सेना-न्यायालयों की प्रक्रिया [Procedure of courts-martial]
Updated: Jan, 30 2021
अध्याय 11
सेना-न्यायालयों की प्रक्रिया
128. पीठासीन आफिसर - हर जनरल, डिस्ट्रिक्ट या सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय में ज्येष्ठ सदस्य पीठासीन आफिसर होगा।
129. जज-एडवोकेट - एक जज-एडवोकेट, जो या तो जज-एडवोकेट जनरल के विभाग का कोई आफिसर होगा या यदि ऐसा कोई आफिसर उपलब्ध न हो तो जज-एडवोकेट जनरल द्वारा या उसके उपपदीयों में से किसी के द्वारा अनुमोदित कोई आफिसर होगा, हर एक जनरल सेना-न्यायालय में हाजिर रहेगा तथा हर एक डिस्ट्रिक्ट या सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय में हाज़िर रह सकेगा।
130. आक्षेप - (1) जनरल, डिस्ट्रिक्ट या सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय द्वारा सभी विचारणों में, जैसे ही न्यायालय समवेत हो वैसे ही, पीठासीन आफिसर और सदस्यों के नाम अभियुक्त को पढ़कर सुनाए जाएंगे, जिससे तब यह पूछा जाएगा कि क्या वह न्यायालयासीन किसी आफिसर द्वारा अपना विचारण किए जाने पर आक्षेप करता है।
(2) यदि अभियुक्त ऐसे किसी आफिसर के बारे में आक्षेप करता है तो उसका आक्षेप और उस पर उस आफिसर का जिसके बारे में आक्षेप किया गया हो उत्तर भी सुना और अभिलिखित किया जाएगा और न्यायालय के बाकी आफिसर आक्षेप पर उस आफिसर की अनुपस्थिति में विनिश्चय करेंगे जिसके बारे में आक्षेप किया गया है।
(3) यदि आक्षेप मतदान करने के हकदार आफिसरों के आधे या अधिक मतों से मंजूर किया जाए तो आक्षेप मंजूर किया जाएगा और वह सदस्य जिसके बारे में आक्षेप किया गया है निवृत्त हो जाएगा, और उस रिक्ति को विहित रीति से किसी अन्य आफिसर से अभियुक्त के आक्षेप करने के उसी अधिकार के अध्यधीन रहते हुए भरा जा सकेगा।
(4) जब कि कोई आक्षेप नहीं किया गया है या जब कि आक्षेप किया गया है और नामंजूर कर दिया गया है या ऐसे हर आफिसर का स्थान जिसके बारे में सफलतापूर्वक आक्षेप किया गया है किसी अन्य ऐसे आफिसर से भर दिया गया है जिसके बारे में कोई आक्षेप नहीं किया गया है या मंजूर नहीं किया गया है तब न्यायालय विचारण करने के लिए अग्रसर होगा।
131. सदस्य, जज-एडवोकेट और साक्षी को शपथ दिलाना - (1) इसके पूर्व कि विचारण प्रारंभ हो, हर सेना-न्यायालय के हर सदस्य को और जज-एडवोकेट को विहित रीति से शपथ दिलाई जाएगी या उससे प्रतिज्ञा कराया जाएगा।
(2) सेना-न्यायालय के समक्ष साक्ष्य देने वाले हर व्यक्ति की परीक्षा, विहित प्ररूप में सम्यक् रूप से उसे शपथ दिलाने या प्रतिज्ञान कराने के पश्चात् की जाएगी।
(3) उपधारा (2) के उपबन्ध वहां लागू नहीं होंगे, जहां कि साक्षी बारह वर्ष से कम आयु का बालक है और सेना-न्यायालय की यह राय है कि यद्यपि साक्षी सत्य बोलने के कर्तव्य को समझता है, किन्तु शपथ या प्रतिज्ञान की प्रकृति को नहीं समझता।
132. सदस्यों द्वारा मतदान -(1) उपधाराओं (2) और (3) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए यह है कि सेना-न्यायालय का हर विनिश्चय स्पष्ट बहुमत से पारित किया जाएगा, तथा जहां कि या तो निष्कर्ष पर या दण्डादेश पर मतसाम्य हो, वहां विनिश्चय अभियुक्त के पक्ष में होगा।
(2) जनरल सेना-न्यायालय द्वारा मृत्यु दण्डादेश उस न्यायालय के सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई की सहमति के बिना पारित नहीं किया जाएगा।
(3) सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश सब सदस्यों की सहमति के बिना पारित नहीं किया जाएगा।
(4) आक्षेप या निष्कर्ष या दंडादेश के मामलों से भिन्न मामलों में, पीठासीन आफिसर को निर्णायक मत प्राप्त होगा।
133. साक्ष्य के बारे में साधारण नियम - भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, सेना-न्यायालय के समक्ष की सब कार्यवाहियों को लागू होगा।
134. न्यायिक अवेक्षा - सेना-न्यायालय किसी ऐसी बात की न्यायिक अवेक्षा कर सकेगा जो सदस्यों के साधारण सैनिक ज्ञान में होती है।
135. साक्षियों को समन करना - (1) संयोजक आफिसर, सेना-न्यायालय या जांच न्यायालय का पीठासीन आफिसर, जज-एडवोकेट या अभियुक्त व्यक्ति का कमान आफिसर, स्वहस्ताक्षरित समन द्वारा किसी व्यक्ति की, या तो साक्ष्य देने के लिए या कोई दस्तावेज या अन्य वस्तु पेश करने के लिए उस समय या स्थान पर जो समन में वर्णित किया जाए, हाजिरी अपेक्षित कर सकेगा।
(2) उस साक्षी की दशा में, जो सैनिक प्राधिकार के अध्यधीन है समन उसके कमान आफिसर को भेजा जाएगा और वह आफिसर उसकी उस पर तद्नुसार तामील करेगा।
(3) किसी अन्य साक्षी की दशा में, समन उस मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा, जिसकी अधिकारिता के अन्दर वह हो या निवास करता हो, और वह मजिस्ट्रेट समन को ऐसे कार्यान्वित करेगा मानो साक्षी उस मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आने के लिए अपेक्षित हो।
(4) जब कि कोई साक्षी अपने कब्जे में या शक्ति में की किसी विशिष्ट दस्तावेज या अन्य वस्तु को पेश करने के लिए अपेक्षित हो, तब समन में युक्तियुक्त प्रमितता के साथ उसका वर्णन किया जाएगा।
136. पेश किए जाने से छूट प्राप्त दस्तावेजें - (1) धारा 135 की कोई भी बात भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 के प्रवर्तन पर प्रभाव डालने वाली अथवा डाक या तार प्राधिकारियों की अभिरक्षा में के किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज को लागू होने वाली नहीं समझा जाएगी।
(2) यदि ऐसी अभिरक्षा में की कोई दस्तावेज किसी जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य प्रेसीडेन्सी मजिस्ट्रेट, उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की राय में किसी सेना-न्यायालय के प्रयोजन के लिए वांछित है, तो वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारियों से अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसे दस्तावेज ऐसे व्यक्ति को परिदत्त करें जिसे वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय निर्दिष्ट करे।
(3) यदि ऐसी कोई दस्तावेज किसी अन्य मजिस्ट्रेट की या किसी पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस अधीक्षक की राय में, ऐसे किसी प्रयोजन के लिए वांछित है, तो वह, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारियों से अपेक्षा कर सकेगा कि वे ऐसी दस्तावेज की तलाश कराएं और ऐसे किसी जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य प्रेसिडेन्सी मजिस्ट्रेट या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय के आदेश तक उसे रोक रखें।
137. साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन – (1) जब कभी सेना-न्यायालय द्वारा किए जा रहे विचारण के अनुक्रम में, न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि साक्षी की परीक्षा की जाए और ऐसे साक्षी की हाजिरी इतने विलम्ब, व्यय या असुविधा के बिना, जितना मामले की परिस्थितियों में अनुचित होगा, नहीं कराई जा सकती है, तब ऐसा न्यायालय जज-एडवोकेट जनरल को इस वास्ते संबोधित कर सकेगा कि उस साक्षी का साक्ष्य लेने के लिए कमीशन निकाला जाए।
(2) यदि जज-एडवोकेट जनरल तब यदि आवश्यक समझे, तो वह साक्षी का साक्ष्य लेने के लिए किसी ऐसे जिला मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के नाम, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर वह साक्षी निवास करता है, कमीशन निकाल सकेगा।
(3) वह मजिस्ट्रेट या आफिसर जिसके नाम कमीशन निकाला गया है या यदि वह जिला मजिस्ट्रेट है, तो वह या ऐसा प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जो उसने इस निमित्त नियुक्त किया है, उस स्थान को जाएगा जहां साक्षी है, या साक्षी को अपने समक्ष आने के लिए समन करेगा और उसी रीति से उसका साक्ष्य लिखेगा, और इस प्रयोजन के लिए उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के या [जम्मू-कश्मीर राज्य] में प्रवृत्त तत्समान विधि के अधीन वारंट मामलों के विचारणों के लिए है।
(4) जबकि साक्षी किसी जनजाति क्षेत्र में या भारत के बाहर किसी स्थान में निवास करता है, तब कमीशन उस रीति में निकाला जा सकेगा जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 22 या जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त किसी तत्समान विधि में विनिर्दिष्ट है।
(5) इस और निकट आगामी धारा में, जज-एडवोकेट जनरल के अन्तर्गत डिप्टी एडवोकेट जनरल आता है।
138. साक्षी की कमीशन पर परीक्षा - (1) किसी भी ऐसे मामले में, जिसमें धारा 137 के अधीन कमीशन निकाला जाता है, अभियोजक और अभियुक्त व्यक्ति क्रमशः कोई ऐसे लिखित परिप्रश्न भेज सकेंगे जिन्हें न्यायालय विवाद्यक से सुसंगत समझे और ऐसे कमीशन का निष्पादन करने वाला मजिस्ट्रेट या आफिसर साक्षी की परीक्षा ऐसे परिप्रश्नों पर करेगा।
(2) अभियोजक और अभियुक्त व्यक्ति ऐसे मजिस्ट्रेट या आफिसर के समक्ष काउन्सेल की मार्फत या उस दशा के सिवाय, जब कि अभियुक्त व्यक्ति अभिरक्षा में है, स्वयं उपसंजात हो सकेंगे और उक्त साक्षी की, यथास्थिति, परीक्षा, प्रतिपरीक्षा और पुनः परीक्षा कर सकेंगे।
(3) धारा 137 के अधीन निकाले गए कमीशन के सम्यक् रूप से निष्पादित किए जाने के पश्चात्, वह उस साक्षी के अभिसाक्ष्य के सहित, जिसकी उसके अधीन पीरक्षा की गई हैं, जज-एडवोकेट जनरल को लौटा दिया जाएगा।
(4) उपधारा (3) के अधीन लौटाए गए कमीशन और अभिसाक्ष्य की प्राप्ति पर जज एडवोकेट जनरल उसे उस न्यायालय को, जिसकी प्रेरणा पर वह कमीशन निकाला गया था, या यदि वह न्यायालय विघटित कर दिया गया है तो अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के लिए संयोजित किसी अन्य न्यायालय को अग्रेषित कर देगा, और वह कमीशन, तत्सम्बन्धी विवरणी और अभिसाक्ष्य अभियोजक और अभियुक्त द्वारा निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे, और सब न्यायसंगत अपवादों के अध्यधीन रहते हुए, या तो अभियोजक द्वारा या अभियुक्त द्वारा मामले में साक्ष्य में पढ़े जा सकेंगे और न्यायालय की कार्यवाही का भाग होंगे।
(5) हर मामले में, जिसमें धारा 137 के अधीन कमीशन निकाला गया हो, विचारण ऐसे विनिर्दिष्ट समय के लिए, जो कमीशन के निष्पादन और लौटाए जाने के लिए युक्तियुक्त रूप से पर्याप्त है, स्थगित किया जा सकेगा।
139. ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्धि जिसका आरोप न लगाया गया हो - (1) वह व्यक्ति, जिस पर अभित्यजन का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, अभित्यजन करने का प्रयत्न करने या छुट्टी बिना अनुपस्थित होने का दोषी ठहराया जा सकेगा।
(2) वह व्यक्ति, जिस पर अभित्यजन करने का प्रयत्न करने का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, छुट्टी बिना अनुपस्थिति होने का दोषी ठहराया जा सकेगा।
(3) वह व्यक्ति, जिस पर यह आरोप कि उसने आपराधिक बल का प्रयोग किया है, सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, हमले का दोषी ठहराया जा सकेगा।
(4) वह व्यक्ति, जिस पर धमकी भरी भाषा का प्रयोग करने का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, अनधीनता द्योतक भाषा का प्रयोग करने का दोषी ठहराया जा सकेगा।
(5) वह व्यक्ति, जिस पर धारा 52 के खण्ड (क), (ख), (ग) और (घ) में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी एक का आरोप सेनान्यायालय के समक्ष लगाया गया है, इन अपराधों में से किसी ऐसे अन्य अपराध का दोषी ठहराया जा सकेगा, जिसका उस पर आरोप लगाया जा सकता था।
(6) वह व्यक्ति, जिस पर धारा 69 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है किसी ऐसे अन्य अपराध का दोषी ठहराया जा सकेगा, जिसका दोषी वह तब ठहराया जा सकता था, जब दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध लागू होते।
(7) वह व्यक्ति, जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, अपराध के ऐसी परिस्थितियों में किए जाने का, जिनमें अधिक कठोर दण्ड अन्तर्वलित है, सबूत न होने पर उसी अपराध के ऐसी परिस्थितियों में, जिनमें कम कठोर दण्ड अन्तर्वलित है, किए जाने का दोषी ठहराया जा सकेगा।
(8) वह व्यक्ति, जिस पर इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का आरोप सेना-न्यायालय के समक्ष लगाया गया है, उस अपराध के प्रयत्न का या दुष्प्रेरण का दोषी ठहराया जा सकेगा, यद्यपि, प्रयत्न या दुष्प्रेरण का आरोप पृथक्त: न लगाया गया हो।
140. हस्ताक्षरों के बारे में उपधारणा - इस अधिनियम के अधीन की किसी भी कार्यवाही में कोई भी ऐसा आवेदन, प्रमाणपत्र, वारण्ट, उत्तर या अन्य दस्तावेज, जिसका सरकार की सेवा में के किसी आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, पेश किए जाने पर, यह बात, जब तक तत्प्रतिकूल साबित न कर दी जाए, उपधारित की जाएगी कि वह उस व्यक्ति द्वारा और उस हैसियत में सम्यक् रूप में हस्ताक्षरित की गई है जिसके द्वारा और जिस हैसियत में उसका हस्ताक्षरित किया जाना तात्पर्यित है।
141. अभ्यावेशन पत्र - (1) कोई अभ्यावेशन पत्र, जो किसी अभ्यावेशन आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, इस अधिनियम के अधीन की कार्यवारियों में इस बात का साक्ष्य होगा कि अभ्यावेशित व्यक्ति ने प्रश्नों के वे उत्तर दिए थे, जिनका उसके द्वारा दिया जाना उसमें व्यपदिष्ट है।
(2) ऐसे व्यक्ति का अभ्यावेशन उसके मूल अभ्यावेशन पत्र या उसकी ऐसी प्रतिलिपि, जो अभ्यावेशन पत्र को अभिरक्षा में रखने वाले आफिसर द्वारा शुद्ध प्रतिलिपि के रूप में प्रमाणित होनी तात्पर्यित है, पेश करके साबित किया जा सकेगा।
142. कतिपय दस्तावेजों के बारे में उपधारणा - (1) नियमित सेना के किसी प्रभाग में किसी व्यक्ति की सेवा में होने के या उक्त प्रभाग से किसी व्यक्ति के सकलंक पदच्युत किए जाने, पदच्युति या उन्मोचन के सम्बन्ध में या किसी व्यक्ति की, इस परिस्थिति के बारे में कि उसने, बल के किसी प्रभाग में सेवा नहीं की है, या वह उसका अंग नहीं था, कोई पत्र, विवरणी या अन्य दस्तावेज उस दशा में जिसमें कि उसका केन्द्रीय सरकार या ! [थल सेनाध्यक्ष] द्वारा या की ओर से या किसी विहित आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यत है, उन तथ्यों का साक्ष्य होगी, जो ऐसे पत्र, विवरणी या अन्य दस्तावेज में कथित हैं।
(2) किसी सेना, नौ सेना या वायु सेना सूची या राजपत्र, जिसका प्राधिकार से प्रकाशित होना तात्पर्यित है, उसमें उल्लिखित आफिसरों, कनिष्ठ आयुक्त आफिसरों या वारण्ट आफिसरों, की प्रास्थिति और रैंक या उनके द्वारा धारित किसी नियुक्ति का तथा सेवाओं की उस कोर, बटालियन या अंग या शाखा का, जिसके वे अंग हैं, साक्ष्य होगा।
(3) जहां कि इस अधिनियम के या तद्धीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अनुसरण में या अन्यथा सैनिक कर्तव्य के अनुसरण में कोई अभिलेख किसी रेजीमेंट पुस्तक में किया गया है, और कमान आफिसर द्वारा या उस आफिसर द्वारा, जिसका कर्तव्य ऐसा अभिलेख अभिलिखित करना है, हस्ताक्षरित हुआ तात्पर्यित है, वहां ऐसा अभिलेख उन तथ्यों का, जो उसमें कथित हैं, साक्ष्य होगा।
(4) किसी रेजीमेन्ट पुस्तक में के किसी अभिलेख की प्रतिलिपि, जो ऐसी पुस्तक को अभिरक्षा में रखने वाले आफिसर द्वारा शुद्ध प्रतिलिपि के रूप में प्रमाणित होनी तात्पर्यित है, ऐसे अभिलेख का साक्ष्य होगी।
(5) जहां कि इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का विचारण, अभित्यजन के या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के आरोप पर हो रहा है और ऐसे व्यक्ति ने किसी आफिसर या इस अधिनियम के अध्यधीन के अन्य व्यक्ति की या नियमित सेना के किसी प्रभाग की अभिरक्षा में अपने को अभ्यर्पित कर दिया है, या वह ऐसे आफिसर या व्यक्ति द्वारा पकड़ लिया गया है, वहां ऐसा प्रमाणपत्र जिसका यथास्थिति, ऐसे आफिसर द्वारा, या नियमित सेना के उस भाग के कमान आफिसर द्वारा, या उस कोर, विभाग या टुकड़ी के, जिसका कि ऐसा व्यक्ति अंग है, कमान आफिसर द्वारा, हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है और जिसमें ऐसे अभ्यर्पण या पकड़े जाने का तथ्य, तारीख और स्थान तथा वह बात कि उसका पहनावा कैसा था, कथित है, ऐसी कथित बातों का साक्ष्य होगा।
(6) जहां कि इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का विचारण, अभित्यजन के या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के आरोप पर हो रहा है और ऐसे व्यक्ति ने किसी ऐसे पुलिस आफिसर को जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक आफिसर की पंक्ति से नीचे का नहीं है, अभिरक्षा में अपने को अभ्यर्पित कर दिया है या वह ऐसे आफिसर द्वारा पकड़ लिया गया है, वहां ऐसा प्रमाणपत्र जिसका ऐसे पुलिस आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है और जिसमें ऐसे अभ्यर्पण या पकड़े जाने का तथ्य, तारीख और स्थान तथा यह बात कि उसका पहनावा कैसा था, कथित है, ऐसी कथित बातों का साक्ष्य होगा।
(7) कोई दस्तावेज, जिसका सरकार के रासायनिक परीक्षक या सहायक रासायनिक परीक्षक या सरकारी वैज्ञानिक, विशेषज्ञों, अर्थात् मुख्य विस्फोटक निरीक्षक, अंगुली छाप कार्यालय निदेशक, हाफकिन संस्थान, मुम्बई के निदेशक, केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला या राजकीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक और सरकार के सीरम विज्ञानी में से किसी द्वारा,
हस्ताक्षरित ऐसी रिपोर्ट होना तात्पर्यित है जो ऐसे किसी पदार्थ या चीज के बारे में है जो परीक्षा या विश्लेषण और रिपोर्ट के लिए उसे सम्यक् रूप से भेजी गई थी, इस अधिनियम के अधीन की किसी भी कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त की जा सकेगी।
143. अभियुक्त द्वारा सरकारी आफिसर को निर्देश - (1) यदि अभित्यजन के या छुट्टी बिना अनुपस्थिति के उपरान्त या सेवा के लिए बुलाए जाने पर वापस न आने के लिए किए जा रहे किसी विचारण में विचारित व्यक्ति अपनी अप्राधिकृत अनुपस्थिति के लिए किसी पर्याप्त या युक्तियुक्त प्रतिहेतु का कथन अपनी प्रतिरक्षा में करता है और उसके समर्थन में सरकार की सेवा में के किसी आफिसर के प्रति निर्देश करता है या यदि ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिरक्षा में के उक्त कथन के किसी ऐसे आफिसर द्वारा साबित या नासाबित किए जाने की सम्भावना है तो न्यायालय ऐसे आफिसर को लिखेगा और कार्यवाहियों को तब तक के लिए स्थगित कर देगा जब तक उसका उत्तर प्राप्त न हो जाए।
(2) ऐसे निर्देशित आफिसर का लिखित उत्तर, यदि वह उसके द्वारा हस्ताक्षरित हो, साक्ष्य में लिया जाएगा, और उसका वैसा ही प्रभाव होगा मानो वह न्यायालय के समक्ष शपथ पर दिया गया हो।
(3) यदि ऐसे उत्तर की प्राप्ति के पूर्व न्यायालय का विघटन हो जाता है या यदि न्यायालय इस धारा के उपबंधों का अनुवर्तन करने का लोप करता है तो संयोजक आफिसर कार्यवाहियों को स्वविवेकानुसार बातिल कर सकेगा और नए विचारण का आदेश दे सकेगा।
144. पूर्व दोषसिद्धियों और साधारण शील का साक्ष्य - (1) जब कि इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति को सेनान्यायालय ने किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया हो तब वह सेना-न्यायालय ऐसे व्यक्ति की किसी सेना-न्यायालय या किसी दण्डन्यायालय द्वारा की गई पूर्व दोषसिद्धियों की या धाराओं 80, 83, 84 या 85 में से किसी के अधीन किए गए किसी पूर्वदण्ड अधिनिर्णय की जांच कर सकेगा और साक्ष्य प्राप्त और अभिलिखित कर सकेगा तथा इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति के साधारण शील की और ऐसी बातों की जो विहित की जाएं, जांच कर सकेगा और उन्हें अभिलिखित कर सकेगा।
(2) इस धारा के अधीन प्राप्त किया गया साक्ष्य या तो मौखिक या सेना-न्यायालय पुस्तकों में की या अन्य शासकीय अभिलेखों में की प्रविष्टियों या उनमें से प्रमाणित उद्धरणों के रूप में हो सकेगा और विचारित व्यक्ति को विचारण के पूर्व यह सूचना देना आवश्यक नहीं होगा कि उसकी पूर्व दोषसिद्धियों या शील के बारे में साक्ष्य प्राप्त किया जाएगा।
(3) यदि सम्मरी सेना-न्यायालय में विचारण करने वाला आफिसर ठीक समझे तो वह अपराधी के विरुद्ध की किन्हीं पूर्व दोषसिद्धियों को, या उसके साधारण शील को और ऐसी अन्य बातों को जो विहित की जाएं, इस धारा के पूर्वगामी उपबन्धों के अधीन साबित किए जाने की अपेक्षा करने के बदले में उन्हें अपने ज्ञान के रूप में अभिलिखित कर सकेगा।
145. अभियुक्त का पागलपन - (1) जब कभी सेना-न्यायालय द्वारा विचारण के अनुक्रम में न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह व्यक्ति जिस पर आरोप है कि चित्त-विकृत के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है या कि उसने अभिकथित कार्य तो किया था किन्तु वह चित्त-विकृत के कारण उस कार्य की विकृत्ति को जानने में या यह जानने में कि वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, असमर्थ था, तब न्यायालय तदनुसार निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।
(2) न्यायालय का पीठासीन आफिसर, या सम्मरी सेना-न्यायालय की दशा में, विचारण करने वाला आफिसर तत्काल मामले की रिपोर्ट, यथास्थिति, पुष्टिकर्ता आफिसर को या उस प्राधिकारी को करेगा जो उसके निष्कर्ष पर धारा 162 के अधीन कार्यवाही करने के लिए सशक्त हो।
(3) पुष्टिकर्ता आफिसर, जिसको मामले की रिपोर्ट उपधारा (2) के अधीन की जाती है, यदि निष्कर्ष की पुष्टि नहीं करता है तो वह अभियुक्त व्यक्ति का उस अपराध के लिए जिसका उस पर आरोप लगाया गया था, विचारण उसी या किसी अन्य सेनान्यायालय द्वारा कराने के लिए कार्यवाही कर सकेगा।
(4) वह प्राधिकारी, जिसको सम्मरी सेना-न्यायालय के निष्कर्ष की रिपोर्ट उपधारा (2) के अधीन की जाती है, और पुष्टिकर्ता आफिसर, जो किसी मामले में, जिसकी रिपोर्ट उसको ऐसे उपधारा (2) के अधीन की गई है निष्कर्ष की पुष्टि करता है, अभियुक्त व्यक्ति को विहित रीति से अभिरक्षा में रखने जाने का आदेश देगा तथा मामले की रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार के आदेशों के लिए करेगा।
(5) उपधारा (4) के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर केन्द्रीय सरकार अभियुक्त व्यक्ति को किसी पागलखाने में या सुरक्षित अभिरक्षा के अन्य उपयुक्त स्थान में निरुद्ध किए जाने का आदेश दे सकेगी।
146. पागल अभियुक्त का आगे चल कर विचारण के लिए उपयुक्त हो जाना - जहां कि कोई अभियुक्त व्यक्ति, चित्त-विकृति के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने पर असमर्थ पाया जाने पर, धारा 145 के अधीन अभिरक्षा या निरोध में है, वहां वह आफिसर, जो उस सेना, सेना-कोर, डिवीजन या ब्रिगेड का समादेशन करता है जिसके समादेशन क्षेत्र के अन्दर अभियुक्त अभिरक्षा में है या निरुद्ध है या इस निमित्त विहित कोई अन्य आफिसर
(क) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 145 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है तो किसी चिकित्सीय आफिसर की इस रिपोर्ट पर कि वह अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है, अथवा
(ख) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 145 की उपधारा (5) के अधीन किसी जेल में निरुद्ध है तो कारागारों के महानिरीक्षक के इस प्रमाण-पत्र पर और यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा के अधीन किसी पागलखाने में निरुद्ध है तो उस पागलखाने के परिदर्शकों में से किन्हीं दो या अधिक के इस प्रमाण-पत्र पर कि वह अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है, उस व्यक्ति का विचारण उस अपराध के लिए जिसका आरोप उस पर मूलत: लगाया गया था, उसी या किसी अन्य सेना न्यायालय द्वारा या यदि वह अपराध सिविल अपराध है तो किसी दंड न्यायालय द्वारा कराने के लिए कार्यवाही कर सकेगा।
147. धारा 146 के अधीन के आदेशों का केन्द्रीय सरकार को पारेषण - ऐसे हर आदेश की एक प्रतिलिपि जो अभियुक्त के विचारण के लिए किसी आफिसर द्वारा धारा 146 के अधीन किया गया है तत्काल केन्द्रीय सरकार को भेज दी जाएगी।
148. पागल अभियुक्त की निर्मुक्ति - जहां कि कोई व्यक्ति धारा 145 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में या उस धारा की उपधारा (5) के अधीन निरोध में है वहां -
(क) यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में है तो किसी चिकित्सीय आफिसर की ऐसी रिपोर्ट पर, अथवा
(ख) यदि ऐसा व्यक्ति उक्त उपधारा (5) के अधीन निरुद्ध है तो धारा 146 के खण्ड (ख) में वर्णित प्राधिकारियों में से किसी के ऐसे प्रमाण-पत्र पर, कि उस आफिसर या प्राधिकारी के विचार में उस व्यक्ति की निर्मुक्ति उसके स्वयं अपने आप को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति करने के संकट के बिना की जा सकती है, तो केन्द्रीय सरकार यह आदेश दे सकेगी कि ऐसे व्यक्ति को निर्मुक्त कर दिया जाए या अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाए या यदि उसे पहले ही किसी ऐसे लोक पागलखाने में नहीं भेज दिया गया है तो उसे लोक पागलखाने में भेज दिया जाए।
149. पागल अभियुक्त का उसके नातेदारों को परिदान - जहां कि ऐसे व्यक्ति का, जो धारा 145 की उपधारा (4) के अधीन अभिरक्षा में या उस धारा की उपधारा (5) के अधीन निरोध में है, कोई नातेदार या मित्र वांछा करे कि उसकी देख-रेख और अभिरक्षा में रखे जाने के लिए परिदत्त कर दिया जाए, तब केन्द्रीय सरकार, ऐसे नातेदार या मित्र के आवेदन पर और उस सरकार को समाधानप्रद ऐसी प्रतिभूति उसके द्वारा दिए जाने पर कि परिदत्त व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और वह अपने आप को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति करने से निवारित रखा जाएगा तथा परिदत्त व्यक्ति को ऐसे आफिसर के समक्ष और ऐसे समयों पर और स्थान पर जो केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं, निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा, ऐसे व्यक्ति को ऐसे नातेदार या मित्र को परिदत्त किए जाने का आदेश दे सकेगी।
150. विचारण के लम्बित रहने तक सम्पत्ति की अभिरक्षा और व्ययन के लिए आदेश - जब कि कोई सम्पत्ति, जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है, या जो कोई अपराध करने के लिए उपयोग में लाई गई प्रतीत होती है, किसी सेना-न्यायालय के समक्ष विचारण के दौरान पेश की जाएं, तब न्यायालय विचारण की समाप्ति होने तक के लिए ऐसी सम्पत्ति की उचित अभिरक्षा के लिए ऐसा आदेश कर सकेगा जैसा वह ठीक समझे और यदि सम्पत्ति शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील है तो ऐसा साक्ष्य जैसा वह आवश्यक समझे अभिलिखित करने के पश्चात् उसे बेच देने या अन्यथा व्ययनित करने का आदेश दे सकेगा।
151. जिस सम्पत्ति के बारे में अपराध किया गया है उसके व्ययन के लिए आदेश - (1) किसी सेना-न्यायालय के समक्ष विचारण की समाप्ति के पश्चात् वह सेना-न्यायालय या उस सेना-न्यायालय के निष्कर्ष या दण्डादेश को जो पुष्ट करे वह आफिसर, या ऐसे आफिसर से वरिष्ठ कोई प्राधिकारी या ऐसे सेना-न्यायालय की दशा में, जिसके निष्कर्ष या दण्डादेश की पुष्टि अपेक्षित नहीं है उस सेना, सेना-कोर, डिवीजन या ब्रिगेड का, जिसमें विचारण किया गया था, समादेशन करने वाला आफिसर उस सम्पत्ति या दस्तावेज के, जो उस न्यायालय के समक्ष पेश की गई है या उसकी अभिरक्षा में है या जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो कोई अपराध करने के लिए उपयोग में लाई गई है नाश द्वारा, समपहरण द्वारा, किसी ऐसे व्यक्ति को परिदान द्वारा जो उसके कब्जे का हकदार होने का दावा करता है अन्यथा व्ययनित करने का ऐसा आदेश कर सकेगा जैसे वह ठीक समझे।
(2) जहां कि उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश ऐसी सम्पत्ति के बारे में किया गया हो, जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है, वहां वह आदेश करने वाले प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित और प्रमाणित उस आदेश की प्रतिलिपि चाहे विचारण भारत के अन्दर हुआ हो या न हुआ हो, ऐसे मजिस्ट्रेट को भेजी का सकेगी, जिसकी अधिकारिता में वह सम्पत्ति तत्समय स्थित हो और तदुपरि
वह मजिस्ट्रेट उस आदेश को ऐसे कार्यान्वित कराएगा मानो वह दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के या जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त तत्समान किसी विधि के अधीन उसके द्वारा पारित आदेश हो।
(3) इस धारा में “सम्पत्ति” शब्द के अन्तर्गत उस सम्पत्ति की दशा जिसके बारे में अपराध किया गया प्रतीत होता है, न केवल वही सम्पत्ति आती है जो मूलत: किसी व्यक्ति के कब्जे में या नियंत्रण में रही है वरन्, वह सम्पत्ति भी आती है जिसमें या जिसके बदले में उसका संपरिवर्तन या विनिमय किया गया है और वह सब कुछ आता है जो ऐसे संपरिवर्तन या विनिमय द्वारा अव्यवहित अन्यथा अर्जित किया गया है।
152. इस अधिनियम के अधीन की कार्यवाहियों के सम्बन्ध में सेना-न्यायालय की शक्तियां - इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन किया गया सेना-न्यायालय द्वारा विचारण भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धाराओं 193 और 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी और सेना-न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धाराओं 345 और 346 के अर्थ में न्यायालय समझा जाएगा।