एक ही विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दण्डादेश ( Sentence in cases of conviction of several offences at one trial )
Updated: Jul, 23 2019
31. एक ही विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दण्डादेश -- (1) जब एक विचारण में कोई व्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया जाता है तब, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 71 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, न्यायालय उसे उन अपराधों के लिए विहित विभिन्न दण्डों में से उन दण्डों के लिए, जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम है, दण्डादेश दे सकता है; जब ऐसे दण्ड कारावास के रूप में हों तब, यदि न्यायालय ने यह निर्देश न दिया हो कि ऐसे दण्ड साथ-साथ भोगे जाएँगे, तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारम्भ होंगे, जिसका न्यायालय निर्देश दे ।
(2) दण्डादेशों के क्रमवर्ती होने की दशा में केवल इस कारण से कि कई अपराधों के लिए संकलित दण्ड उस दण्ड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए दोषसिद्धि पर देने के लिए सक्षम है, न्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए भेजे :
परन्तु--
(क) किसी भी दशा में ऐसा व्यक्ति चौदह वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास के लिए दण्डादिष्ट नहीं किया जाएगा;
(ख) संकलित दण्ड उस दण्ड की मात्रा के दुगने से अधिक न होगा जिसे एक अपराध के लिए देने के लिए वह न्यायालय सक्षम है।
(3) किसी सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा अपील के प्रयोजन के लिए उन क्रमवर्ती दण्डादेशों का योग, जो इस धारा के अधीन उसके विरुद्ध दिए गए हैं, एक दण्डादेश समझा जाएगा।
31. Sentence in cases of conviction of several offences at one trial - (1) When a person is convicted at one trial of two or more offences, the Court may, subject to the provisions of section 71 of the Indian Penal Code (45 of 1860), sentence him for such offences, to the several punishments, prescribed therefor which such Court is competent to inflict; such punishments when consisting of imprisonment to commence the one after the expiration of the other in such order as the Court may direct, unless the Court directs that such punishments shall run concurrently.
(2) In the case of consecutive sentences, it shall not be necessary for the Court by reason only of the aggregate punishment for the several offences being in excess of the punishment which it is competent to inflict on conviction of a single offence, to send the offender for trial before a higher Court :
Provided that -
(a) in no case shall such person be sentenced to imprisonment for a longer period than fourteen years;
(b) the aggregate punishment shall not exceed twice the amount of punishment which the Court is competent to inflict for a single offence.
(3) For the purpose of appeal by a convicted person, the aggregate of the consecutive sentences passed against him under this section shall be deemed to be a single sentence.