Posted on 20 Oct, 2017 6:47 pm

 

ग्राम लोही जिला रीवा में आजीविका केन्द्र में 7 स्व-सहायता समूहों द्वारा हाथकरघा के माध्यम से कपड़ा निर्माण किया जा रहा है। इन स्व-सहायता समूहों से अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की 35 महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं ने अब तक 270 मीटर कपड़ा बुना है। समूह की प्रत्येक महिला को औसत रूप से 4500 रुपये की प्रति माह आमदनी हो रही है।

ग्राम लोही और मऊगंज के ढेरा में 21 स्व-सहायता समूहों की महिलाएँ टेडीबियर बना रही हैं। प्रत्येक महिला को 3 से 4 टेडीबियर बनाने पर औसत रूप से 200 रुपये तक की प्रतिदिन आमदनी हो रही है। इन स्व-सहायता समूहों से 90 ग्रामीण महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। ग्राम लोही मे 2 स्व-सहायता समूह की 10 महिलाएँ प्रति माह करीब 4 हजार साबुन बनाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं। रीवा जिले के जोरी और खीरा ग्राम की 180 महिलाएँ अगरबत्ती निर्माण कार्य में संलग्न हैं। इस समूह की महिलाएँ प्रति मशीन प्रति दिन एक क्विंटल तक अगरबत्ती बना रही हैं। इनके द्वारा तैयार अगरबत्ती को अक्षर अगरबत्ती के नाम से जाना जाता है। अक्षर ब्राण्ड की अगरबत्ती की रीवा के बाजार में अपनी विशिष्ट पहचान बन गई है।

ग्राम भानपुर और खाम्हा की स्व-सहायता समूह की महिलाएँ गोबर से गमले का निर्माण कर रही हैं। गमला निर्माण कार्य में 9 स्व-सहायता समूह की 45 महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। यह महिलाएँ 25 मशीनों से प्रति माह एक लाख से अधिक गमले तैयार कर रही हैं। उद्यानिकी और वन विभाग ने इन महिलाओं के स्व-सहायता समूह को 5 लाख गमलों को तैयार करने का आर्डर दिया है। स्व-सहायता समूह से जुड़ी ये महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर तो हुई हैं, साथ ही इनके परिवार की माली हालत भी अच्छी हो गई है। इनके परिवारों की गाँव में प्रतिष्ठा भी बढ़ी है। रीवा जिले में ग्रामीण महिलाओं को इतना कारगर रोजगार उपलब्ध कराने का सशक्त माध्यम है अन्त्योदय ग्रामीण आजीविका मिशन।

सफलता की कहानी (रीवा)

 

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश

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