भत्ते में परिवर्तन (Alteration in allowance)
Updated: Jul, 06 2019
127. भत्ते में परिवर्तन -- (1) धारा 125 के अधीन भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ता पाने वाले या यथास्थिति, अपनी पत्नी, संतान, पिता या माता को भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ता देने के लिए उसी धारा के अधीन आदिष्ट किसी व्यक्ति की परिस्थितियों में तब्दीली साबित हो जाने पर, मजिस्ट्रेट यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए भत्ते में ऐसा परिवर्तन कर सकता है, जो वह ठीक समझे ।
(2) जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि धारा 125 के अधीन दिया गया कोई आदेश किसी सक्षम सिविल न्यायालय के किसी विनिश्चय के परिणामस्वरूप रद्द या परिवर्तित किया जाना चाहिए वहाँ वह, यथास्थिति, उस आदेश को तद्नुसार रद्द कर देगा या परिवर्तित कर देगा।
(3) जहाँ धारा 125 के अधीन कोई आदेश ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया गया है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद प्राप्त कर लिया है वहाँ यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि :
(क) उस स्त्री ने ऐसे विवाह-विच्छेद की तारीख के पश्चात् पुनः विवाह कर लिया है, तो वह ऐसे आदेश को उसके पुनर्विवाह की तारीख से रद्द कर देगा;
(ख) उस स्त्री के पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है और उस स्त्री ने उक्त आदेश के पूर्व या पश्चात् वह पूरी धनराशि प्राप्त कर ली है जो पक्षकारों को लागू किसी रूढ़िजन्य या स्वीय विधि के अधीन ऐसे विवाह-विच्छेद पर देय थी तो वह ऐसे आदेश को :
(i) उस दशा में जिसमें ऐसी धनराशि ऐसे आदेश से पूर्व दे दी गई थी उस आदेश के दिए जाने की तारीख से रद्द कर देगा;
(ii) किसी अन्य दशा में उस अवधि की, यदि कोई हो, जिसके लिए पति द्वारा उस स्त्री को वास्तव में भरणपोषण दिया गया है, समाप्ति की तारीख से रद्द कर देगा;
(ग) उस स्त्री ने अपने पति से विवाह-विच्छेद प्राप्त कर लिया है और उसने अपने विवाह-विच्छेद के पश्चात् अपने यथास्थिति भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के अधिकारों का स्वेच्छा से अभ्यर्पण कर दिया था, तो वह आदेश को उसकी तारीख से रद्द कर देगा।
(4) किसी भरणपोषण या दहेज की, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे धारा 125 के अधीन भरण पोषण और अन्तरिम भरणपोषण या उनमें से किसी के लिए कोई मासिक भत्ता संदाय किए जाने का आदेश दिया गया है वसूली के लिए डिक्री करने के समय सिविल न्यायालय उस राशि की भी गणना करेगा जो ऐसे आदेश के अनुसरण में यथास्थिति भरण पोषण या अंतरिम भरणपोषण या इनमें से किसी के लिए मासिक भत्ते के रूप में उस व्यक्ति को संदाय की जा चुकी है या उस व्यक्ति द्वारा वसूल की जा चुकी है।
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राज्य संशोधन
मध्यप्रदेश --
मूल अधिनियम की धारा 127 की उपधारा (1) में शब्द “पिता या माता” के स्थान पर शब्द “पिता, माता, पिता अथवा माता के माता-पिता” स्थापित किए जाएं।
[देखें दण्ड प्रक्रिया संहिता (मध्यप्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2004 (क्रमांक 15 सन् 2004), म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 6 दिसम्बर, 2004 पेज 1047-1048 (2) पर प्रकाशित ।)]
राजस्थान --
धारा 127 की उपधारा (1) में शब्दावली “पांच सौ” जो कि शब्दावली “की मासिक दर” के बाद आया है और शब्दावली कुल मिलाकर रुपए के पूर्व “दो हजार पांच सौ” प्रतिस्थापित किए जाएँ। [राजस्थान अधियिनम क्रमांक 3 सन् 2001 धारा 3]
उत्तरप्रदेश --
धारा 127 की उपधारा (1) के परन्तुक में शब्दों “पांच सौ रुपए” के स्थान पर शब्दों “पांच हजार रुपए” को प्रतिस्थापित किया जाएगा।
[देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्या 36 सन 2000. धारा 3]
दण्ड प्रक्रिया (संशोधन) अधिनियम, 2001 (2001 का 50) द्वारा संशोधन किये जाने के पूर्व धारा 127 की उपधारा (1) का परन्तुक, जिसमें उक्त राज्य संशोधन प्रयोज्य था, इस प्रकार था :
"परन्तु यदि वह भत्ते में वृद्धि करता है तो यह कुल मिलाकर पांच सौ रुपए मासिक की दर से अधिक नहीं होगा।”
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(2) Where it appears to the Magistrate that, in consequence of any decision of a competent Civil Court, any order made under section 125 should be cancelled or varied, he shall cancel the order or, as the case may be, vary the same accordingly.
(3) Where any order has been made under section 125 in favour of a woman who has been divorced by, or has obtained a divorce from her husband, the Magistrate shall, if he is satisfied that :
(a) the woman has, after the date of such divorce, remarried, cancel such order as from the date of her remarriage;
(b) the woman has been divorced by her husband and that she has received, whether before or after the date of the said order, the whole of the sum which, under any customary or personal law applicable to the parties, was payable on such divorce, cancel such order :
(i) in the case where such sum was paid before such order, from the date on which such order was made,
(ii) in any other case, from the date of expiry of the period, if any, for which maintenance has been actually paid by the husband to the woman;
(c) the woman has obtained a divorce from her husband and that she had voluntarily surrendered her rights to maintenance or interim maintenance, as the case may be, after her divorce, cancel the order from the date thereof.
(4) At the time of making any decree for the recovery of any maintenance or dowry. by any person, to whom a '[monthly allowance for the maintenance and interim maintenance or any of them has been ordered] to be paid under section 125, the Civil Court shall take into account the sum which has been paid to, or recovered by, such person as monthly allowance for the maintenance and interim maintenance or any of them, as the case may be, in pursuance of the said order.
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STATE AMENDMENTS
Madhya Pradesh --
In sub-section (1) of Section 127 of the Principal Act, for the words "father or mother” the words "father, mother, grandfather, grandmother” shall be substituted.
[Vide The Code of Criminal Procedure (M.P. Amendment) Act, 2004 (Act No. 15 of 2004). Published in M.P. Rajpatra (Asadharan) dt. 6th December 2004 at Page 1047-1048 (2)].
Rajasthan -
In its application to the State of Rajasthan, in section 127, sub-section (1), for the words “five hundred rupees” occurring after the words "the monthly rate of and before the words "rupees in the whole", substitute “two thousand five hundred”.
[Rajasthan Act 3 of 2001, section 3]
Uttar Pradesh -
In section 127, in the proviso to sub-section (1), for the words “five hundred rupees”, the words “five thousand rupees” shall be substituted.
[Vide U.P. Act No. 36 of 2000, sec. 3]
Before substitution by the Code of Criminal Procedure (Amendment) Act, 2001 (50 of 2001), the proviso to sub-section (1) of section 127, in which the said State Amendment was applicable, was as under:-
“Provided that if he increases the allowance, the monthly rate of five hundred rupees in the whole shall not be exceeded."
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