स्थायी निर्वाहिका और भरण-पोषण (Permanent alimony and maintenance)
Updated: Jan, 30 2021
25. स्थायी निर्वाहिका और भरण-पोषण –
(1) इस अधिनियम के अधीन अधिकारिता का प्रयोग कर रहा कोई भी न्यायालय, डिक्री पारित करने के समय या उसके पश्चात् किसी भी समय, यथास्थिति, पति या पत्नी द्वारा इस प्रयोजन से किए गए आवेदन पर, यह आदेश दे सकेगा कि प्रत्यर्थी उसके भरण-पोषण और संभाल के लिए ऐसी कुल राशि या ऐसी मासिक अथवा कालिक राशि, जो प्रत्यर्थी की अपनी आय और अन्य सम्पत्ति को, यदि कोई हो, आवेदक या आवेदिका की आय और अन्य सम्पत्ति को तथा पक्षकारों के आचरण और मामले की अन्य परिस्थितियों को देखते हुए न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत हो, आवेदक या आवेदिका के जीवन-काल से अनधिक अवधि के लिए संदत करे और ऐसा कोई भी संदाय यदि यह करना आवश्यक हो तो, प्रत्यर्थी की स्थावर सम्पत्ति पर भार द्वारा प्रतिभूत किया जा सकेगा।
(2) यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उसके उपधारा (1) के अधीन आदेश करने के पश्चात् पक्षकारों में से किसी की भी परिस्थितियों में तब्दीली हो गई है तो वह किसी भी पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसी रीति से जो न्यायालय को न्यायसंगत प्रतीत हो ऐसे किसी आदेश में फेरफार कर सकेगा या उसे उपांतरित अथवा विखण्डित कर सकेगा।
(3) यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि उस पक्षकार ने जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन कोई आदेश किया गया है, पुनर्विवाह कर लिया है या यदि ऐसा पक्षकार पत्नी है तो वह सतीव्रता नहीं रह गई है, या यदि ऐसा पक्षकार पति है तो उसने किसी स्त्री के साथ विवाहबाह्य मैथुन किया है तो वह दूसरे पक्षकार की प्रेरणा पर ऐसे किसी आदेश का ऐसी रीति में, जो न्यायालय न्यायसंगत समझे, परिवर्तित, उपांतरित या विखण्डित कर सकेगा।
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25. Permanent alimony and maintenance. –
(1) Any court exercising jurisdiction under this Act may, at the time of passing any decree or at any time subsequent thereto, on application made to it for the purposes by either the wife or the husband, as the case may be, order that the respondent shall pay to the applicant for her or his maintenance and support such gross sum or such monthly or periodical sum for a term not exceeding the life of the applicant as, having regard to the respondent's own income and other property of the applicant, the conduct of the parties and other circumstances of the case, it may seem to the Court to be just, and any such payment may be secured, if necessary, by a charge on the immoveable property of the respondent.
(2) If the Court is satisfied that there is a change in the circumstances of either party at any time after it has made an order under sub-section (1), it may at the instance of either party, vary, modify or rescind any such order in such manner as the court may deem just.
(3) If the Court is satisfied that the party in whose favor an order has been made under this Section has re-married or, if such party is the wife, that she has not remained chaste or if such party is the husband, that he has had sexual intercourse with any woman outside wedlock, it may at the instance of the other party vary, modify or rescind any such order in such manner as the court may deem just.