Updated: Jan, 30 2021

अध्याय 10

सेना-न्यायालय

108. सेना न्यायालयों के प्रकार - इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए सेना - न्यायालय चार प्रकार के होंगे, अर्थात् :

() जनरल सेना-न्यायालय ;

() डिस्ट्रिक्ट सेना - न्यायालय ;

() सम्मरी जनरल सेना - न्यायालय ; तथा

() सम्मरी सेना - न्यायालय।

109. जनरल सेना-न्यायालय संयोजित करने की शक्ति - जनरल सेना-न्यायालय केन्द्रीय सरकार द्वारा या थल सेनाध्यक्ष द्वारा या थल सेनाध्यक्ष के अधिपत्र से इन निमित्त सशक्त किए गए किसी आफिसर द्वारा संयोजित किया जा सकेगा।

110. डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय संयोजित करने की शक्ति - डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय जनरल सेना - न्यायालय संयोजित करने की शक्ति रखने वाले आफिसर द्वारा या ऐसे किसी आफिसर के अधिपत्र से इस निमित्त सशक्त किए गए आफिसर द्वारा संयोजित किया जा सकेगा।

111. धाराओं 109 और 110 के अधीन निकाले गए अधिपत्रों की अन्तर्वस्तुएं - धारा 109 या धारा 110 के अधीन निकाले गए अधिपत्र में ऐसे निर्बन्धन, आरक्षण या शर्ते अन्तर्विष्ट हो सकेंगी जैसे उसे निकालने वाला आफिसर ठीक समझे।

112. सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय संयोजित करने की शक्ति - निम्नलिखित प्राधिकारियों को सम्मरी जनरल सेनान्यायालय संयोजित करने की शक्ति होगी, अर्थात् :

() केन्द्रीय सरकार के या थल सेनाध्यक्ष के आदेश द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया आफिसर ;

() सक्रिय सेवा पर, फील्ड में बलों का समादेशन करने वाला आफिसर या उसके द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई आफिसर;

() सक्रिय सेवा पर की नियमित सेवा के किसी वियोजित प्रभाग का समादेशन करने वाला आफिसर उस समय जब उसकी राय में सेवा के अनुशासन और की अभ्यावश्यकताओं का सम्यक् रूप से ध्यान रखते हुए यह साध्य हो कि अपराध का विचारण किसी जनरल सेना-न्यायालय द्वारा किया जाए।

113. जनरल सेना-न्यायालय की संरचना - जनरल सेना-न्यायालय कम से कम पांच ऐसे आफिसरों से मिलकर बनेगा जिनमें से हर एक कम से कम तीन पूरे वर्ष तक आयोग धारण कर चुका है और जिनमें से कम से कम चार कैप्टन के रैंक से नीचे के रैंक के हों।

114. डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय की संरचना - डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय कम से कम तीन ऐसे आफिसरों से मिलकर बनेगा जिनमें से हर एक कम से कम दो पूरे वर्ष तक आयोग धारण कर चुका है।

115. सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय की संरचना - सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय कम से कम तीन आफिसरों से मिलकर बनेगा।

116. सम्मरी सेना-न्यायालय - (1) सम्मरी सेना - न्यायालय नियमित सेना के किसी कोर, विभाग या टुकड़ी के कमान आफिसर द्वारा अधिविष्ट किया जा सकेगा और वह न्यायालय अकेले उससे ही गठित होगा।

(2) कार्यवाहियों में दो अन्य ऐसे व्यक्ति आरम्भ से अंत तक हाजिर रहेंगे जो आफिसर या कनिष्ठ आयुक्त आफिसर या दोनों में से एक - एक होंगे और जिन्हें उस रूप में तो शपथ दिलाई जाएगी और प्रतिज्ञान कराया जाएगा।

117. सेना-न्यायालयों का विघटन - (1) यदि विचारण के प्रारम्भ के पश्चात् किसी सेना - न्यायालय में उन आफिसरों की संख्या जिनसे मिलकर वह बना है, उस न्यूनतम संख्या से, जो इस अधिनियम द्वारा अपेक्षित है, कम हो जाती है तो वह विघटित कर दिया जाएगा।

(2) यदि निष्कर्ष के पहले जज-एडवोकेट की या अभियुक्त की रुग्णता के कारण विचारण चलाते रहना असम्भव हो जाए तो सेना-न्यायालय विघटित कर दिया जाएगा।

(3) वह आफिसर, जिसने सेना - न्यायालय संयोजित किया है, ऐसे सेना - न्यायालय को विघटित कर सकेगा यदि उसे यह प्रतीत हो कि सैन्य अभ्यावश्यकताओं या अनुशासिक आवश्यकताओं ने उक्त सेना-न्यायालय का चालू रहना असंभव या असमीचीन कर दिया है।

(4) जहां कि सेना - न्यायालय इस धारा के अधीन विघटित किया जाए वहां अभियुक्त का विचारण फिर से किया जा सकेगा।

118. जनरल और सम्मरी जनरल सेना-न्यायालयों की शक्तियां - जनरल या सम्मरी जनरल सेना-न्यायालय को इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का, ऐसे अपराध के लिए, जो उसमें दंडनीय है, विचारण करने और तद्वारा प्राधिकृत कोई दंडादेश पारित करने की शक्ति होगी।

119. डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालयों की शक्तियां - डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय को आफिसर या कनिष्ठ आयुक्त आफिसर से भिन्न इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति के, ऐसे अपराध के लिए, जो उसमें दंडनीय किया गया है, विचारण करने की तथा इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई ऐसा दंडादेश पारित करने की जो मृत्यु, निर्वासन या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास के दंडादेश से भिन्न है, शक्ति होगी:

परन्तु डिस्ट्रिक्ट सेना - न्यायालय किसी वारण्ट आफिसर को कारावास का दंडादेश नहीं देगा।

120. सम्मरी सेना-न्यायालयों की शक्तियां - (1) उपधारा (2) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए सम्मरी सेना-न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का विचारण कर सकेगा।

(2) जब कि तुरन्त कार्यवाही के लिए गम्भीर कारण नहीं है और अभिकथित अपराधी के विचारण के लिए निर्देश, अनुशासन का उपाय किए बिना उस आफिसर को किया जा सकता है जो डिस्ट्रिक्ट सेना-न्यायालय या सक्रिय सेवा की दशा में सम्मरी जनरल सेना - न्यायालय संयोजित करने के लिए सशक्त है तब सम्मरी सेना - न्यायालय अधिविष्ट करने वाला आफिसर, धाराओं 34, 37 और 69 में से किसी के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का या न्यायालय अधिविष्ट करने वाले आफिसर के विरुद्ध किसी अपराध का विचारण ऐसे निर्देश के बिना नहीं करेगा।

(3) आफिसर, कनिष्ठ आयुक्त आफिसर या वारण्ट आफिसर से भिन्न इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का जो उस न्यायालय के रूप में कार्य करने वाले न्यायालय को अधिविष्ट करने वाले आफिसर के समादेश के अधीन है, विचारण सम्मरी सेनान्यायालय कर सकेगा।

(4) सम्मरी सेना - न्यायालय मृत्यु या निर्वासन के या उपधारा (5) में विनिर्दिष्ट परिसीमा से अधिक अवधि के कारावास के दंडादेश से भिन्न कोई भी ऐसा दंडादेश पारित कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन पारित किया जा सकता है।

(5) उपधारा (4) में निर्दिष्ट परिसीमा, उस दशा में, जिसमें सम्मरी सेना - न्यायालय को अधिविष्ट करने वाला आफिसर लेफ्टीनेंट - कर्नल के रैंक का और उससे ऊपर का है एक वर्ष की, और उस दशा में, जिसमें ऐसा आफिसर उस रैंक से नीचे का है तीन मास की होगी।

121. द्वितीय विचारण के प्रतिषेध - जब कि इस अधिनियम के अध्यधीन का कोई व्यक्ति, किसी सेना - न्यायालय द्वारा या किसी दंड - न्यायालय द्वारा किसी अपराध से दोषयुक्त या उसके लिए दोषसिद्ध किया गया है या उसके बारे में धाराएं 80, 83, 84 और 85 में से किसी के अधीन कार्यवाही कर दी गई है तब वह उसके अपराध के लिए किसी सेना - न्यायालय द्वारा पुनः विचारण किए जाने या उक्त धाराओं के अधीन कार्यवाही की जाने के दायित्व के अधीन नहीं होगा।

122. विचारण के लिए परिसीमाकाल - (1) उपधारा (2) द्वारा यथा उपबंधित के सिवाय इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति का, किसी अपराध के लिए सेना - न्यायालय द्वारा कोई भी विचारण तीन वर्ष की कालावधि के अवसान के पश्चात् प्रारंभ नहीं किया जाएगा, और ऐसी कालावधि,

() अपराध की तारीख को प्रारंभ होगी; या

() जहां अपराध के किए जाने की जानकारी, अपराध से व्यथित व्यक्ति को या कार्रवाई प्रारंभ करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को नहीं थी, वहां उस प्रथम दिन को प्रारंभ होगी जिस दिन ऐसे अपराध की जानकारी ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी को होती है, इनमें से जो भी पहले हो; या

() जहां यह ज्ञात नहीं है कि अपराध किसने किया है, वहां उस प्रथम दिन को प्रारंभ होगी जिस दिन अपराधी का पता अपराध से व्यथित व्यक्ति को या कार्रवाई प्रारंभ करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को चलता है, इनमें से जो भी पहले हो।

(2) उपधारा (1) के उपबन्ध, अभित्यजन या कपटपूर्ण अभ्यावेदन के अपराध या धारा 37 में वर्णित अपराधों में से किसी के लिए विचारण को लागू नहीं होंगे।

(3) समय की जो कालावधि उपधारा (1) में वर्णित है उसकी गणना करने में, वह समय अपवर्जित कर दिया जाएगा, जो ऐसे व्यक्ति ने अपराध किए जाने के पश्चात् युद्ध कैदी के रूप में या शत्रु के क्षेत्र में या गिरफ्तारी से बचने में बिताया है।

(4) यदि प्रश्न गत व्यक्ति जो आफिसर नहीं है अपराध के किए जाने के पश्चात् नियमित सेना के किसी प्रभाग में अनुकरणीय रीति से सेवा निरन्तर कम से कम तीन वर्ष के लिए कर चुका है तो सक्रिय सेवा पर के अभित्यजन से भिन्न अभित्यजन के अपराध का या कपटपूर्ण अभ्यावेशन के अपराध का कोई भी विचारण प्रारम्भ नहीं किया जाएगा।

123. उस अपराधी का दायित्व जो इस अधिनियम के अधीन नहीं रह जाता है - (1) जहां कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी व्यक्ति द्वारा उस समय किया गया था जब कि वह इस अधिनियम के अध्यधीन था और वह ऐसे अध्यधीन नहीं रह गया है वहां उसे सैनिक अभिरक्षा में ले लिया और रखा जा सकेगा तथा ऐसे अपराध के लिए ऐसे विचारित और दंडित किया जा सकेगा मानो वह ऐसे अध्यधीन बना रहा हो।

(2) ऐसा कोई भी व्यक्ति किसी अपराध के लिए विचारित नहीं किया जाएगा जब तक कि उसके विचारण का प्रारम्भ उसके इस अधिनियम के अध्यधीन रह जाने के पश्चात् तीन वर्ष की कालावधि के अंदर हो जाए ; और ऐसी कालावधि की संगणना करने में, वह समय, जिसके दैरान ऐसा व्यक्ति फरार होकर या अपने को छिपाकर गिरफ्तारी से बचता है या जहां किसी अपराध की बाबत कार्यवाही का संस्थित किया जाना किसी व्यादेश या आदेश द्वारा रोक दिया गया है, वहां व्यादेश या आदेश के बने रहने की कालावधि, वह दिन, जिस दिन वह जारी किया गया था या दिया गया था और वह दिन, जिस दिन उसे वापस लिया गया था, अपवर्जित किया जाएगा :

परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई भी बात अभित्यजन या कपटपूर्ण अभ्यावेदन के अपराध के लिए या धारा 37 में वर्णित अपराधों में से किसी के लिए किसी व्यक्ति के विचारण को लागू नहीं होगी और ऐसे किसी अपराध का विचारण करने की दण्डन्यायालय की अधिकारिता पर प्रभाव डालेगी जो ऐसे न्यायालय द्वारा तथा सेना - न्यायालय द्वारा भी विचारणीय है।

(3) जब कि इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति को किसी सेना-न्यायालय द्वारा निर्वासन या कारावास का दंडादेश दिया जाता है तब यह अधिनियम उसके दंडादेश की अवधि के दौरान उसको लागू होगा यद्यपि वह नियमित सेना से पदच्यूत सकलंन पदच्युत कर दिया जाता है या अन्यथा इस अधिनियम के अध्यधीन नहीं रह गया है तथा ऐसे रखा, हटाया, कारावासित और दण्डित किया जा सकेगा मानो वह इस अधिनियम के अध्यधीन बना रहा है।

(4) जब कि इस अधिनियम के अध्यधीन के किसी व्यक्ति को, किसी सेना-न्यायालय द्वारा मृत्यु का दण्डादेश दिया जाता है, तब यह अधिनियम उसको तब तक लागू होगा जब तक कि वह दण्डादेश कार्यान्वित नहीं कर दिया जाता।

124. विचारण का स्थान - इस अधिनियम के अध्यधीन का कोई व्यक्ति, जो इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध करेगा ऐसे अपराध के लिए किसी भी स्थान में विचारित और दण्डित किया जा सकेगा।

125. दण्ड-न्यायालय और सेना-न्यायालय में से किसी एक का चुनाव - जब कि दण्ड-न्यायालय और सेना - न्यायालय में से हर एक किसी अपराध के सम्बन्ध में अधिकारिता रखता है तब यह विनिश्चित करना कि कार्यवाही किस न्यायालय के समक्ष संस्थित की जाए उस सेना, सेना - कोर, डिवीजन या स्वतन्त्र ब्रिगेड का, जिसमें अभियुक्त व्यक्ति सेवा कर रहा है, समादेशन करने वाले आफिसर के या ऐसे अन्य आफिसर के, जो विहित किया जाए, विवेकाधीन होगा और यदि वह आफिसर विनिश्चित करता है कि वे सेना - न्यायालय के समक्ष संस्थित की जाएं तो यह निदेश देना कि अभियुक्त व्यक्ति को सैनिक अभिरक्षा में निरुद्ध किया जाए उसके विवेकाधीन होगा।

126. दण्ड-न्यायालय की यह अपेक्षित करने की शक्ति कि अपराधी परिदत्त किया जाए - (1) जब कि अधिकारिता रखने वाले दण्ड - न्यायालय की यह राय है कि किसी अभिकथित अपराध के बारे में कार्यवाहियां उसी के समक्ष संस्थित की जानी चाहिएं तब वह लिखित सूचना द्वारा धारा 125 में निर्दिष्ट आफिसर से अपेक्षा कर सकेगा कि वह स्वविकल्प में या तो अपराधी को विधि के अनुसार उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाने के लिए निकटतम मजिस्ट्रेट को परिदत्त कर दे या तब तक के लिए कार्यवाहियों को मुल्तवी कर दे जब तक केन्द्रीय सरकार को निर्देश लम्बित रहे।

(2) ऐसे हर मामले में उक्त आफिसर या तो उस अध्यपेक्षा के अनुपालन में अपराधी को परिदत्त कर देगा या इस प्रश्न को कि कार्यवाहियां किसी न्यायालय के समक्ष संस्थित की जानी हैं केन्द्रीय सरकार के अवधारण के लिए तत्क्षण निर्देशित करेगा जिसका कि ऐसे निर्देश पर आदेश अन्तिम होगा।

127. [दण्ड न्यायालय और सेना न्यायालय द्वारा क्रमवर्ती विचारण ] -1992 के अधिनियम सं० 37 की धारा 11 द्वारा निरसित।