दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन (Restitution of conjugal rights)
Updated: Jan, 30 2021
दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन और न्यायिक पृथक्करण
9. दाम्पत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन –
जबकि पति या पत्नी में से किसी ने युक्तियुक्त प्रतिहेतु के बिना दूसरे से अपना साहचर्य प्रत्याहत कर लिया है, तब परिवेदित पक्षकार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिये याचिका द्वारा आवेदन जिला न्यायालय में कर सकेगा और न्यायालय ऐसी याचिका में किये गये कथनों की सत्यता के बारे में और बात के बारे में आवेदन मंजूर करने का कोई वैध आधार नहीं है; अपना समाधान हो जाने पर तदनुसार दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए आज्ञप्ति देगा।
स्पष्टीकरण - जहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या साहचर्य से प्रत्याहरण के लिए युक्तियुक्त प्रतिहेतु है, वहाँ युक्तियुक्त प्रतिहेतु साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होगा जिसने साहचर्य से प्रत्याहरण किया है।
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CHAPTER III
RESTITUTION OF CONJUGAL RIGHTS AND JUDICIAL SEPARATION
9. Restitution of conjugal rights - When either the husband or the wife has, without reasonable excuse, withdrawn from the society of the other, the aggrieved party may apply, by petition to the district Court, for restitution of conjugal rights and the Court, on being satisfied of the truth of the statements made in such petition and that there is no legal ground why the application should not be granted, may decree restitution of conjugal rights accordingly.
Explanation - Where a question arises whether there has been reasonable excuse for withdrawal from the society, the burden of proving reasonable excuse shall be on the person who has withdrawn from the society.