Updated: Aug, 04 2018

 

9. दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति -- (1) अपत्य के पिता या माता या संरक्षक के सिवाय कोई व्यक्ति अपत्य को दत्तक देने की सामर्थ्य नहीं रखेगा ।

 1[(2) उपधारा (4) के उपबंधों के अध्यधीन, पिता या माता, यदि जीवित हों तो, उन्हें दत्तक में पुत्र या पुत्री को देने का समान अधिकार होगा :

परन्तु यह कि ऐसा अधिकार, उनमें से किसी एक द्वारा, अन्य की सम्मति के सिवाय, प्रयोग में नहीं लाया जाएगा जब तक कि उनमें से कोई एक पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग न कर चुका हो या हिन्दू नहीं रह गया हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृत चित्त का है ।]

2[* * *]

3[(4) जहाँ माता और पिता दोनों मर चुके हों या पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग कर चुके हों या अपत्य को त्याग चुके हों या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वे विकृत चित्त हैं या जहाँ कि अपत्य की जनकता ज्ञात न हो, तो उस अपत्य का संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा से उस अपत्य को किसी भी व्यक्ति को जिसके अन्तर्गत स्वयं वह संरक्षक भी आता है, दत्तक दे सकेगा ।]

(5) न्यायालय किसी संरक्षक को उपधारा (4) के अधीन अनुज्ञा देने के पूर्व इस बात को ध्यान में रखकर की अपत्य की आयु और समझने की शक्ति कितनी है दत्तक दिए जाने के संबंध में अपत्य की इच्छा पर सम्यक् विचार करके अपना इस बारे में समाधान कर लेगा कि दत्तक दिया जाना अपत्य के लिए कल्याणकर होगा या नहीं और यह कि दत्तक देने के प्रतिफलस्वरूप कोई संदाय या इनाम ऐसे किसी संदाय या इनाम के सिवाय, जैसा कि न्यायालय मंजूर करे, अनुज्ञा के लिए, आवेदन करने वाले ने न तो प्राप्त किया है और न प्राप्त करने का करार किया है और न किसी भी व्यक्ति ने आवेदन करने वाले को किया या दिया है और न ही करने या देने के लिए करार उससे किया है।

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1. स्वीय विधि (संशोधन) अधिनियम, 2010 (क्र. 30 सन् 2010) की धारा 4(i) द्वारा उपधारा (2)

के स्थान पर प्रतिस्थापित (दिनांक 31-8-2010 से प्रभावशील) । इस प्रतिस्थापन के पूर्व, उपधारा (2) निम्नानुसार थी :

“(2) यदि पिता जीवित हो तो उपधारा (3) और उपधारा (4) के उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि केवल उसे ही दत्तक देने का अधिकार होगा किन्तु जब तक कि माता पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग न कर चुकी हो या वह हिन्दू न रह गई हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित न कर दिया

हो कि वह विकृत चित्त की है ऐसा अधिकार माता की सम्मति के बिना प्रयोग में नहीं लाया जाएगा ।“

2. स्वीय विधि (संशोधन) अधिनियम, 2010 (क्र. 30 सन् 2010) की धारा 4(ii) द्वारा उपधारा (3) विलोपित (दिनांक 31-8-2010 से प्रभावशील) । इस विलोपन के पूर्व, उपधारा (3) निम्नानुसार थी :-

“(3) यदि पिता मर चुका है या पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग कर चुका हो या हिन्दू न रह गया हो या सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृत चित्त है। तो माता अपत्य को दत्तक दे सकेगी।" ।

3. 1962 के अधिनियम सं. 45 की धारा 3 द्वारा (29-11-1962 से) उपधारा (4) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

 

स्पष्टीकरण -- इस धारा के प्रयोजनों के लिए :

(i) “पिता” और “माता' पदों के अन्तर्गत दत्तक पिता और दत्तक माता नहीं आते हैं;

(iक) “संरक्षक” से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी देखरेख में किसी अपत्य का शरीर या उसका शरीर और सम्पत्ति दोनों हो और इसके अन्तर्गत आते हैं :

              (क) अपत्य के पिता या माता की विल द्वारा नियुक्त संरक्षक; तथा

             (ख) किसी न्यायालय द्वारा नियुक्त या घोषित संरक्षक; तथा

(ii) “न्यायालय” से ऐसा नगर सिविल न्यायालय या जिला न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर दत्तक लिया जाने वाला अपत्य मामूली तौर पर निवास करता है।

 

9. Persons capable of giving in adoption — (1) No person except the father or mother or the guardian of a child shall have the capacity to give the child in adoption.

1[(2) Subject to the provisions of sub-section (4), the father or the mother, if alive, shall have equal right to give a son or daughter in adoption:

Provided that such right shall not be exercised by either of them save with the consent of the other unless one of them has completely and finally renounced the world or has ceased to be a Hindu or has been declared by a Court of competent jurisdiction to be of unsound mind.)

2[***]

3[(4) Where both the father and mother are dead or have completely and finally renounced the world or have abandoned the child or have been declared by a Court of competent jurisdiction to be of unsound mind or where the parentage of the child is not known, the guardian of the child may give the child in adoption with the previous permission of the Court to any person including the guardian himself.]

(5) Before granting permission to a guardian under sub-section (4), the Court shall be satisfied that the adoption will be for the welfare of the child, due consideration being for this purpose given to the wishes of the child having regard to the age and understanding of the child and that the applicant for permission has not received or agreed to receive and that no person has made or given or agreed to make or give to the applicant any payment or reward in consideration of the adoption except such as the Court may sanction.

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1. Subs. by the Personal Laws (Amendment) Act, 2010 (No. 30 of 2010), Section 4(i), for sub-section (2) (w.e.f. 31-8-2010). Prior to its substitution, sub-section (2) read as under :-

    "(2) Subject to the provisions of sub-section (3) and sub-section (4), the father, if alive, shall alone have the right to give in adoption, but such right shall not be exercised save with the consent of the mother unless the mother has completely and finally renounced the world or has ceased to be a Hindu or has been declared by a Court of competent jurisdiction to be of unsound mind.".

2. Sub-section (3) omitted by the Personal Laws (Amendment) Act, 2010 (No. 30 of 2010), Section 4(ii) (w.e.f. 31-8-2010). Prior to its omission, sub-section (3) read as under -

  "(3) The mother may give the child in adoption if the father is dead or has completely and finally renounced the world or has ceased to be a Hindu or has been declared by a Court of competent jurisdiction to be of unsound mind.".

3. Subs. by Act 45 of 1962, Section 3, for sub-section (4) (w.e.f. 29-11-1962).

 

Explanation - For the purposes of this section

(i) the expressions “father” and “mother” do not include an adoptive father and an adoptive mother;

(ia) “guardian” means a person having the care of the person of a child or of both his person and property and includes

     (a) a guardian appointed by the will of the child's father or mother; and

    (b) a guardian appointed or declared by a Court; and

(ii) “Court" means the City Civil Court or a District Court within the local limits of whose jurisdiction the child to be adopted ordinarily resides.