Updated: Jan, 29 2021

Section 90 of Indian Evidence Act in Hindi and English

90. तीस वर्ष पुरानी दस्तावेजों के बारे में उपधारणा -- जहां कि कोई दस्तावेज, जिसका तीस वर्ष पुरानी होना तात्पर्यित है या साबित किया गया है, ऐसी किसी अभिरक्षा में से, जिसे न्यायालय उस विशिष्ट मामले में उचित समझता है, पेश की गई है, वहां न्यायालय यह उपधारित कर सकेगा कि ऐसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर और उसका हर अन्य भाग, जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तलेख में होना तात्पर्यित है, उस व्यक्ति के हस्तलेख में है, और निष्पादित या अनुप्रमाणित दस्तावेज होने की दशा में यह उपधारित कर सकेगा कि वह उन व्यक्तियों द्वारा सम्यक् रूप से निष्पादित और अनुप्रमाणित की गई थी जिनके द्वारा उसका निष्पादित और अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है।

स्पष्टीकरण -- दस्तावेजों का उचित अभिरक्षा में होना कहा जाता है, यदि वे ऐसे स्थान में और उस व्यक्ति की देख-रेख में है, जहां और जिसके पास वे प्रकृत्या होनी चाहिए, किन्तु कोई भी अभिरक्षा अनुचित नहीं है, यदि यह साबित कर दिया जाए कि अभिरक्षा का उद्गम विधिसम्मत था या यदि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियां ऐसी हों, जिनसे ऐसा उद्गम अधिसंभाव्य हो जाता है।

दृष्टांत

(क) क भू-संपत्ति पर दीर्घकाल से कब्जा रखता आया है। वह उस भूमि संबंधी विलेख, जिनसे उस भूमि पर उसका हक दर्शित होता है, अपनी अभिरक्षा में से पेश करता है। यह अभिरक्षा उचित है।

(ख) क उस भू-संपत्ति से संबद्ध विलेख, जिसका वह बंधकदार है, पेश करता है। बंधककर्ता संपत्ति पर कब्जा रखता है। यह अभिरक्षा उचित है।

(ग) ख का संसंगी क, ख के कब्जे वाली भूमि से संबंधित विलेख पेश करता है, जिन्हें ख ने उसके पास सुरक्षित अभिरक्षा के लिए निक्षिप्त किया था। यह अभिरक्षा उचित है।

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राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश -- विद्यमान धारा, धारा 90(1) के रूप में पुनर्संख्यांकित की जाएगी, और

(क) शब्द “तीस वर्ष के स्थान पर “बीस वर्ष” प्रतिस्थापित किए जाएंगे, और

(ख) अग्रलिखित को नई धारा (2) के रूप में जोड़ा जावेगा, अर्थात् :-

“(2) जब कोई दस्तावेज जो उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट है, को दस्तावेज के पंजीयन संबंधी विधि न के अनुसार पंजीकृत किया गया था और सम्यक् रूप से प्रमाणित उसकी प्रति प्रस्तुत की गई है तो न्यायालय उपधारणा कर सकेगा कि ऐसे दस्तावेज के हस्ताक्षर तथा उसका अन्य प्रत्येक भाग जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति का होना तात्पर्यित है उस व्यक्ति के हस्तलेख में है और उस व्यक्ति द्वारा अनुप्रमाणित है जिसके द्वारा उसका निष्पादित या अनुप्रमाणित होना तात्पर्यित है।"

धारा 90 के पश्चात् धारा 90-क अंतःस्थापित की जावेगी, अर्थात् :-

“90-क. (1) जब कोई पंजीकृत दस्तावेज या उसकी विधिवत अनुप्रमाणित प्रति या दस्तावेज की कोई अनुप्रमाणित प्रति जो कि न्यायालय के रेकार्ड का भाग है किसी की अभिरक्षा में से प्रस्तुत की जाती है जिसे न्यायालय किसी विशेष मामले में उचित समझता है तो न्यायालय यह उपधारणा कर सकेगा कि मूल दस्तावेज उस व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया गया था जिसके द्वारा उसका निष्पादित किया जाना तात्पर्यित है।

(2) कोई दस्तावेज जो किसी वाद का या प्रतिरक्षा का आधार है या वादपत्र में या लिखित कथन में जिस पर विश्वास किया गया है, के बाबत् उक्त उपधारणा नहीं की जाएगी।”

धारा 90 की उपधारा (1) में दिया गया स्पष्टीकरण इस धारा को भी लागू होगा।

[यू.पी. एक्ट संख्या 24 सन् 1954, धारा 2 (दिनांक 30-11-1954 से प्रभावशील)।]

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90. Presumption as to documents thirty years old -- Where any document, purporting or proved to be thirty years old, is produced from any custody which the Court in the particular case considers proper, the Court may presume that the signature and every other part of such document, which purports to be in the handwriting of any particular person, is in that person's handwriting, and, in the case of a document executed or attested, that it was duly executed and attested by the persons by whom it purports to be executed and attested.

Explanation -- Documents are said to be in proper custody if they are in the place in which, and under the care of the person with whom, they would naturally be; but no custody is improper if it is proved to have had a legitimate origin, or if the circumstances of the particular case are such as to render such an origin probable.

This explanation applies also to section 81. 2003

Illustrations

(a) A has been in possession of landed property for a long time. He produces from his custody deeds relating to the land showing his titles to it. The custody is proper.

(b) A produces deeds relating to landed property of which he is the mortgagee. The mortgagor is in possession. The custody is proper.

(c) A, a connection of B, produces deeds relating to lands in B's possession, which were deposited with him by B for safe custody. The custody is proper.

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STATE AMENDMENT

Uttar Pradesh -- The existing section shall be renumbered as section 90(1) thereof, and

(a) for the words “thirty years” the words “twenty years” shall be substituted, and

(b) the following shall be added thereafter as a new sub-section (2), namely :-

“(2) Where any such document as is referred to in sub-section (1) was registered in accordance with the law relating to registration of documents and a duly certified copy thereof is produced, the Court may presume that the signature and every other part of such document which purports to be in the handwriting of any particular person, it is that person's handwriting, and in the case of a document executed or attested, that it was duly executed and attested by the person by whom it purports to have been executed or attested.”

After Section 90, the following Section 90-A shall be inserted, namely :-

“90-A. (1) When any registered document or a duly certified copy thereof or any certified copy of a document which is part of the record of a Court of justice, is produced from any custody which the Court in the particular case considers proper, the Court may presume that the original was executed by the person by whom it purports to have been executed.

(2) This presumption shall not be made in respect of any document which is the basis of a suit or of defence or is relied upon in the plaint or written statement.”

The Explanation to sub-section (1) of Section 90 will also apply to this section.

[U.P. Act No. 24 of 1954, sec. 2 (w.e.f. 30.11.1954)]

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