Posted on 18 Sep, 2021 3:15 pm

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 1857 के अमर बलिदानी राजा शंकर शाह तथा रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर उन्हें नमन किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने निवास स्थित सभागार में उनके चित्र पर माल्यार्पण किया।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने अमर बलिदानियों के बलिदान को स्मरण करते हुए मीडिया को स्मार्ट सिटी पार्क में दिए संदेश में कहा कि आज राजा शंकर शाह तथा रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस है। भारत माता के पैरों से परतंत्रता की बेड़ियां काटने के लिए उन्होंने अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया था। कुछ लोगों की गद्दारी के कारण समय से पहले क्रांति की योजना का खुलासा हो गया था। बाद में वह गिरफ्तार किए गए और तोपों के मुँह से बांधकर उनको उड़ा दिया गया। लेकिन उससे पहले उनसे पूछा गया कि आपकी अंतिम इच्छा क्या है। उन्होंने क्रांति की वह कविता जो चारों तरफ क्रांति की ज्वालाये धधका रही थी, उसको फिर से पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने मुस्कुराते हुए कविता पढ़तेपढ़ते अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। हम आजादी का 75वां वर्ष मना रहे है। आज राजा शंकरशाह तथा रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर जबलपुर में कार्यक्रम आयोजित है। कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह पधार रहे हैं।

यह थी कविता

मूंद मुख डंडिन को, चुगली को चबाई खाई।
खूंद डार दुष्टन को, शत्रु संहारिका।
मार अंगरेज, रेज कर देई मात चंडी
बचै नाहिं बैरी- बाल-बच्चे संहारिका॥

 

संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर,
दीन की पुकार सुन आय मात कालका।
खाइले मलेछन को, देर नाहीं करौ मात
,भच्छन कर तच्छन भौर मात कालिका।।

संक्षिप्त जानकारी

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में जबलपुर नगर का भाग हो चुके पुवा ग्राम में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का निवास था। यहीं रहकर उन्होंने गुप्त रूप से 1857 महासंग्राम में सैनिकों को क्रांति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। जबलपुर की 52वीं रेजीमेंट के सिपाही इस सिलसिले में अक्सर राजा शंकर शाह के घर जाया करते थे। अपने क्रांतिकारी साथियों और 52वीं रेजीमेंट के सैनिकों के साथ मिलकर पिता-पुत्र ने क्रांति की योजना बनाई। लेकिन गद्दार ने यह सूचना अंग्रेजों तक पहुँचा दी। गुप्तचर से सूचना मिलते ही 14 सितम्बर 1857 को राजा और उनके पुत्र व अनुयायियों सहित 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया। राजा के घर की तलाशी ली गयी। इसमें क्रांति संगठन के दस्तावेजों के साथ राजा शंकरशाह द्वारा लिखित एक कविता मिली। दोनों क्रांतिवीर पिता-पुत्र को बंदी बनाकर सैनिक जेल में रखा गया। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह की गिरफ्तारी से सैनिकों और जनता में आक्रोश बढ़ गया। तुरंत डिप्टी कमिश्नर और दो अंग्रेज अधिकारियों की एक औपचारिक सैनिक अदालत बैठाई गई। अदालत में न्याय का नाटक चला और देशद्रोही कविता लिखने के जुर्म में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह को मृत्यु-दण्ड देने का फैसला दिया गया। 18 सितम्बर 1857 को जबलपुर में फाँसी परेड हुई। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह को जेल से लाया गया और तोप के मुँह से बांध दिया गया। तोप चलते ही दोनों के अंग क्षत-विक्षत होकर चारों ओर बिखर गए। अंग्रेज, राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह को तोप से उड़ा क्रांति की आग बुझाना चाहते थे। लेकिन वह आग बुझी नहीं बल्कि दावानल बन गई।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश