प्रारम्भिक [PRELIMINARY]
Updated: Jan, 30 2021
सेना अधिनियम, 1950
(1950 का अधिनियम संख्यांक 46)
[20 मई, 1950]
नियमित सेना के शासन से सम्बन्धित विधि का समेकन और संशोधन करने के लिए
अधिनियम संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :
अध्याय 1
प्रारम्भिक [PRELIMINARY]
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ - (1) यह अधिनियम सेना अधिनियम, 1950 कहा जा सकेगा।
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे।
2. इस अधिनियम के अध्यधीन व्यक्ति - (1) निम्नलिखित व्यक्ति, अर्थात्:-
(क) नियमित सेना के आफिसर, कनिष्ठ आयुक्त आफिसर और वारण्ट आफिसर,
(ख) इस अधिनियम के अधीन अभ्यावेशित किए गए व्यक्ति,
(ग) भारतीय रिजर्व बल के व्यक्ति,
(घ) भारतीय अनूपूरक रिजर्व बल के व्यक्ति, जब वे सेवा के लिए आहूत किए गए हों या जब वे वार्षिक परीक्षण में लगे हुए हों,
(ङ) प्रादेशिक सेना के आफिसर, जब वे ऐसे आफिसरों की हैसियत में कर्तव्य कर रहें हो और उक्त सेना में अभ्यावेशित व्यक्ति जब वे आहूत किए गए हों या निकायकृत हों या किन्हीं नियमित बलों से संलग्न हों, ऐसे अनुकूलनों और उपान्तरों के अध्यधीन जो ऐसे व्यक्तियों पर इस अधिनियम को प्रादेशिक सेना अधिनियम, 1948 (1948 का 56) की धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन लागू करने में किए जाएं,
(च) भारत में के सेना-आफिसर-रिजर्व में आयोग धारण करने वाले व्यक्ति, जब उन्हें किसी ऐसे कर्तव्य या ऐसी सेवा के लिए आदेश मिला हो जिसका उन पर दायित्व ऐसे रिजर्व बलों के सदस्य होने के नाते है,
(छ) भारतीय नियमित आफिसर-रिजर्व में नियुक्त आफिसर, जब उन्हें किसी ऐसे कर्तव्य या ऐसी सेवा के लिए आदेश मिला हो जिसका उन पर दायित्व ऐसे रिजर्व बलों के सदस्य होने के नाते है,
(झ) सैनिक विधि के अध्यधीन अन्यथा न आने वाले व्यक्ति जो सक्रिया सेवा पर, कैम्प में, प्रगमन पर या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किसी सीमान्त चौकी पर, नियमित सेना के किसी प्रभाग द्वारा
नियोजित हों, या उसकी सेवा में हों, या उसके अनुचारी हों, या उसके साथ चलते हों, वे जहां कहीं भी हों इस अधिनियम के अध्यधीन होंगे।
(2) हर व्यक्ति जो उपधारा (1) के खण्ड (क) से (छ) तक के अधीन इस अधिनियम के अध्यधीन है तब तक जब तक वह सेवा से सम्यक् रूप से निवृत्त, उन्मोचित, निर्मुक्त, पदच्युत न कर दिया जाए या हटा न दिया जाए या सकलंक पदच्युत न कर दिया जाए, अध्यधीन बना रहेगा।
3. परिभाषाएं - इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
(i) “सक्रिया सेवा” से जब कि वह उस व्यक्ति के सम्बन्ध में प्रयुक्त है, जो इस अधिनियम के अध्यधीन है वह समय अभिप्रेत है जिसके दैरान वह व्यक्ति –
(क) ऐसे बल से संलग्न है या उसका भाग है जो शत्रु के विरुद्ध संक्रियाओं में लगा है, अथवा
(ख) ऐसे देश स्थान में जो शत्रु द्वारा पूर्णतः या भागतः दखल में है, सैनिक संक्रियाओं में लगा है या उसकी ओर प्रगमन पथ पर है, अथवा
(ग) ऐसे बल से संलग्न है या उसका भाग है जो किसी विदेश पर सैनिक दखल रखता है;
(ii) “सिविल अपराध” से ऐसे अपराध अभिप्रेत हैं जो दंड न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं;
(iii) “सिविल कारागार” से ऐसी जेल या स्थान अभिप्रेत है जो किसी अपराधिक कैदी के निरोध के लिए कारागार अधिनियम, 1894 (1894 का 9) के अधीन या किसी अन्य तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन प्रयुक्त किया जाता है;
(iv) “थल सेनाध्यक्ष” से नियमित सेना का समादेशन करने वाला आफिसर अभिप्रेत है;
(v) “कमान आफिसर" से, जब वह इस अधिनियम के किसी उपबन्ध में नियमित सेना के किसी पृथक् प्रभाग या उसके किसी विभाग के प्रति निर्देश से प्रयुक्त है वह आफिसर अभिप्रेत है जिसका नियमित सेना के विनियमों के अधीन, या ऐसे किन्हीं विनियमों के अभाव में, सेवा की रूढ़ि के अनुसार यह कर्तव्य है कि वह, उस उपबन्ध में निर्दिष्ट वर्णन के विषयों के बारे में कमान आफिसर के कृत्यों का निर्वहन, यथास्थिति, नियमित सेना के उस प्रभाग या उस विभाग के सम्बन्ध में करे;
(vi) “कोर” से इस अधिनियम के अध्यधीन व्यक्तियों का कोई ऐसा पृथक निकाय अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के सभी उपबंधों के या उनमें से किसी के प्रयोजनों के लिए कोर के रूप में विहित है;
(vii) “सेना न्यायालय” से इस अधिनियम के अधीन अधिविष्ट सेना न्यायालय अभिप्रेत है;
(viii) “दंड न्यायालय” से भारत के किसी भाग में का मामूली दण्ड न्याय का न्यायालय अभिप्रेत है;
(ix) “विभाग” के अन्तर्गत विभाग का कोई खण्ड या शाखा आती है;
(x) शत्रु के अंतर्गत ऐसे सब सशस्त्र सैन्य विद्रोही, सायुध बागी, सायुध बल्वाकारी, जलदस्यू और ऐसा कोई उद्धतायुध व्यक्ति आता है जिसके विरुद्ध कार्य करना किसी ऐसे व्यक्ति का कर्तव्य है जो सैनिक विधि के अध्यधीन है;
(xi) “बल” से नियमित सेना, नौसेना, वायु सेना या उनमें से किसी एक या अधिक का कोई भाग अभिप्रेत है;
(xii) “कनिष्ठ आयुक्त आफिसर” से नियमित सेना या भारतीय रिजर्व बल में कनिष्ठ आयुक्त आफिसर के रूप में आयुक्त, राजपत्रित या वेतन पाने वाला व्यक्ति अभिप्रेत है और भारतीय अनुपूरक रिजर्व बल या प्रादेशिक सेना में कनिष्ठ आयोग धारण करने वाला व्यक्ति, जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हो, इसके अन्तर्गत आता है;
(xiii) “सैनिक अभिरक्षा” से सेवा की प्रथाओं के अनुसार किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी या परिरोध अभिप्रेत है और नौसैनिक या वायु सेना अभिरक्षा इसके अन्तर्गत आती है;
(xiv) “सैनिक इनाम” के अन्तर्गत दीर्घकालीन सेवा या सदाचरण के लिए कोई उपदान या वार्षिकी, सुसेवा वेतन या पेन्शन और कोई अन्य सैनिक धनीय इनाम आता है;
(xv) “अनायुक्त आफिसर” से नियमित सेना या भारतीय रिजर्व बल में अनायुक्त रैंक या कार्यकारी अनायुक्त रैंक धारण करने वाला व्यक्ति अभिप्रेत है और भारतीय अनुपूरक रिजर्व बल या प्रादेशिक सेना का कोई अनायुक्त आफिसर या कार्यकारी अनायुक्त आफिसर जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हों, इसके अन्तर्गत आता है;
(xvi) “अधिसूचना” से शासकीय राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(xvii) “अपराध” से इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई कार्य या लोप अभिप्रेत है और इसमें इसके पूर्व यथापरिभाषित सिविल अपराध इसके अन्तर्गत आता है;
(xviii) “आफिसर" से नियमित सेना में आफिसर के रूप में आयुक्त, राजपत्रित या वेतन पाने वाला व्यक्ति अभिप्रेत है और
(क) भारतीय रिजर्व बल का आफिसर ;
(ख) नियमित सेना के रैंक के किसी आफिसर के समान रैंक के पदाभिधान से, प्रादेशिक सेना में राष्ट्रपति द्वारा अनुदत्त आयोग धारण करने वाला ऐसा आफिसर जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हो ;
(ग) भारतीय आफिसर रिजर्व सेना का कोई आफिसर जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हो;
(घ) भारतीय नियमित आफिसर रिजर्व का कोई भी आफिसर जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हो;
(च) उस व्यक्ति के सम्बन्ध में जो इस अधिनियम के अध्यधीन है जब वह ऐसी परिस्थितियों के अधीन सेवा कर रहा हो जो विहित की जाएं, नौ सेना या वायु सेना का कोई आफिसर इसके अन्तर्गत आता है ; किन्तु कनिष्ठ आयुक्त आफिसर, वारन्ट आफिसर, पैटी आफिसर या अनायुक्त आफिसर इसके अन्तर्गत नहीं आते हैं ;
(xix) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;
(xx) “प्रोवो-मार्शल" से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो धारा 107 के अधीन इस रूप में नियुक्त है और उसके उप-पदीयों या सहायकों में से कोई या कोई अन्य व्यक्ति जो उसके अधीन या उसकी ओर से प्राधिकारी का वैध रूप से प्रयोग कर रहा है, इसके अन्तर्गत आता है ;
(xxi) “नियमित सेना” से अभिप्रेत है ऐसे आफिसर कनिष्ठ आयुक्त आफिसर, वारण्ट आफिसर, अनायुक्त आफिसर और अन्य अभ्यावेशित व्यक्ति जो अपने आयोग, वारण्ट, अभ्यावेशन के निबन्धनों के अनुसार या अन्यथा संसार के किसी भी भाग में निरन्तर किसी अवधि के लिए संघ की सैनिक सेवा करने के दायित्वाधीन हैं और रिजर्व बल और प्रादेशिक सेना के व्यक्ति जब वे स्थायी सेवा के लिए आहूत किए गए हों, इसके अन्तर्गत आते हैं ;
(xxii) “विनियम” के अन्तर्गत इस अधिनियम के अधीन बनाया गया विनियम आता है ;
(xxiii) “वरिष्ठ आफिसर" के अन्तर्गत, जब कि वह उस व्यक्ति के सम्बन्ध में प्रयुक्त हो जो इस अधिनियम के अध्यधीन है कोई कनिष्ठ आयुक्त आफिसर, वारण्ट आफिसर और अनायुक्त आफिसर तथा जहां तक उसके आदेशों के अधीन रखे गए व्यक्तियों का सम्बन्ध है, आफिसर, वारण्ट आफिसर, पैटी आफिसर और नौसेना या वायु सेना का अनायुक्त आफिसर आता है;
(xxiv) “वारण्ट आफिसर" से नियमित सेना के या भारतीय रिजर्व बल के वारण्ट आफिसर के रूप में नियुक्त, राजपत्रित या वेतन पाने वाला व्यक्ति अभिप्रेत है और भारतीय अनुपूरक रिजर्व बल का या प्रादेशिक सेना का वारण्ट आफिसर जो इस अधिनियम के तत्समय अध्यधीन हो, इसके अन्तर्गत आता है ;
(xxv) इस अधिनियम में प्रयुक्त किए गए किन्तु परिभाषित न किए गए और भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में परिभाषित किए गए (“भारत” शब्द के सिवाय) सब शब्दों और पदों के वे ही अर्थ समझे जाएंगे जो संहिता में हैं।