कुछ अपराधों की इत्तिला का जनता द्वारा दिया जाना (Public to give information of certain offences)
Updated: Jul, 23 2019
39. कुछ अपराधों की इत्तिला का जनता द्वारा दिया जाना -- (1) प्रत्येक व्यक्ति जो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की निम्नलिखित धाराओं के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के किए जाने से या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा करने के आशय से अवगत है, उचित प्रतिहेतु के अभाव में, जिसे साबित करने का भार इस प्रकार अवगत व्यक्ति पर होगा, ऐसे किए जाने या आशय की इत्तिला तुरन्त निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देगा, अर्थात्--
(i) धारा 121 से 126, दोनों सहित, और धारा 130 (अर्थात् उक्त संहिता के अध्याय 6 में विनिर्दिष्ट राज्य के विरुद्ध अपराध);
(ii) धारा 143, 144, 145, 147 और 148 (अर्थात् उक्त संहिता के अध्याय 8 में विनिर्दिष्ट लोक प्रशान्ति के विरुद्ध अपराध);
(iii) धारा 161 से 165क, दोनों सहित, (अर्थात् अवैध, परितोषण से सम्बन्धित अपराध);
(iv) धारा 272 से 278, दोनों सहित, (अर्थात् खाद्य और औषधियों के अपमिश्रण से सम्बन्धित अपराध आदि);
(v) धारा 302, 303 और 304 (अर्थात् जीवन के लिए संकटकारी अपराध);
(vक) धारा 364क (अर्थात् फिरौती, आदि के लिए व्यपहरण से संबंधित अपराध);
(vi) धारा 382 (अर्थात्, चोरी करने के लिए मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी का अपराध);
(vii) धारा 392 से 399, दोनों सहित, और धारा 402 (अर्थात् लूट और डकैती के अपराध);
(viii) धारा 409 (अर्थात्, लोक-सेवक आदि द्वारा आपराधिक न्यासभंग से सम्बन्धित अपराध);
(ix) धारा 431 से 439, दोनों सहित, (अर्थात्, सम्पत्ति के विरुद्ध रिष्टि के अपराध);
(x) धारा 449 और 450 (अर्थात् गृह अतिचार का अपराध);
(xi) धारा 456 से 460, दोनों सहित, (अर्थात्, प्रच्छन्न गृह अतिचार के अपराध); और
(xii) धारा 489क से 489ङ, दोनों सहित, (अर्थात्, करेंसी नोटों और बैंक नोटों से सम्बन्धित अपराध) उचित प्रतिहेतु के अभाव में, जिसे साबित करने का भार इस प्रकार अवगत व्यक्ति पर होगा, ऐसे किए जाने या आशय की इत्तिला तुरन्त निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देगा।
(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए ‘‘अपराध' शब्द के अन्तर्गत भारत के बाहर किसी स्थान में किया गया कोई ऐसा कार्य भी है, जो यदि भारत में किया जाता तो अपराध होता।
39. Public to give information of certain offences — (1) Every person, aware of the Commission of, or of the intention of any other person to commit, any offence punishable under any of the following sections of the Indian Penal Code (45 of 1860 namely :
(i) sections 121 to 126, both inclusive and section 130 (that is to say, offences against the State specified in Chapter VI of the said Code);
(ii) sections 143, 144, 145, 147 and 148 (that is to say, offences against the public tranquillity specified in Chapter VIII of the said Code);
(iii) sections 161 to 165A, both inclusive (that is to say, offences relating to illegal gratification);
(iv) sections 272 to 278, both inclusive (that is to say, offences relating to adulteration of food and drugs, etc.);
(v) sections 302, 303 and 304 (that is to say, offences affecting life);
(va) section 364A (that is to say, offence relating to kidnapping for ransom, etc.);]
(vi) section 382 (that is to say, offence of theft after preparation made for causing death, hurt or restraint in order to the committing of the theft);
(vii) sections 392 to 399, both inclusive and section 402 (that is to say, offences of robbery and dacoity);
(viii) section 409 (that is to say, offence relating to criminal breach of trust by public servant, etc.);
(ix) sections 431 to 439, both inclusive (that is to say, offences of mischief against property);
(x) sections 449 and 450 (that is to say, offence of house-trespass);
(xi) sections 456 to 460, both inclusive (that is to say, offences of lurking house trespass); and
(xii) sections 489A to 489E, both inclusive (that is to say, offences relating to currency notes and bank notes), shall, in the absence of any reasonable excuse, the burden of proving which excuse shall lie upon the person so aware, forthwith give information to the nearest Magistrate or police officer of such Commission or intention.
(2) For the purposes of this section, the term “offence” includes any act committed at any place out of India which would constitute an offence if committed in India.