Updated: Mar, 22 2020

अध्याय 8

शाश्वत व्यादेश

38. शाश्वत व्यादेश कब अनुदत्त किया जाता है -

(1) इस अध्याय में अन्तर्विष्ट या निर्दिष्ट अन्य उपबन्धों के अध्यधीन यह है कि शाश्वत व्यादेश वादी को उसके पक्ष में विद्यमान बाध्यता के, चाहे वह अभिव्यक्त हो या विवक्षित, भंग का निवारण करने के लिए अनुदत्त किया जा सकेगा ।

(2) जबकि ऐसी कोई बाध्यता संविदा के उद्भूत होती हो तब न्यायालय अध्याय 2 में अन्तर्विष्ट नियमों और उपबन्धों द्वारा मार्गद्शित होगा ।

(3) जबकि प्रतिवादी वादी के सम्पत्ति के अधिकार या उपभोग पर आक्रमण करे या आक्रमण की धमकी दे तब न्यायालय निम्नलिखित दशाओं में शाश्वत व्यादेश दे सकेगा, अर्थात्‌ :--

(क) जहां कि प्रतिवादी वादी के लिए उस सम्पत्ति का न्यासी हो ;

(ख) जहां कि उस वास्तविक नुकसान का, जो उस आक्रमण द्वारा कारित है या जिसका उस आक्रमण द्वारा कारित होना संभाव्य है, अभिनिश्चय करने के लिए कोई मानक विद्यमान न हों ;

(ग) जहां कि वह आक्रमण ऐसा हो कि धन के रूप में प्रतिकर यथायोग्य अनुतोष न देगा ;

(घ) जहां कि व्यादेश न्यायिक कार्यवाहियों के बाहुल्य निवारित करने के लिए आवश्यक हो ।

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CHAPTER 8

PERPETUAL INJUNCTIONS

38. Perpetual injunction when granted.-

(1) Subject to the other provisions contained in or referred to by this Chapter, a perpetual injunction may be granted to the plaintiff to prevent the breach of an obligation existing in his favour, whether expressly or by implication.

(2) When any such obligation arises from contract, the court shall be guided by the rules and provisions contained in Chapter II.

(3) When the defendant invades or threatens to invade the plaintiff's right to, or enjoyment of, property, the court may grant a perpetual injunction in the following cases, namely:-

(a) where the defendant is trustee of the property for the plaintiff;

(b) where there exists no standard for ascertaining the actual damage caused, or likely to be caused, by the invasion;

(c) where the invasion is such that compensation in money would not afford adequate relief;

(d) where the injunction is necessary to prevent a multiplicity of judicial proceedings.

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