न्यायिक पृथक्करण (Judicial separation)
Updated: Jan, 30 2021
10. न्यायिक पृथक्करण –
(1) विवाह के पक्षकारों में से कोई पक्षकार चाहे वह विवाह इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात् जिला न्यायालय की धारा 13 की उपधारा (1) में और पत्नी की दशा में उसी उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट आधारों में से किसी ऐसे आधार पर, जिस पर विवाह-विच्छेद के लिए अर्जी उपस्थापित की जा सकती थी न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के लिए प्रार्थना करते हुए अर्जी उपस्थापित कर सकेगा।
(2) जहाँ कि न्यायिक पृथक्करण के लिये आज्ञप्ति दे दी गई है, वहाँ याचिकादाता आगे के लिये इस आभार के अधीन होगा कि प्रत्युत्तरदाता के साथ सहवास करे, किन्तु यदि न्यायालय दोनों में से किसी पक्षकार द्वारा याचिका द्वारा आवेदन पर ऐसी याचिका में किये गये कथनों की सत्यता के बारे में अपना समाधान हो जाने पर वैसा करना न्याय संगत और युक्तियुक्त समझे तो वह आज्ञप्ति का विखंडन कर सकेगा।
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10. Judicial separation -
(1) Either party to a marriage, whether solemnized before or after the commencement of this Act, may present a petition praying for a decree for judicial separation on any of the grounds specified in subsection (1) of section 13, and in the case of a wife also on any of the grounds specified in sub-section (2) thereof, as grounds on which a petition for divorce might have been presented.
(2) Where a decree for judicial separation has been passed, it shall no longer be obligatory for the petitioner to cohabit with the respondent, but the Court may, on the application by petition of either party and on being satisfied of the truth of the statements made in such petition, rescind the decree if it considers it just and reasonable to do so.