Updated: Mar, 22 2020

अध्याय 6

घोषणात्मक डिक्रियां

34. प्रास्थिति की या अधिकार की घोषणा के बारे में न्यायालय का विवेकाधिकार-

कोई व्यक्ति, जो किसी विधिक हैसियत का या किसी सम्पत्ति के बारे में किसी अधिकार का हकदार हो, ऐसे किसी व्यक्ति के विरुद्ध, जो ऐसी हैसियत का या ऐसे अधिकार के हक का प्रत्याख्यान करता हो या प्रत्याख्यान करने में हितबद्ध हो, वाद संस्थित कर सकेगा और न्यायालय स्वविवेक में उस वाद में यह घोषणा कर सकेगा कि वह ऐसा हकदार है और वादी के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह उस वाद में किसी अतिरिक्त अनुतोष की मांग करे :

परन्तु कोई भी न्यायालय वहां ऐसी घोषणा नहीं करेगा जहां कि वादी हक की घोषणा मात्र के अतिरिक्त कोई अनुतोष मांगने के योग्य होते हुए भी वैसा करने में लोप करे ।

स्पष्टीकरण - सम्पत्ति का न्यासी ऐसे हक का प्रत्याख्यान करने में “हितबद्ध व्यक्ति” है जो ऐसे व्यक्ति के हक के प्रतिकूल हो जो अस्तित्व में नहीं है, और जिसके लिए वह न्यासी होता यदि वह व्यक्ति अस्तित्व में आता ।

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CHAPTER 6

DECLARATORY DECREES

34. Discretion of court as to declaration of status or right.-

Any person entitled to any legal character, or to any right as to any property, may institute a suit against any person denying, or interested to deny, his title to such character or right, and the court may in its discretion make therein a declaration that he is so entitled, and the plaintiff need not in such suit ask for any further relief:

Provided that no court shall make any such declaration where the plaintiff, being able to seek further relief than a mere declaration of title, omits to do so.

Explanation.- A trustee of property is a "person interested to deny" a title adverse to the title of some one who is not in existence, and for whom, if in existence, he would be a trustee.

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