Section 272 of Indian Penal Code (IPC) in Hindi and English
272. विक्रय के लिए आशयित खाद्य या पेय का अपमिश्रण -
जो कोई किसी खाने या पीने की वस्तु को इस आशय से कि वह ऐसी वस्तु के खाद्य या पेय के रूप में बेचे या यह संभाव्य जानते हुए कि वह खाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, ऐसे अपमिश्रित करेगा कि ऐसी वस्तु खाद्य या पेय के रूप में अपायकर बन जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
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राज्य संशोधन
उत्तरप्रदेश - धाराओं 272, 273, 274, 275 एवं 276 में शब्दों “वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 6 माह तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से दण्डित किया जाएगा” के स्थान पर अग्रलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-
“आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के भी दायित्वाधीन होगा :
परन्तु यह कि पर्याप्त कारणों से जिनका उल्लेख निर्णय में किया जाएगा, न्यायालय ऐसे कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा, जो कि आजीवन कारावास से कम हो।”
देखें उत्तरप्रदेश अधिनियम संख्यांक 47 सन् 1975 की धारा 3 (दिनांक 15-9-1975 से प्रभावशील)
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272. Adulteration of food or drink intended for sale - Whoever adulterates any article of food or drink, so as to make such article noxious as food or drink, intending to sell such article as food or drink, or knowing it to be likely that the same will be sold as food or drink, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to six months, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both.
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STATE AMENDMENT
Uttar Pradesh — In sections 272, 273, 274, 275 and 276 for the words “shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to six months, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both”, the following shall be substituted, namely :-
“shall be punished with imprisonment for life and shall also be liable to fine :
Provided that the Court may, for adequate reasons to be mentioned in the judgment, impose a sentence of imprisonment which is less than imprisonment for life.”
[Vide Uttar Pradesh Act 47 of 1975, sec. 3 (w.e.f. 15-9-1975)).
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