अन्य दशाओं में परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति (Security for keeping the peace in other cases)
Updated: Jul, 06 2019
107. अन्य दशाओं में परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति -- (1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि संभाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशांति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा जिससे संभाव्यतः परिशांति भंग हो जाएगी या लोक प्रशांति विक्षुब्ध हो जाएगी तब यदि उसकी राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह, ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशांति कायम रखने के लिए उसे [प्रतिभुओं सहित या रहित] बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए।
(2) इस धारा के अधीन कार्यवाही किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब की जा सकती है जब या तो वह स्थान जहाँ परिशांति भंग या विक्षोभ की आशंका है, उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर है या ऐसी अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो ऐसी अधिकारिता के परे संभाव्यतः परिशांति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या यथापूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करेगा।
107. Security for keeping the peace in other cases — (1) When an Executive Magistrate receives information that any person is likely to commit a breach of the peace or disturb the public tranquillity or to do any wrongful act that may probably occasion a breach of the peace or disturb the public tranquillity and is of opinion that there is sufficient ground for proceeding, he may in the manner hereinafter provided, require such person to show cause why he should not be ordered to execute a bond with or without sureties for keeping the peace for such period, not exceeding one year, as the Magistrate thinks fit.
(2) Proceedings under this section may be taken before any Executive Magistrate when either the place where the breach of the peace or disturbance is apprehended is within his local jurisdiction or there is within such jurisdiction a person who is likely to commit a breach of the peace or disturb the public tranquillity or to do any wrongful act as aforesaid beyond such jurisdiction.