सबूत का भार (Burden of proof)
Updated: Jan, 29 2021
Section 101 of Indian Evidence Act in Hindi and English
भाग 3 : साक्ष्य का पेश किया जाना और प्रभाव
अध्याय 7 : सबूत के भार के विषय में
101. सबूत का भार -- जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे जो उन तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है, जिन्हें वह प्राख्यात करता है, उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है।
जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का अस्तित्व साबित करने के लिए आबद्ध है, तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर सबूत का भार है।
दृष्टांत
(क) क न्यायालय से चाहता है कि वह ख को उस अपराध के लिए दण्डित करने का निर्णय दे जिसके बारे में क कहता है कि वह ख ने किया है।
क को यह साबित करना होगा कि ख ने वह अपराध किया है।
(ख) क न्यायालय से चाहता है कि न्यायालय उन तथ्यों के कारण जिनके सत्य होने का वह प्राख्यान और ख प्रत्याख्यान करता है, यह निर्णय दे कि वह ख के कब्जे में की अमुक भूमि का हकदार है।
क को उन तथ्यों का अस्तित्व साबित करना होगा।
PART III: PRODUCTION AND EFFECT OF EVIDENCE
CHAPTER VII: OF THE BURDEN OF PROOF
101. Burden of proof -- Whoever desires any Court to give judgment as to any legal right or liability dependent on the existence of facts which he asserts, must prove that those facts exist.
When a person is bound to prove the existence of any fact, it is said that the burden of proof lies on that person.
Illustrations
(a) A desires a Court to give judgment that B shall be punished for a crime which A says B has committed.
A must prove that B has committed the crime.
(b) A desires a Court to give judgment that he is entitled to certain land in the possession of B, by reason of facts which he asserts, and which B denies, to be true.
A must prove the existence of those facts.