Posted on 08 Apr, 2022 9:56 pm

स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र से संबंधित स्वास्थ्य, महिला-बाल विकास, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति आदि विभाग एक साथ मिलकर काम करें, तो बेहतर परिणाम मिलेंगे। यह बात आज कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में स्वयंसेवी संस्थाओं के सम्मेलन में स्वास्थ्य एवं पोषण पर आधारित सत्र के दौरान सामने आई। स्वयंसेवी संगठनों ने कहा कि मध्यप्रदेश में मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी आने के बावजूद सुधार की आवश्यकता है। सभी विभागों से अगर वे संयुक्त रूप से सम्पर्क में रहते हैं, तो बेहतर कार्य होंगे। यह बात स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान द्वारा मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने के उद्देश्य से कही।

सत्र की अध्यक्षता फैकल्टी ऑफ कम्युनिटी हेल्थ साइंसेस, यूनिवर्सिटी ऑफ मैनीटोबा कनाडा डॉ. बी.एम. रमेश और सह अध्यक्षता आयुक्त चिकित्सा शिक्षा श्री निशांत वरवड़े ने की। कार्यक्रम की मार्डरेटर प्रमुख सलाहकार राज्य स्वास्थ्य संसाधन केन्द्र सुश्री प्रीति उपाध्याय थीं। विशिष्ट पेनेलिस्ट में भोपाल के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि सुश्री भावना नागर, एकजुट संस्था, श्रीमती मानसी शेखर, न्यूट्रेशन इंटरनेशनल डॉ. अनंत भान, संगत संस्था और एम्स के डॉ. अरुण कोकने, पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. उमेश शुक्ला, पीएचएफआई नई दिल्ली की डॉ. सुपर्णा घोष, मानव फाउण्डेशन श्योपुर के श्री प्रमोद तिवारी और जन-सहयोग स्वास्थ्य डिण्डोरी के श्री राहुल परुआ शामिल थे। इनके अलावा खुली चर्चा में स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया।

श्रीमती मानसी शेखर ने कहा कि प्रदेश में न्यूट्रीशन गवर्नेंस होनी चाहिये, जिससे शासन और एनजीओ एक रणनीति बनाकर सही दिशा में काम करें। श्रीमती भावना नागर ने कहा कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है कि वे भावी माताओं का गर्भावस्था के प्रारंभिक हफ्ते से ही पंजीयन करायें, जिससे माता और शिशु दोनों स्वस्थ रहें। अक्सर देखने में आता है कि शुरूआती महीनों में गर्भावस्था की बात छिपाई जाती है। मानसिक स्वास्थ्य में काम करने वाले श्री अजय भान ने कहा कि परियोजना के संबंध में सरकारी स्तर पर देरी नहीं हो, इसके लिये एक फेसीलिटेशन सेल बनाना चाहिये, जिसमें सभी विभागों से संबंधित कार्य एक ही छत के नीचे हो जायें। ट्रांसजेंडर पर किये हुए काम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि समुदाय विशेष को भी डाटा संग्रहण आदि कार्यों में शामिल किया जाना चाहिये। इससे उस समुदाय विशेष की स्वास्थ्य जरूरतों की तह तक पहुँचा जाकर काम किया जा सकेगा। सुश्री सुपर्णा घोष ने कहा कि लोगों में न्यूट्रीशियन की समझ विकसित करने की जरूरत है।

डॉ. कोकने ने कहा कि मध्यप्रदेश की सीमा विभिन्न राज्यों से जुड़ी हैं, इसलिये उनके अलग-अलग न्यूट्रीशियन कल्चर को देखते हुए पोषण रणनीति हो। उन्होंने एनजीओज से कहा कि वे शासकीय योजनाओं का लोगों को लाभ दिलाने में मदद करें। लोगों को पोषण शिक्षा देने की भी जरूरत है। डॉ. उमेश शुक्ला ने कहा कि एक बार बच्चा कुपोषण से मुक्त हो जाये, तो स्वयंसेवी संगठन का प्रयास होना चाहिये कि वह दोबारा कुपोषित न हो। उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पुराने आयुर्वेद में कुपोषित और ओवर न्यूट्रीशियन व्यक्ति, सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिये मौसम के अनुसार खान-पान की सलाह है। राजगढ़ जिले की स्व-सहायता समूह की श्रीमती ज्योति पाण्डे ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि किस तरह से तीन दिन की ट्रेनिंग के बाद जब उन्होंने गाँव वालों को पोषाहार और शिशु के प्रथम सर्वाधिक महत्वपूर्ण एक हजार दिन के बारे में बताया, तो लोगों ने उसे अपनाना शुरू किया। स्वयंसेवी संगठनों ने कहा कि स्वास्थ्य के साथ पोषण आहार के प्रति जागरूकता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। गर्भवती महिला, धात्री माता, किशोरी को केन्द्र में रखते हुए रणनीति तैयार किये जाने की आवश्यकता है।

साभार – जनसम्पर्क विभाग मध्यप्रदेश