया जाता है। पूरक पोषण आहार प्रदाय को पूरी जागरूकता से चलाया जाता है और इससे मिलने वाले प्रोटीन और कैलोरी की मात्रा की जाँच भी विभिन्न परीक्षण-शाला से की जाती है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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