Updated: May, 06 2020

Section 377 of Indian Penal Code (IPC) in Hindi and English

377. प्रकृति विरुद्ध अपराध -

जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीवजन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रियभोग करेगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण - इस धारा में वर्णित अपराध के लिए आवश्यक इन्द्रियभोग गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।

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राज्य संशोधन

मध्यप्रदेश - धारा 377 के अधीन अपराध “सत्र न्यायालय" द्वारा विचारणीय है।

[देखें म.प्र. अधिनियम क्रमांक 2 सन्‌ 2008 की धारा 41 म.प्र. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 22-2-2008 पृष्ठ 157-158 पर प्रकाशित |]

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377. Unnatural offences —

Whoever voluntarily has carnal intercourse against the order of nature with any man, woman or animal, shall be punished with '[imprisonment for life], or with imprisonment of either description for a term which may extend to ten years, and shall also be liable to fine.

Explanation — Penetration is sufficient to constitute the carnal intercourse necessary to the offence described in this section.

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STATE AMENDMENT

Madhya Pradesh — Offence under section 377 is triable by “Court of Session”.

[Vide Madhya Pradesh Act 2 of 2008, section 4. Published in M.P. Rajpatra (Asadharan) dated 22-2-2008 page 158-158(1).]

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