पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने का राज्यपाल का अधिकार (Right of Governor to withhold or withdraw Pension)
Updated: Mar, 04 2021
Rule 9 of M.P.Civil Services (Pension) Rules, 1976
नियम 9. पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने का राज्यपाल का अधिकार (Right of Governor to withhold or withdraw Pension) - (1) पेन्शनर द्वारा उसकी सेवा के दौरान, जिसमें सेवानिवृत्ति के पश्चात्, पुनर्नियुक्त पर की गई सेवा भी शामिल है, विभागीय अथवा न्यायालयीन कार्यवाही में जिसमें यह पाया जाय कि पेंशनर गम्भीर दुराचरण अथवा लापरवाही का दोषी है, शासन को पहूँचाई गई धन सम्बन्धी हानि, यदि कोई हो, के लिए स्थायी रूप से अथवा किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए, पेंशन अथवा उसके किसी अंश को रोकने के लिये पेंशन वापस लेने और पूर्ण आदेश पारित करने के लिये राज्यपाल स्वंय के अधिकार सुरक्षित रखते हैं:
परन्तु यह कि अन्तिम आदेश पारित करने के पूर्व राज्यपाल द्वारा लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जायेगाः
[परन्तु आगे और भी कि जहां पेंशन का कोई अंश रोका अथवा वापस लिया जाता है तो ऐसी धनराशि न्यूनतम पेंशन जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगी।] [वित्त विभाग अधिसूचना क्रमांक बी-25/9/96/PWC/IV, दिनांक 18-6-96 द्वारा संशोधित तथा दिनांक 1-1-86 से लागू।]
(2) (ए) विभागीय कार्यवाहियां, यदि शासकीय सेवक के सेवा में रहते हुए चाहे सेवानिवृत्ति के पूर्व अथवा उसकी पुनर्नियुक्ति के दौरान संस्थित की गई हों तो इस नियम के अधीन शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी कार्यवाहियां चालू मानी जावेंगी और वे जिस प्राधिकारी द्वारा प्रारम्भ की गई थीं उसी के द्वारा, और उसी प्रकार से, जैसा कि शासकीय सेवक सेवा में रहता, चालू रहेंगी और निर्णीत की जावेंगीः [वि.वि. क्र. F B. 25/31/95/PWC/IV, दि. 22-12-95 द्वारा "उपनियम (1) में उल्लिखित" शब्द विलोपित।]
परन्तु यह कि, जहां विभागीय कार्यवाहियां राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा संस्थित की गई हैं तो वह प्राधिकारी उसके निष्कर्षों को अंकित कर राज्यपाल को प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
(बी) विभागीय कार्यवाहियां, जब शासकीय सेवक सेवा में था, तब उसकी सेवानिवृत्ति के पहले या उसकी पुनर्नियुक्ति के दौरान, संस्थित नहीं की गई तो-
(i) राज्यपाल की मंजूरी के बिना संस्थित नहीं की जाएंगी;
(ii) ऐसे संस्थापन के पूर्व चार वर्ष के पहले घटित किसी घटना के बारे में नहीं होगी; तथा
(iii) विभागीय कार्यवाहियां लागू प्रक्रिया के अनुसार, ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसे स्थान पर संचालित की जावेगी जैसा शासन निदेशित करे-
(अ) जिसमें शासकीय सेवक को उसकी सेवा के दौरान, अपराध के संबंध में, सेवा से पदच्युत करने का आदेश दिया जा सकता है, उस मामले में जब पेंशन अथवा उसके भाग को न चाहे स्थाई रूप से या निर्दिष्ट अवधि के लिए रोकना अथवा वापस लेना प्रस्तावित था; अथवा
(ब) जिसमें यदि उसकी पेंशन से शासन को पहुंचाई गई आर्थिक हानि की पूर्ण अथवा भाग की वसूली का आदेश प्रस्तावित किया गया था जो शासकीय सेवक के द्वारा उसकी सेवा के संबंध में उसकी लापरवाही अथवा आदेश भंग के कारण हुई आर्थिक हानि के पूर्ण अथवा भाग को उसके वेतन से वसूल करने का आदेश किया जा सकता है।
(3) शासकीय सेवक, जब सेवा में था, चाहे उसकी सेवानिवृत्ति के अथवा उसकी पुनर्नियुक्ति के पहले उत्पन्न वाद-कारण के बारे में अथवा ऐसे संस्थापन के चार वर्ष से अधिक पहले घटित किसी घटना के बारे में न्यायिक कार्यवाही संस्थित नहीं की जावेगी।
(4) उस मामले में जहां शासकीय सेवक अधिवार्षिकी आयु पर पहुँचने या अन्यथा के कारण सेवानिवृत्त हुआ है, तथा जिसके विरुद्ध कोई विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियां संस्थित हैं अथवा जहां विभागीय कार्यवाहियां उपनियम (2) के अधीन निरंतर हैं, अन्तिम पेंशन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्त उपदान, जैसा [नियम 64] में उपबंधित है, मंजूर होगाः
[परंतु यह कि जहां विभागीय कार्यवाहियां संस्थित करने के पूर्व ही शासकीय सेवक को उसकी पेंशन, अंतिम रूप से स्वीकृत की जा चुकी है तो राज्यपाल, लिखित आदेश द्वारा, ऐसी विभागीय कार्यवाहियां संस्थित करने की तिथि से, इस प्रकार स्वीकृत पेंशन का पचास प्रतिशत, इस शर्त के साथ रोक सकता है कि ऐसी रोक के बाद पेंशन न्यूनतम पेंशन जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगीः] [वित्त विभाग अधिसूचना क्रमांक बी-25/9/96/PWC/IV, दिनांक 18-6-96 द्वारा संशोधित तथा दिनांक 1-1-86 से लागू।]
परन्तु यह और भी कि, जहां विभागीय कार्यवाही दिनांक 25-10-1978 के पूर्व संस्थित हुई हो तो प्रथम परन्तुक, इस प्रकार से प्रभावशील होगा जैसे “ऐसी कार्यवाही संस्थित होने के दिनांक से" शब्दों के लिये "उपर्युक्त दर्शित तिथि से 30 दिनों से अधिक विलम्ब होने के दिनांक से प्रभावशील होगा" शब्द प्रतिस्थापित थेः
परन्तु यह और भी कि, -
(ए) यदि विभागीय कार्यवाही संस्थित होने के दिनांक के एक वर्ष में पूर्ण नहीं होती है । उपर्युक्त एक वर्ष की अवधि व्यतीत हो जाने के पश्चात्, रोकी गई पेंशन का 50% पुनः स्थापित हो जावेगा।
(बी) यदि विभागीय कार्यवाही संस्थित होने की तिथि से दो वर्ष की अवधि में पूर्ण नहीं होती है तो उपर्युक्त दो वर्ष की अवधि व्यतीत होने के पश्चात्, रोकी गई पेंशन का पूर्ण धनराशि पुनः स्थापित हो जावेगी;
(सी) यदि विभागीय कार्यवाही में अंतिम आदेश पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने अथवा उसमें से कोई वसूली करने के लिये पारित किया जाता है तो ऐसा आदेश, विभागीय कार्यवाही के संस्थित होने की तिथि से ही प्रभावशील हुआ समझा जावेगा और पेंशन की धनराशि जो अब तक रोकी गई है, नियम 43 के उपनियम (2) में विहित सीमाओं के अधीन, अन्तिम आदेश की शर्तों के अनुसार समयोजित की जावेगी।
(5) जहां शासन, पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने का निर्णय नहीं करता है, बल्कि पेंशन से आर्थिक क्षति की वसूली के लिये आदेशित करता है तो शासकीय सेवक सेवा निवृत्ति की तिथि पर स्वीकार्य पेंशन की एक तिहाई से अधिक की दर से उसकी वसूली नहीं की जावेगी।
(6) इस नियम के उद्देश्य हेतु-
(ए) जिस दिनांक को शासकीय सेवक अथवा पेंशनर को आरोप-पत्र जारी किया जाता है अथवा यदि शासकीय सेवक पूर्व तिथि से ही निलम्बन में है तो उस तिथि से विभागीय कार्यवाही संस्थित की गई मानी जावेगी;
(बी) न्यायिक कार्यवाही संस्थित मानी जाएगी-
(i) आपराधिक कार्यवाही के प्रकरण में उस तिथि से जिस दिन पुलिस अधिकारी को शिकायत अथवा रिपोर्ट की जाती है; जिस पर कि मजिस्ट्रेट संज्ञान लेता है; और
(ii) दीवानी कार्यवाहियों के प्रकरण में वह तिथि, जब न्यायालय में वाद-पत्र प्रस्तुत किया जाता है।
राज्य शासन स्पष्टीकरण
मध्यप्रदेश पेंशन नियम, 1976 के नियम-9 अंतर्गत पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने के संबंध में।
राज्य शासन द्वारा जारी मध्यप्रदेश सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के नियम-9(1) में पेंशन रोकने अथवा उसे वापस लेने के संबंध में निम्नानुसार प्रावधान है-
"पेंशनर, उसकी सेवा के दौरान जिसमें सेवानिवृत्ति के पश्चात् पुर्ननियुक्ति पर की गई सेवा भी शामिल है, किसी विभागीय अथवा न्यायालयीन कार्यवाही में गम्भीर दुराचरण अथवा लापरवाही का दोषी पाया जाता है, तो राज्यपाल स्वयं स्थायी रूप से अथवा किसी विनिर्दिष्ट अवधि के लिए पेंशन अथवा उसके किसी अंश को रोकने या वापिस लेने और शासन को हुई किसी आर्थिक हानि को पेंशन से पूर्ण या आंशिक वसूली के अधिकार सुरक्षित रखते हैं :''
उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि :-
(i) पेंशन का कोई अंश रोका (Withhold) या वापस लिया (Withdraw) जा सकता है; अथवा
(ii) पेंशन पूर्ण रूप से वापिस (Withdraw) ली जा सकती है।
2. पेंशन का कोई अंश रोकने पर विनिर्दिष्ट अवधि जिस हेतु पेंशन का अंश रोका गया है के पश्चात् रोका गया अंश पुनः देय हो जाता है तथा पेंशनर को पूर्ण पेंशन प्राप्त करने की पात्रता आ जाती है, जबकि पेंशन वापिस लिये जाने पर भविष्य में पेंशनर को पेंशन के उक्त अंश की पात्रता नहीं आती है। यह भी उल्लेखनीय है कि पेंशन पूर्णतः वापिस लेने पर न्यूनतम पेंशन की पात्रता नहीं आती है जबकि यदि पेंशन का कोई अंश रोका अथवा वापिस लिया जाता है तब ऐसी स्थिति में कम से कम न्यूनतम पेंशन देय होती है।
3. अतः समस्त अनुशासनिक प्राधिकारियों का ध्यान उपर्युक्त नियमों की तथ्यात्मक स्थिति की ओर आकर्षित करते हुए लेख है कि अनुशासनिक अधिकारी के मत में यदि पेंशन पूर्णतः/अंशतः वापिस लिये जाने संबंधी शास्ति अधिरोपित करना है तो जारी किये जाने वाले आदेश में पेंशन वापिस (Withdraw) करने का स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए। इसके विपरीत यदि पेंशन का कोई अंश किसी भी विनिर्दिष्ट अवधि हेतु रोकने का है तब ऐसी स्थिति में जारी किये जाने वाले आदेश में पेंशन का अंश तथा विनिर्दिष्ट अवधि जिस हेतु पेंशन रोकी (Withhold) जा रही है का उल्लेख होना चाहिए।
[वित्त विभाग क्रमांक : एफ 9-4/2011/नियम/चार, दिनांक 27 जून, 2011]
मध्यप्रदेश सिविल सर्विसेस (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 9 के प्रकरणों में राज्यपाल महोदय की स्वीकृति से अभिप्रेत ।
मध्यप्रदेश सिविल सर्विसेस (पेंशन) नियम, 1976 के नियम 9 के तहत पेंशन को रोकने और उसे वापस लेने के अधिकार राज्यपाल को हैं। साथ ही इस नियम (2) में यह व्यवस्था है कि अगर शासकीय सेवक के सेवा में रहते हुए या पुनर्नियुक्ति के दौरान उसके खिलाफ विभागीय जांच संस्थापित नहीं की जाती है तो राज्यपाल की स्वीकृति के बगैर विभागीय जांच संस्थापित नहीं की जाएगी।
2. इस नियम के तहत राज्य शासन के सामने यह सवाल पैदा होता रहा है कि क्या प्रत्येक प्रकरण में राज्यपाल महोदय की स्वीकृति प्राप्त की जाए। विधि एवं विधायी कार्य विभाग के परामर्श से यह निर्णय लिया गया है कि प्रकरणों में राज्यपाल महोदय, की व्यक्तिगत स्वीकृति की जरूरत नहीं हैं। ऐसे प्रकरणों में मंत्री-परिषद् की स्वीकृति ली जानी चाहिए।
3. इस विभाग के ज्ञापन क्रमांक एफ. बी. 6/6/87/नि-/2/चार, दिनांक 8-2-1989 द्वारा जारी निर्देश निरस्त किये जाते हैं।
[वित्त विभाग क्रमांक बी- 6/6/91/PWC/चार, दिनांक 7-8-1996]