लोक अभियोजक ( Public Prosecutors )
Updated: Jul, 01 2019
24. लोक अभियोजक -- (1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, यथास्थिति, केन्द्रीय या राज्य सरकार की ओर से उस उच्च न्यायालय में किसी अभियोजन, अपील या अन्य कार्यवाही के संचालन के लिए एक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और एक या अधिक अपर लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है।
(2) केन्द्रीय सरकार किसी जिले या स्थानीय क्षेत्र में किसी मामले या किसी वर्ग के मामलों के संचालन के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है।
(3) प्रत्येक जिले के लिए, राज्य सरकार एक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और जिले के लिए एक या अधिक अपर लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकती है ।
परन्तु एक जिले के लिए नियुक्त लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक किसी अन्य जिले के लिए भी, यथास्थिति, लोक अभियोजक, या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है।
(4) जिला मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश के परामर्श से, ऐसे व्यक्तियों के नामों का एक पैनल तैयार करेगा जो, उसकी राय में, उस जिले के लिये लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने के योग्य हैं।
(5) कोई व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा उस जिले के लिए लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका नाम उपधारा (4) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार किए गए नामों के पैनल में न हो।
(6) उपधारा (5) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी राज्य में अभियोजन अधिकारियों का नियमित काडर है, वहाँ राज्य सरकार ऐसा काडर, गठित करने वाले व्यक्तियों में से ही लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त करेगी :
परन्तु जहाँ राज्य सरकार की राय में ऐसे काडर में से कोई उपयुक्त व्यक्ति नियुक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है, वहाँ राज्य सरकार उपधारा (4) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार किए गए नामों के पैनल में से, यथास्थिति, लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक के रूप में किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है।
स्पष्टीकरण -- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए--
(क) “अभियोजन अधिकारियों का नियमित काडर" से अभियोजन अधिकारियों का वह काडर अभिप्रेत है, जिसमें लोक अभियोजक का, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, पद सम्मिलित है और जिसमें उस पद पर सहायक लोक अभियोजक की, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, पदोन्नति के लिए उपबंध किया गया है |
(ख) “अभियोजन अधिकारी" से लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक के कृत्यों का पालन करने के लिए इस संहिता के अधीन नियुक्त किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो ।
(7) कोई व्यक्ति उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) या उपधारा (6) के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने का पात्र तभी होगा जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय करता रहा हो।
(8) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी मामले या किसी वर्ग के मामलों के प्रयोजनों के लिए किसी अधिवक्ता को, जो कम से कम दस वर्ष तक विधि व्यवसाय करता रहा हो, विशेष लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है। परन्तु यह कि न्यायालय, पीड़ित को, इस उपधारा के अधीन अभियोजन की सहायता करने के लिए अपनी पसन्द के अधिवक्ता को नियुक्त करने की अनुमति प्रदान कर सकेगा।
(9) उपधारा (7) और उपधारा (8) के प्रयोजनों के लिए उस अवधि के बारे में, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने प्लीडर के रूप में विधि व्यवसाय किया है या लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक या अन्य अभियोजन अधिकारी के रूप में, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, सेवाएँ की हैं (चाहे इस संहिता के प्रारम्भ के पहले की गई हों या पश्चात्) यह समझा जाएगा कि वह ऐसी अवधि है जिसके दौरान ऐसे व्यक्ति ने अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया है ।
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राज्य संशोधन
बिहार :
धारा 24 में उपधारा (6) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा प्रतिस्थापित की जाएगी :-
“(6) उपधारा (5) में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी राज्य में जहाँ अभियोजन अधिकारियों का नियमित केडर (संवर्ग) विद्यमान है, राज्य सरकार भी ऐसे केडर में सम्मिलित व्यक्तियों में से एक पब्लिक प्रासीक्यूटर या अतिरिक्त पब्लिक प्रासीक्यूटर नियुक्त कर सकेगा।”
[देखें बिहार एक्ट संख्या 16 सन् 1984, धारा 2, (दिनांक 24-8-1984 से प्रभावशील)]
मध्यप्रदेश :
धारा 24 में --
(i) उपधारा (6) में शब्द, कोष्ठक और अंक “उपधारा (5) में कोई प्रतिकूल बात के होते हुए भी” के स्थान पर शब्द, कोष्ठक, अक्षर और अंक “उपधारा (5) में कोई प्रतिकूल बात के होते हुए भी, परन्तु उपधारा (6-क) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए'' प्रतिस्थापित किए जाएँगे और 18 दिसम्बर, 1978 से प्रतिस्थापित किये गये हैं, समझे जाएँगे।
(ii) उपधारा (6) के पश्चात् अग्रलिखित उपधारा अन्त:स्थापित की जाएगी और 18 दिसम्बर, 1978 से प्रतिस्थापित रही है, समझी जाएगी, अर्थात्:-
“(6-क) उपधारा (6) में कोई प्रतिकूल बात के होते हुए भी राज्य सरकार किसी व्यक्ति को जो अधिवक्ता के तौर पर कम से कम 7 वर्ष से विधि व्यवसाय कर रहा है, जिले के लिए पब्लिक प्रासीक्यूटर या अतिरिक्त पब्लिक प्रासीक्यूटर नियुक्त कर सकेगी और म.प्र. राज्य में प्रासीक्यूटिंग ऑफिसर्स के केडर में सम्मिलित व्यक्तियों में से जिले के लिए पब्लिक प्रासीक्यूटर या अतिरिक्त पब्लिक प्रासीक्यूटर नियुक्त करना आवश्यक नहीं होगा,
और पब्लिक प्रासीक्यूटर तथा अतिरिक्त पब्लिक प्रासीक्यूटर की नियुक्ति के उपधारा (4) और (5) के उपबंध इस उपधारा के तहत पब्लिक प्रासीक्यूटर और अतिरिक्त पब्लिक प्रासीक्यूटर की नियुक्ति को लागू होंगे।''
(iii) उपधारा (7) में शब्द, कोष्ठक और अंक “उपधारा (6)” के पश्चात् शब्द, कोष्ठक, अंक और अक्षर “या उपधारा (6-क)” अन्त:स्थापित किए जाएँगे और 18 दिसम्बर, 1978 से प्रभाव में अन्त:स्थापित हैं, समझे जाएँगे।
(iv) उपधारा (9) में शब्द, कोष्ठक और अंक “उपधारा (7)” के स्थान पर शब्द, कोष्ठक, अंक और अक्षर “या उपधारा (6-क) और उपधारा (7)'' प्रतिस्थापित किए जाएँगे और 18 दिसम्बर, 1978 से प्रतिस्थापित हैं, समझे जाएँगे ।
[देखें मध्यप्रदेश एक्ट संख्या 21, सन् 1995, धारा 3 (दिनांक 24-5-1995 से प्रभावशील)]
राजस्थान : धारा 24 की उपधारा (6) ऐसे संशोधित होगी :-
“(6) उपधारा (5) में कोई प्रतिकूल बात होते हुए भी राज्य में जहाँ प्रासीक्यूटिंग ऑफिसर का एक नियमित केडर विद्यमान है, राज्य सरकार भी ऐसे केडर में सम्मिलित व्यक्तियों में से एक पब्लिक प्रासीक्यूटर या एक एडीशनल पब्लिक प्रासीक्यूटर नियुक्त कर सकेगी।
[राजस्थान एक्ट संख्या 1, 1981 धारा 2, (दिनांक 10-12-1980 से भूतलक्षी प्रभाव से प्रभावशील)]
उत्तरप्रदेश : धारा 24 में --
(क) उपधारा (1) में शब्दों “लोक अभियोजक” के पश्चात् शब्दों “और एक या अधिक अपर लोक अभियोजक” को अंत:स्थापित किया जाएगा और सदा ही अंत:स्थापित किया जा चुका होना समझा जाएगा।
(ख) उपधारा (6) के पश्चात् निम्नलिखित उपधारा अंत:स्थापित की जाएगी और सदा ही अंत:स्थापित की जा चुकी होना समझी जाएगी, अर्थात् :-
“(7) उपधाराएँ (5) एवं (6) के प्रयोजन के लिए काल जिसके दौरान कोई व्यक्ति एक प्लीडर के रूप में व्यवसाय कर रहा है या लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक के रूप में सेवा कर चुका है, को ऐसा काल होना समझा जाएगा, जिसके दौरान ऐसा व्यक्ति एक अधिवक्ता के रूप में व्यवसायरत रहा है।”
(देखें 1978 का उत्तरप्रदेश अधिनियम 33, धारा 2 (9-10-1978 से)]
धारा 24 में --
(क) उपधारा (1) में शब्दों “उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्” विलोपित हो जाएँगे;
(ख) उपधारा (4), (5) और (6) विलोपित हो जाएँगी;
(ग) उपधारा (7) में शब्दों “या उपधारा (6)'' विलोपित हो जाएंगे।
[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 18, सन् 1991, धारा 2, (दिनांक 16-2-1991 से प्रभावशील)]
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(2) The Central Government may appoint one or more Public Prosecutors for the purpose of conducting any case or class of cases in any district, or local area.
(3) For every district, the State Government shall appoint a Public Prosecutor and may also appoint one or more Additional Public Prosecutors for the district :
Provided that the Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor appointed for one district may be appointed also to be a Public Prosecutor or an Additional Public Prosecutor, as the case may be, for another district.
(4) The District Magistrate shall, in consultation with the Sessions Judge, prepare a panel of names of persons, who are, in his opinion fit to be appointed as Public Prosecutors or Additional Public Prosecutors for the district.
(5) No person shall be appointed by the State Government as the Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor for the district unless his name appears in the panel of names prepared by the District Magistrate under sub-section (4).
(6) Notwithstanding anything contained in sub-section (5), where in a state there exists a regular Cadre of Prosecuting Officers, the State Government shall appoint a Public Prosecutor or an Additional Public Prosecutor only from among the persons constituting such Cadre :
Provided that where, in the opinion of the State Government, no suitable person is available in such Cadre for such appointment that Government may appoint a person as Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor, as the case may be, from the panel of names prepared by the District Magistrate under sub-section (4).
Explanation — For the purposes of this sub-section
(a) “regular Cadre of Prosecuting Officers””' means a Cadre of Prosecuting Officers which includes therein the post of a Public Prosecutor, by whatever name called, and which provides for promotion of Assistant Public Prosecutors, by whatever name called, to that post;
(b) “Prosecuting Officer” means a person, by whatever name called, appointed to perform the functions of a Public Prosecutor, an Additional Public Prosecutor or an Assistant Public Prosecutor under this Code.
(7) A person shall be eligible to be appointed as a Public Prosecutor or an Additional Public Prosecutor under sub-section (1) or sub-section (2) or sub-section (3) or sub-section (6), only if he has been in practice as an advocate for not less than seven years.
(8) The Central Government or the State Government may appoint, for the purposes of any case or class of cases, a person who has been in practice as an advocate for not less than 'ten years as a Special Public Prosecutor.
'[Provided that the Court may permit the victim to engage an advocate of his choice to assist the prosecution under this sub-section.]
(9) For the purposes of sub-section (7) and sub-section (8), the period during which a person has been in practice as a pleader, or has rendered (whether before or after the commencement of this Code) service as a Public Prosecutor or as an Additional Public Prosecutor or Assistant Public Prosecutor or other Prosecuting Officer, by whatever name called, shall be deemed to be the period during which such person has been in practice as an advocate.
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STATE AMENDMENTS
Bihar: In section 24, for sub-section (6) the following sub-section shall be substituted:-
"(6) Notwithstanding anything contained in sub-section (5) where in a State there exists a regular Cadre of Prosecuting Officers, the State Government may also appoint a Public Prosecutor or an Additional Public Prosecutor from among the persons constituting such Cadre."
[Vide Bihar Act 16 of 1984, sec. 2 (w.e.f. 24-8-1984)].
Madhya Pradesh: In section 24 -
(i) in sub-section (6), for the words, brackets and figure “Notwithstanding anything contained in sub-section (5)", the words, brackets, letter and figures “Notwithstanding anything contained in sub-section (5), but subject to the provisions of sub-section (6A)” shall be substituted and shall be deemed to have been substituted with effect from 18th December, 1978;
(ii) after sub-section (6), the following sub-section shall be inserted and shall be deemed to have been inserted with effect from 18th December, 1978, namely :-
"(6-A) Notwithstanding anything contained in sub-section (6), the State Government may appoint a person who has been in practice as an advocate for not less than seven years as the Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor for the district and it shall not be necessary to appoint the Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor for the district from among the persons constituting the Cadre of Prosecuting Officers in the State of Madhya Pradesh and the provisions of sub-sections (4) and (5) shall apply to the appointment of a Public Prosecutor or Additional Public Prosecutor under this sub-section";
(iii) in sub-section (7), after the words, brackets and figure “sub-section (6)”, the words, brackets, figure and letter “or sub-section (6-A)” shall be inserted and shall be deemed to have been inserted with effect from 18th December, 1978; and
(iv) in sub-section (9), for the words, brackets and figure, “sub-section (7)”, the words, brackets, figures and letter "sub-section (6-A) and sub-section (7)” shall be substituted and shall be deemed to have been substituted with effect from 18th December, 1978.
[Vide Madhya Pradesh Act 21 of 1995, sec. 3 (w.e.f. 24-5-1995)].
Rajasthan: In section 24, for sub-section (6) the following sub-section shall be substituted, namely :-
“(6) Notwithstanding anything contained in sub-section (5), wherein a State there exists a regular Cadre of Prosecuting Officers, the State Government may also appoint a Public Prosecutor or an Additional Public Prosecutor from among the persons constituting such Cadre.”
[Vide Rajasthan Act 1 of 1981, sec. 2 (w.r.e.f. 10-12-1980)].
Uttar Pradesh: In section 24 -
(a) in sub-section (1), after the words “Public Prosecutor” the words, "and one or more
Additional Public Prosecutors” shall be inserted and be deemed always to have been inserted.
(b) after sub-section (6), the following sub-section shall be inserted and be deemed always to have been inserted, namely :-
“(7) For the purposes of sub-sections (5) and (6), the period during which a person has been in practice as a pleader, or has rendered service as a Public Prosecutor or Assistant Public Prosecutor, shall be deemed to be the period during which such person has been in practice as an advocate.
[Vide Uttar Pradesh Act 33 of 1978, sec. 2 (w.e.f. 9-10-1978).
In section 24 -
(a) in sub-section (1), the words “after consultation with the High Courts” shall be omitted;
(b) sub-sections (4), (5) and (6) shall be omitted;
(c) in sub-section (7), the words "or sub-section (6)” shall be omitted.
[Vide Uttar Pradesh Act 18 of 1991, sec. 2 (w.e.f. 16-2-1991)].
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