- Home
- Handbooks
- INDIAN PENAL CODE, 1860 (IPC) in Hindi and English
- मिथ्या इत्तिला देना (Furnishing false information)
Section 177 of Indian Penal Code (IPC) in Hindi and English
177. मिथ्या इत्तिला देना -
जो कोई किसी लोक-सेवक को ऐसे लोक-सेवक के नाते किसी विषय पर इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से,
अथवा यदि वह इत्तिला, जिसे देने के लिए, वह वैध रूप से आबद्ध हो, कोई अपराध किए जाने के विषय में हो, या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से, या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टांत -
(क) क, एक भूधारक, यह जानते हुए कि उसकी भू-संपदा की सीमाओं के अन्दर एक हत्या की गई है, उस जिले के मजिस्ट्रेट को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि मृत्यु सांप के काटने के परिणामस्वरूप दुर्घटना से हुई है। क इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी है।
(ख) क, जो ग्राम चौकीदार है, यह जानते हुए कि अनजाने लोगों का एक बड़ा गिरोह य के गृह में, जो पड़ोस के गाँव का निवासी एक धनी व्यापारी है, डकैती करने के लिए उसके गांव से होकर गया और बंगाल संहिता, [1821 के विनियम 3] की धारा 7 के खण्ड 5 के अधीन निकटतम थाने के ऑफिसर को उपरोक्त घटना की इत्तिला शीघ्र और ठीक समय पर देने के लिए आबद्ध होते हुए पुलिस ऑफिसर को जानबूझकर यह मिथ्या इत्तिला देता है कि संदिग्धशील लोगों का एक गिरोह किसी भिन्न दिशा में स्थित एक दूरस्थ स्थान पर डकैती करने के लिए गांव से होकर गया है। यहां क, इस धारा के दूसरे भाग में परिभाषित अपराध का दोषी है।
स्पष्टीकरण - धारा 176 में और इस धारा में, “अपराध” शब्द के अन्तर्गत भारत से बाहर किसी स्थान पर किया गया कोई ऐसा कार्य आता है, जो यदि भारत में किया जाता, तो निम्नलिखित धारा अर्थात् 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458,459 और 460 में से किसी धारा के अधीन दण्डनीय होता और “अपराधी' शब्द के अन्तर्गत कोई भी ऐसा व्यक्ति आता है, जो कोई ऐसा कार्य करने का दोषी अभिकथित हो ।
177. Furnishing false information -
Whoever, being legally bound to furnish information on any subject to any public servant, as such, furnishes, as true, information on the subject which he knows or has reason to believe to be false, shall be punished with simple imprisonment for a term which may extend to six months, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both;
or, if the information which he is legally bound to give respects the commission of an offence, or is required for the purpose of preventing the commission of an offence, or in order to the apprehension of an offender, with imprisonment of either description for a term which may extend to two years, or with fine, or with both.
Illustrations -
(a) A, a landholder, knowing of the commission of a murder within the limits of his estate, wilfully misinforms the Magistrate of the district that the death has occurred by accident in consequence of the bite of a snake. A is guilty of the offence defined in this section.
(b) A, a village watchman, knowing that a considerable body of strangers has passed through his village in order to commit a dacoity in the house of Z, a wealthy merchant residing in a neighbouring place, and being bound under clause, 5, section VII, [Regulation III, 1821], of the Bengal Code, to give early and punctual information of the above fact to the officer of the nearest police station, wilfully misinforms the police officer that a body of suspicious characters passed through the village with a view to commit dacoity in a certain distant place in a different direction. Here A is guilty of the offence defined in the later part of this section.
Explanation - In section 176 and in this section the word "offence” includes any act committed at any place out of India, which, if committed in India, would be punishable under any of the following sections, namely, 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449,450, 457,458, 459 and 460; and the word "offender" includes any person who is alleged to have been guilty of any such act.