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Section 188 of Indian Penal Code (IPC) in Hindi and English
188. लोक-सेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा -
जो कोई यह जानते हुए कि वह ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किसी आदेश से, जो ऐसे आदेश को प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है, कोई कार्य करने से विरत रहने के लिए या अपने कब्जे में की, या अपने प्रबन्धाधीन, किसी सम्पत्ति के बारे में कोई विशेष व्यवस्था करने के लिए निर्दिष्ट किया गया है, ऐसे निदेश की अवज्ञा करेगा,
यदि ऐसी अवज्ञा विधिपूर्वक नियोजित किन्हीं व्यक्तियों को बाधा, क्षोभ या क्षति, अथवा बाधा, क्षोभ या क्षति की जोखिम,कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से,दण्डित किया जाएगा,
और यदि ऐसी अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य, या क्षेम को संकट कारित करे, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, या बल्वा या दंगा कारित करती हो, या कारित करने की प्रवृत्ति रखती हो, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसके अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण - यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी का आशय अपहानी उत्पन्न करने का हो या उसके ध्यान में यह हो कि उसकी अवज्ञा करने से अपहानी होना संभाव्य है। यह पर्याप्त है कि जिस आदेश की वह अवज्ञा करता है उस आदेश का उसे ज्ञान है, और यह भी ज्ञान है कि उसके अवज्ञा करने से अपहानी उत्पन्न होती या होनी संभाव्य है।
दृष्टांत -
एक आदेश, जिसमें यह निदेश है कि अमुक धार्मिक जुलूस अमुक सड़क से होकर न निकले, ऐसे लोक-सेवक द्वारा प्रख्यापित किया जाता है, जो ऐसे आदेश प्रख्यापित करने के लिए विधिपूर्वक सशक्त है। क जानते हुए उस आदेश की अवज्ञा करता है, और तद्वारा बल्वे का संकट कारित करता है। क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है।
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राज्य संशोधन
मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ - धारा 188 के तहत अपराध अजमानतीय है। [देखें अधिसूचना क्रमांक 33207-एफ. क्र. 6-59-74-बी- XXI दिनांक 19-11-1975, म.प्र. राजपत्र, भाग 1, दिनांक 12-3-1976 पृष्ठ 473 पर प्रकाशित ।]
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188. Disobedience to order duly promulgated by public servant -
Whoever, knowing that, by an order promulgated by a public servant lawfully empowered to promulgate such order, he is directed to abstain from a certain act, or to take certain order with certain property in his possession or under his management, disobeys such direction,
shall, if such disobedience causes or tends to cause obstruction, annoyance or injury, or risk of obstruction, annoyance or injury, to any person lawfully employed, be, punished with simple imprisonment for a term which may extend to one month, or with fine which may extend to two hundred rupees, or with both;
and if such disobedience causes or trends to cause danger to human life, health or safety, or causes or tends to cause a riot or affray, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to six months, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both.
Explanation - It is not necessary that the offender should intend to produce harm, or contemplate his disobedience as likely to produce harm. It is sufficient that he knows of the order which he disobeys, and that his disobedience produces, or is likely to produce, harm.
Illustration -
An order is promulgated by a public servant lawfully empowered to promulgate such order, directing that a religious procession shall not pass down a certain street. A knowingly disobeys the order, and thereby causes danger of riot. A has committed the offence defined in this section.
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STATE AMENDMENT
Madhya Pradesh & Chhattisgarh — Offence under section 188 is non-bailable. [ Vide Notification No. 33207-F. No. 6-59-74-B-XXI dated 19-11-1975. Published in M.P. Rajpatra, Part 1, dated 12-3-1976, page 473].
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