Posted on 15 Nov, 2021 1:31 pm

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने आज स्मार्ट उद्यान में गुलमोहर और पीपल का पौधा रोपा। मुख्यमंत्री श्री चौहान के साथ भील कलाकार पद्मश्री सुश्री भूरी बाई ने भी पौध-रोपण किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान अपने संकल्प के क्रम में प्रतिदिन एक पौधा लगाते हैं।

गुलमोहर को विश्व के सुंदरतम वृक्षों में से एक माना गया है। गुलमोहर की सुव्यवस्थित पत्तियों के बीच बड़े-बड़े गुच्छों में खिले फूल इस वृक्ष को अलग ही आकर्षण प्रदान करते हैं। गर्मी के दिनों में गुलमोहर के पेड़, पत्तियों की जगह फूलों से लदे हुए रहते हैं। यह औषधीय गुणों से भी समृद्ध है। पीपल एक छायादार वृक्ष है। पर्यावरण शुद्ध करता है। इसका धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्रकृति विज्ञान के अनुसार पीपल का वृक्ष दिन-रात ऑक्सीजन छोड़ता है जो हमारे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा पीपल के पेड़ को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है क्योंकि यह पेड़ कभी भी पत्ते विहीन नहीं होता। पत्ते झड़ते रहते हैं और नए आते रहते हैं। पीपल के वृक्ष की इस खूबी के कारण इसे जीवन-मृत्यु चक्र का द्योतक बताया गया है।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2021 में पद्मश्री से सम्मानित सुश्री भूरी बाई मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गाँव में जन्मी भारत के सबसे बड़े आदिवासी समूह भीलों के समुदाय से हैं। पद्मश्री सुश्री भूरी बाई ने अपनी चित्रकारी का सफर एक समकालीन भील कलाकार के रूप में प्रारंभ किया। सुश्री भूरी बाई कागज एवं कैनवास का इस्तेमाल करने वाली पहली भील कलाकार है। भारत भवन के तत्कालीन निदेशक श्री जे. स्वामीनाथन ने उन्हें कागज पर चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया। जंगल में जानवर, वृक्षों की शांति तथा गाटला (स्मारक स्तंभ), भील देवी-देवता, पोशाक, गहने, टेटू, झोपड़ियाँ, अन्नागार, हाट उत्सव आदि के साथ नृत्य और मौखिक कथाओं सहित भील जीवन के प्रत्येक पहलू को अपनी कला में समाहित किया है। हाल ही में वृक्षों और जानवरों के साथ हवाई जहाज, टेलीविजन, कार तथा बसों के चित्र भी बनाना शुरू किए हैं। भूरी बाई की चित्रकारी देश में ही नहीं विदेशों में भी सराही जाती है।

पद्मश्री भूरी बाई आदिवासी लोक कला अकादमी भोपाल में एक कलाकार के तौर पर कार्य करती हैं। उन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने वर्ष 1986-87 में "शिखर सम्मान" से नवाजा है। वर्ष 1998 में प्रदेश सरकार ने इन्हें "देवी अहिल्या सम्मान" से भी विभूषित किया है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश