जहॉं विखंडन न्यायनिर्णीत या नामंजूर किया जा सकेगा (When rescission may be adjudged or refused)
Updated: Feb, 11 2021
अध्याय 4
संविदाओं का विखंडन
27. जहॉं विखंडन न्यायनिर्णीत या नामंजूर किया जा सकेगा -
(1) किसी संविदा में हितबद्ध कोई भी व्यक्ति उसे विखंडित कराने के लिए वाद ला सकेगा और ऐसा विखंडन निम्नलिखित दशाओं में से किसी में भी न्यायालय द्वारा न्यायनिर्णीत किया जा सकेगा, अर्थात् :--
(क) जहां कि संविदा वादी द्वारा शून्यकरणीय या पर्यवसेय हो ;
(ख) जहां कि संविदा ऐसे हेतुकों से विधिविरुद्ध हो जो उसके देखने से ही प्रकट नहीं है और प्रतिवादी का दोष वादी से अधिक है।
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय संविदा का विखंडन नामंजूर कर सकेगा -
(क) जहां कि वादी ने अभिव्यक्तत: या विवक्षितत: संविदा को अनुसमर्पित कर दिया है ; अथवा
(ख) जहां कि परिस्थितियों में ऐसी तब्दीली के कारण, जो संविदा के किए जाने के पश्चात् (स्वयं प्रतिवादी के किसी कार्य के कारण नहीं) हो गई हो, पक्षकारों को उसी स्थिति में सारत: प्रत्यावर्तित न किया जा सके जिसमें वे सब थे जब संविदा की गई थी ; अथवा
(ग) जहां कि संविदा के अस्तित्व के दौरान पर-व्यक्तियों ने सद्भावपूर्वक सूचना के बिना और मूल्यार्थ अधिकार अर्जित कर लिए हों ; अथवा
(घ) जहां कि संविदा के केवल एक भाग का ही विखंडन ईप्सित हो और ऐसा भाग संविदा के शेष भाग से पृथक् न किया जा सकता हो |
स्पष्टीकरण - इस धारा में “संविदा” से उन राज्यक्षेत्रों के सम्बन्ध में, जिन पर सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 (1882 का 4) का विस्तार नहीं है, लिखित संविदा अभिप्रेत है ।
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